बदलते मौसम की होगी अंतरिक्ष से निगरानी, फरवरी में ISRO लॉन्च करेगा INSAT-3DS सैटेलाइट्स
ISRO INSAT-3DS Mission: इसरो ने ब्लैक होल्स और सुपरनोवा की स्टडी के लिए नए साल के दिन एक्सपोसैट नाम के सैटेलाइट को लॉन्च किया. अब इस साल के दूसरे मिशन की बारी है.
ISRO: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) INSAT-3DS सैटेलाइट्स को लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है. इन सैटेलाइट्स को 'जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल' (GSLV-F14) जैसे सबसे अडवांस्ड रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा. इसरो के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि सैटेलाइट्स को फरवरी के पहले हफ्ते में लॉन्च किया जाएगा. 2024 के पहले दो हफ्ते में ही इसरो एक मिशन में कामयाबी हासिल कर चुका है और दूसरे मिशन की तैयारी की जा रही है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसरो अधिकारियों ने कहा कि पहले सैटेलाइट्स को जनवरी में ही लॉन्च किया जाना था. मगर अब इसे फरवरी में लॉन्च करने की संभावना है. हालांकि, उन्होंने ये भी बताया कि सैटेलाइट को लॉन्च व्हीकल के साथ जोड़ा जा रहा है और ऐसे में एजेंसी अब लॉन्च की फाइनल तारीख का इंतजार कर रही है. नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'इसके फरवरी के पहले हफ्ते में होने की संभावना है.'
क्यों लॉन्च किया जा रहा है मिशन?
दरअसल, भारत के अलग-अलग हिस्सों में मौसम बदलता रहता है. किसी जगह बारिश का अनुमान होता है तो किसी जगह सूखे का. बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में कई बार चक्रवाती तूफान भी आते हैं. जलवायु परिवर्तन भी एक ऐसी समस्या है, जिससे भारत को जूझना पड़ता है. ऐसे में इस तरह के बदलते मौसम के हालात पर नजर रखने के लिए हमें स्पेस में सैटेलाइट्स की जरूरत होती हैं, जिनके जरिए हर छोटे से छोटे बदलाव पर नजर रखी जा सके.
इसी कड़ी में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) बदलते मौसम पर नजर रखने के लिए अंतरिक्ष में 'क्लाइमेट ऑब्जर्वेटरी सैटेलाइट्स' भेजना चाहता है. INSAT-3DS मिशन के तहत मौसम की निगरानी के लिए सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग होगी. इस मिशन को क्लाइमेट सर्विस में सुधार के लिए इसरो और आईएमडी के बीच सहयोग के एक हिस्से में रूप में शुरू किया गया है. पृथ्वी की बदलती जलवायु पर नजर रखने के लिए INSAT-3D और INSAT-3DR पहले से ही स्पेस में हैं.
GSLV रॉकेट से होगी लॉन्चिंग
यहां गौर करने वाली बात ये है कि करीब आठ महीनों में ये GSLV की पहली लॉन्चिंग होगी. ये रॉकेट अधिकतम क्षमता वाला है और तीनों स्टेज के लिए 'क्रायोजेनिक लिक्विड प्रोपेलेंट्स' का इस्तेमाल करता है. इस लिक्विड ईंधन का इस्तेमाल करना थोड़ा जटिल होता है, लेकिन ये ज्यादा क्षमता के साथ लिफ्ट-ऑफ करने की ताकत देता है. भारत का दूसरा रॉकेट PSLV है, जिसमें सॉलिड फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता है.
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