दिल्ली: चंद्रयान 2 मिशन के बाद इसरो में चंद्रयान-3 के लिए तैयारियां जारी है. आपकों याद होगा कि चंद्रयान 2 मिशन के लैंडर विक्रम की रफ लैंडिंग हुई थी जिसके बाद मिशन से संपर्क टूट गया था. हालांकि ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में परिक्रमा कर रहा है. लगातार वहां से तस्वीरें भेज रहा है. इसके तुरंत बाद से ही इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन पर काम करना शुरू कर दिया था. चंद्रयान 3 मिशन में भी चंद्रयान 2 मिशन की ही तरह लैंडर और रोवर मौजूद रहेंगे.


दरअसल कोरोना महामारी के कारण इसरो को अपने 10 से ज्यादा मिशन को आगे धकेलना पड़ा है. जिनमें से चंद्रयान-3 मिशन भी एक है. चंद्रया-3 मिशन को अगले साल प्रक्षेपित किया जाना है और इसके लिए इसरो ने कमर कस ली है. इसरो चंद्रमा की सतह पर मौजूद उसी तरह की कृत्रिम जमीन कर्नाटका में बनाने जा रहा है. बेंगलुरु से 215 किलोमीटर दूर चलकेरे में चंद्रमा की सतह पर मौजूद उसी तरह की जमीन यानी वहां जैसे गड्ढे और उसी तरह की मिट्टी के जरिए चंद्रयान-3 की टेस्टिंग की जाएगी.


सफलतापूर्वक चांद पर उतारने के लिए चंद्रमा का कृत्रिम माहौल धरती पर तैयार किया गया था


आपकों याद होगा इससे पहले चंद्रयान-2 मिशन के लिए भी इसरो ने कर्नाटक के चलकेरे में ही एक ऐसी जमीन तैयार की थी जो कि बिल्कुल चंद्रमा की सतह जैसी थी. Chandrayaan-2 को सफल बनाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि लैंडिंग सबसे चुनौतीपूर्ण भरा रहा, जब लैंडर को चांद की सतह पर लैंड करना था. इसरो ने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को सफलतापूर्वक चांद पर उतारने के लिए चंद्रमा का कृत्रिम माहौल धरती पर तैयार किया था. एक ऐसी सतह का निर्माण किया गया था जो कि बिल्कुल चांद जैसी ही थी.


चांद जितना ही प्रकाश और उस पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी के लिए कई स्टूडियो से बात की गई थी. कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले के चलकेरे में इस सतह का निर्माण किया गया था. जहां लैंडर और रोवर को टेस्ट किया गया. प्रक्षेपण से पहले लैंडर और रोवर का टेस्ट इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि चांद की सतह पर गड्ढे मिट्टी और पत्थर मौजूद है. ऐसे में क्या लैंडर के पैर उस झटके को सहन कर पाएंगे साथ ही रोवर के पहिए क्या उस सतह है पर चल पाएंगे? इन तमाम एक्सपेरिमेंट का करना काफी महत्वपूर्ण था.


इसके लिए इसरो को जरूरत थी कुछ ऐसे ही पत्थर और मिट्टी की जो कि चांद की सतह से मिलते जुलते हो. ठीक चांद की सतह जैसी मिट्टी और चट्टान के लिए इसरो ने अमेरिका के नासा से संपर्क भी किया और इस का सौदा काफी महंगा पड़ रहा था. जिसका मूल्य $150 प्रति किलो था, यानी करीब 10000 प्रति किलो. इसरो को जरूरत थी करीब 60 टन मिट्टी चट्टान की. यानी साफ तौर पर बजट करोड़ों का किया जा रहा था.


25 करोड़ के बजट को 10 से 12 लाख में पूरा किया गया


जिसके बाद इसरो ने एक स्थानीय समाधान की तलाश की. कई भूवैज्ञानिकों ने इसरो को बताया कि तमिलनाडु में सलेम के पास नामक्कल जिले के दो गांवों में एनॉर्थोसाइट चट्टानें हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी से 90 फ़ीसदी मिलती-जुलती है. इसरो ने चांद की मिट्टी के लिए तमिलनाडु के सीतमपोंडी और कुन्नामलाई गांवों से एनॉर्थोसाइट चट्टानों को लेने का निर्णय लिया.


चट्टानों को आवश्यक आकार में तब्दील किया गया और ज्यादातर इसके नेनोपार्टिकल्स बनाए गए. इसके बाद बेंगलुरु स्थित परीक्षण केंद्र भेज दिया गया. इस काम के लिए शुरुआती बजट 25 करोड़ रुपये था, लेकिन सेवा प्रदाता ने कुछ ना लेने के लिए यह सौदा काफी सस्ता पड़ गया. आपको बता दें कि जिस काम के लिए इसरो ने 25 करोड़ का बजट रखा था आप ये जानकर हैरान होंगे कि वह काम महज़ 10 से 12 लाख में पूरा हो गया. साथ ही कई एक्सपर्ट्स ऐसे भी थे जिन्होंने बिना सैलरी इस पर काम किया.


चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश जिस वेग से पड़ता है और उसकी प्रदीप्ति जितनी होती है, उसी अनुपात में परीक्षण स्थल पर रौशनी की व्यवस्था की गई. जिसके बाद इसका परीक्षण शुरू हुआ. शुरुआत में रोवर प्रज्ञान में चार पहिये लगे थे. लेकिन परीक्षण के बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने इसे और अधिक स्थिरता देने के लिए इस में छह पहिये लगाए. कुछ बदलाव पहियों के आकार के साथ भी किए गए.


आपकों बता दें कि धरती से चांद पर गुरुत्वाकर्षण कम है यानी अगर कोई वस्तु धरती पर 100 किलो की है तो वह वस्तु चांद पर महज 17 किलो की ही होगी. यही कारण है कि जब धरती पर चंद्रमा की सतह का निर्माण किया गया तब रोवर के भार को कम करने और धरती से कम होने वाले चांद के गुरुत्व बल से तारतम्य बैठाने के लिए उसके साथ हीलियम के गुब्बारे लगाए गए.


चंद्रयान-3 मिशन की तैयारियां शुरू हुई


रोवर और लैंडर के बीच संचार क्षमताओं का परीक्षण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में किया गया. इसका परीक्षण कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले के चल्लकेरे में किया गया. लैंडर विक्रम का परीक्षण भी कुछ इसी तरह हुआ. चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान इंजन शुरू होते ही चांद की सतह पर मौजूद मिट्टी और बाकी पार्टिकल उड़ेंगे और लैंडर में लगे सेंसर या सोलर पैनल पर जम सकते हैं. ऐसे में सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान यह चुनौती सबसे बड़ी होती है.


सॉफ्ट-लैंडिंग से पहले लैंडर विक्रम के सेंसर यह जांचेंगे कि क्या उतरने वाला भूभाग सुरक्षित है या नहीं. लैंडिंग के बाद भी अगर इलाक़ा उपयुक्त नहीं है तो लैंडर वापस ऊपर उठकर पास के किसी स्थिर जगह पर लैंड कर सकता है या नहीं. इसरो टीम ने एनआरएससी (नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर) के बनाए गए सेंसर को छोटे प्लेन में लगाया और सेंसर की जांच करने के लिए इसे दो बार कृत्रिम सतह के ऊपर उड़ाया.


जिससे कि यह पता लगाया जा सके कि जब सॉफ्ट लैंडिंग होगी तो उससे पहले लेंडर के सेंसर चांद की सतह को सही से पढ़ पाते हैं या नहीं. जिससे वास्तविक रूप से उतरने में लैंडर को कोई दिक्कत न आए. लैंडर के एक्युटेटर्स महेंद्रगिरि के इसरो सेंटर में जांचे गए. यहीं इसके थ्रस्टर्स की भी जांच की गई. लैंडर के पैर की दो परिस्थितियों में जांच की गई. एक उतरते समय इंजन बंद करके और दूसरा इंजन चालू रहते.


जिस तरह से चंद्रयान 2 मिशन के लिए यह तमाम तैयारियां की गई कुछ उसी तर्ज पर अब चंद्रयान-3 मिशन के लिए भी तैयारियां की जा रही है. हर एक पेलोड को उसी तरह से जाना और परखा जाएगा जो कि चंद्रयान-2 मिशन में किया गया था.


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