RLV-TD Landing Experiment: अंतरिक्ष में 'आत्मनिर्भर भारत' की एक और छलांग लगने वाली है जो देश को बेमिसाल ताकत देने के साथ ही स्पेस मिशन की लागत भी कम कर सकेगी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की ओर बहुप्रतीक्षित स्पेस शटल 'रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल'  (RLV-TD) का लैंडिंग एक्सपेरिमेंट (LEX) (जमीन पर उतारने का प्रयोग) किया जाने वाला है. इसरो के चेयरमैन डॉक्टर एस सोमनाथ (S Somanath) ने जानकारी दी कि आरएलवी का लैंडिंग एक्सपेरिमेंट आने वाले शनिवार (28 जनवरी) को होगा. 


इस यान के लैंडिंग एक्सपेरिमेंट की तारीख कई बार घोषित की जा चुकी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरएलवी को हेलिकॉप्टर की मदद से चार किलोमीटर तक की ऊंचाई पर ले जाया जाएगा और फिर वहां से उसे लैंडिंग के लिए छोड़ दिया जाएगा. इसके बाद यह यान स्वयं ग्लाइड करेगा इसके लिए तय की गई एयरफील्ड के रनवे की ओर नेविगेट होता हुआ लैंड कर जाएगा. लैंडिंग के लिए कर्नाटक के चल्लाकरे के डिफेंस रनवे को चुना गया है.


आरएलवी क्यों है खास?


रिपोर्ट्स के मुताबिक, जैसा कि इसके नाम- रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (फिर से इस्तेमाल में आने वाला वाहन) से इसकी खासियत जाहिर है, यह एक ऑर्बिटल री-एंट्री व्हीकल (ORV) (पृथ्वी की कक्षा में फिर से प्रवेश करने वाला वाहन) है. यह पूरी तरह से स्वदेशी है. माना जा रहा है कि इस वाहन यानी यान के सभी परीक्षण सफल रहने पर इसके जरिये सैटेलाइट लॉन्च करने और दुश्मनों के सैटेलाइट को निशाना बनाकर उन्हें नष्ट करने का काम किया जा सकेगा. 




(Image Courtesy: @Vishesh03625993)


इस यान के जरिये डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) (उर्जा किरण से लक्ष्यों को भेदने वाले हथियार) चलाए जा सकेंगे. यह यान अंतरिक्ष से यह काम कर पाएगा यानी के दुश्मनों के लिए यह एक आफत की भूमिका में होगा. इसकी सफलता से युद्ध के तरीके में भी बदलाव आएगा, ऐसी संभावना जताई जा रही है. इसरो ने 2030 तक आरएलवी प्रोजेक्ट को सफल बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. 


कैसे बचेगी स्पेस मिशन की लागत?


अभी सैटेलाइट लॉन्च के लिए रॉकेट का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें भारी लागत आती है. आरएलवी को इस तरह तैयार किया जा रहा है कि यह सैटेलाइट को अंतरिक्ष में ले जा सके, वहां से वापस सुरक्षित लौट सके और फिर इसे अगले मिशन के लिए तैयार किया जा सके. माना जा रहा है कि इससे सैटेलाइट लॉन्च में आने वाला खर्च 10 फीसदी तक कम हो जाएगा. कहा जा रहा है कि आने वाले समय में इसके एडवांस वर्जन से अंतरिक्षयात्री भी स्पेस की सैर कर सकेंगे. 


कौन-कौन से देश के पास है यह स्पेस शटल?


अमेरिका, रूस, चीन और फ्रांस के पास यह स्पेस शटल मौजूद होने की बात कही जाती है. रूस ने सन 89 में ऐसा स्पेस शटल बना लिया था लेकिन कहा जाता है कि उसने केवल एक बार उड़ान भरी थी. भारत में बन रहा स्पेस शटल फिलहाल प्रयोग के लिहाज से प्रस्तावित आकार से छह गुना छोटा बनाया गया है. परीक्षण सफल होने पर भविष्य में यह अपना असली आकार लेगा.


कैसा रहा था आरएलवी का पहला टेस्ट?


मई 2016 में पहली बार आरएलवी को एक रॉकेट में जोड़कर इसकी हाइपरसॉनिक (ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा रफ्तार से) उड़ान कराई गई थी, तब यह 65 किलोमीटर की ऊंचाई तक गया था और बंगाल की खाड़ी में लैंडिंग की थी. इसके साढ़े छह मीटर लंबे वर्जन का वजन 1.75 टन बताया जाता है.  


फिलहाल आरएलवी टू स्टेज टू ऑर्बिट (TSTO) कॉन्सेप्ट वाला यान है. इसको ऐसे समझिए कि पहली स्टेज में पंख वाला आरएलवी स्वयं है और दूसरे स्टेज में इसे एक रॉकेट से जोड़ दिया जाता है. रॉकेट इसे पृथ्वी में कक्षा में ले जाने के लिए है. भविष्य में इसे पहली स्टेज का यान बनाने का लक्ष्य है.


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