ISRO और NASA ने मिलकर बनाया 'निसार', ग्रह की सतह पर होने वाले मामूली बदलाव को भी मापने में है सक्षम
ISRO और NASA ने संयुक्त प्रयास कर एक और उपलब्धि हासिल कर दी है. बता दें कि इन दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों ने मिलकर सिंथेटिक अपर्चर रडार का निर्माण किया है. ये रडार किसी भी ग्रह की सतह पर एक सेंटीमीटर की कम दूरी में भी होने वाले बदलाव को मापने में सक्षम है. इसी के साथ ये ग्रह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें भी प्रस्तुत करता है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने धरती के संयुक्त रूप से अवलोकन के लिए नासा के साथ मिलकर सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) का निर्माण कार्य पूरा कर लिया है. गौरतलब है कि SAR पृथ्वी के हाई रेजोल्यूशन वाली तस्वीरें प्रस्तुत करने में सक्षम है.
बता दें कि इसरो ने S-band सिंथेटिक एपरेचर रडार को निर्मित करके एक नई सफलता हासिल की है. वहीं इसरो द्वारा यह रडार अमेरिकी अंतरिक्ष एंजेसी नासा को भेज दिया गया है. जिसके बाद नासा की ओर से एल-बैंड पेलोड को इसमें इंटीग्रेट करने के लिए विकसित किया जा रहा है. दोनों रडार जब इंटीग्रेट हो जाएंगे तो ये पुन: भारत भेज दिए जाएंगे.
SAR रडार ग्रह सी सतह पर बदलावों को माप सकेगा
वहीं इस उपलब्धि पर नासा का कहना है कि, ‘ नासा-इसरो एसएआर (निसार) रडार की दो अलग-अलग आवृत्तियों एल और एस बैंड की इस्तेमाल करने वाला पहला उपग्रह अभियान होगा. इससे ग्रह की सतह पर एक सेंटीमीटर से भी कम दूरी में होने वाले बदलाव को मापा जा सकेगा. इसके साथ ही यह वैज्ञानिकों को सतह और साथ ही उस ग्रह के अंदरूनी हिस्से को समझने में मदद करेगा, जिस पर हम रहते हैं. अधिकारियों ने कहा कि यह बर्फ की चादर के ढहने के प्रभावों और जलवायु परिवर्तन की गति को बेहतर तरीके से समझने में भी मदद प्रदान करेगा.
ये सेटेलाइट सरकारों को प्राकृतिक आपदाओं का बेहतर प्रबंधन करने की भी अनुमति देगा. उपग्रह सूनामी, भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखी पर अत्यधिक स्थानिक डेटा प्रदान करेगा, इसके साथ ही यह प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में भी मदद करेगा, जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी का पता लगाना भी शामिल है.
नासा और इसरो के बीच अभियान को लेकर एग्रीमेंट साइन किया गया था
गौरतलब है कि इसे लेकर नासा और इसरो के बीच 30 सितंबर 2014 को एक एग्रीमेंट भी साइन किया गया था. इस अभियान को साल 2022 की शुरुआत में भारत में आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में स्थित इसरो के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से शुरू किया जाएगा.
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