(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
इसरो के लिए उपलब्धियों भरा रहा ये हफ्ता, गगनयान रेल ट्रैक रॉकेट स्लेज परियोजना का किया सफलतापूर्वक परिक्षण
इसरो ने बीते दिनों गगनयान पायलट और एपेक्स कवर सेपरेशन (ACS) पैराशूट का रेल ट्रैक रॉकेट स्लेज परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया.
ISRO: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने नाम एक और उपलब्धि की है. उसने 1 और 3 मार्च को क्लस्टर कॉन्फ्यूगिरेशन में गगनयान पायलट और एपेक्स कवर सेपरेशन (ACS) पैराशूट का रेल ट्रैक रॉकेट स्लेज परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया है.
एक आधिकारिक बयान में इसरो ने बताया, परीक्षण ने दो पायलट पैराशूटों की लैंडिंग को टेस्ट किया. इनमें से एक पैराशूट फ्लो की दिशा में मिनिमम एंगल पर ऑब्जेक्ट किया तो वहीं दूसरे पैराशूट ने फ्लो के मैक्सिमम एंगल में फ्लो को मैनेज करने की कोशिश की जिससे कि एक राइट पोजिशन पर ऑब्जेक्ट को रोका जा सके. इस टेस्ट का उपयोग गगनयान मिशन में स्वतंत्र रूप से मेन पैराशूट को निकालने और उसकी पोजिशनिंग के लिए किया जाएगा.
किसने डिजाइन किया है अपडेटेड लैंडिंग सिस्टम?
इसरो के आधिकारिक बयान के अनुसार गगनयान पैराशूट प्रणाली का निर्माण वीएसएससी, तिरुवनंतपुरम और एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (एडीआरडीई) आगरा ने संयुक्त रुप से मिलकर किया है.
'मेघा ट्रॉपिक्स-1 को प्रशांत महासागर में गिराएगा इसरो'
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपना जीवनकाल पूरा कर चुके मेघा ट्रॉपिक्स-1 (एमटी1) उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा में फिर से प्रवेश कराएगा और उसके बाद उसको प्रशांत महासागर में गिराएगा. इसरो और फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईसी ने जलवायु अध्ययन के लिए 12 अक्टूबर 2011 को संयुक्त रूप से एमटी1 का प्रक्षेपण किया था.
बेंगलुरु स्थित अंतरिक्ष एजेंसी ने रविवार को एक बयान में कहा कि इस उपग्रह का जीवनकाल मूल रूप से तीन साल का था, लेकिन यह 2021 तक क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु मॉडल के साथ एक दशक से अधिक समय तक अहम डेटा सेवाएं उपलब्ध कराता रहा.
क्या है मुश्किलें?
इसरो के पास से जारी बयान के अनुसार नियंत्रित तरीके से इसे पृथ्वी के वायुमंडल में एक सुरक्षित क्षेत्र में फिर से एंट्री दिलाई जाएगी. करीब 1,000 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह में तकरीबन 125 किलोग्राम ईंधन बचा है जिससे इसके दुर्घटनावश टूटने का खतरा पैदा हो सकता है. आम तौर पर बड़े उपग्रह/रॉकेट को पुन: प्रवेश नियंत्रित तरीके से कराया जाता है ताकि जमीन पर किसी के हताहत होने का जोखिम सीमित किया जा सके. इस उपग्रह को गिराने के लिए प्रशांत महासागर में एक निर्जन स्थान को चुना गया है.