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ISRO Reusable Rockets: स्पेस में बड़ी छलांग को तैयार इसरो, लॉन्च के बाद दोबारा इस्तेमाल हो सकेंगे रॉकेट, पहला परीक्षण जल्द

ISRO Mission: कम लागत में दोबारा इस्तेमाल वाले प्रक्षेपण यान तैयार हो जाने से हरअंतरिक्ष प्रक्षेपण और उड़ान पर कम खर्च होगा. इससे भविष्य में अंतरिक्ष पर्यटन की संभावनाओं को मजबूती मिलेगी.

ISRO Space RLV-TD: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक कम लागत में दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रक्षेपण यान बनाने में जुटे हैं. अब इस प्रक्षेपण यान के पहले लैंडिग प्रयोग के लिए इसरो तैयार है. ऐसे प्रक्षेपण यान को Reusable Launch Vehicle-Technology Demonstrator (RLV-TD) कहते हैं. 

दोबारा इस्तेमाल हो सकेगा लॉन्च व्हीकल 

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने पीटीआई से बातचीत में जानकारी दी है कि इसरो कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में स्थित अंतरिक्ष परीक्षण रेंज से Reusable Launch Vehicle-Technology Demonstrator के पहले रनवे लैंडिंग प्रयोग (RLV-LEX) के लिए तैयार है. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि इसके लिए मौसम की मॉनिटरिंग की जा रही है. 

पहले रनवे लैंडिंग प्रयोग के लिए तैयार

इसरो के अधिकारियों के मुताबिक RLV विंग बॉडी को एक हेलीकॉप्टर की मदद से तीन से पांच किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाया जाएगा और क्षैतिज वेग के साथ रनवे से करीब चार से पांच किलोमीटर पहले छोड़ा जाएगा. छोड़ने के बाद Reusable Launch Vehicle धीमी गति से उड़ान भरेगा, रनवे की तरफ आएगा और चित्रदुर्ग के पास डिफेंस एयरफील्ड के एक क्षेत्र में लैंडिंग गियर के साथ खुद ही उतरेगा. इसके लिए लैंडिंग गियर (Landing gear),पैराशूट (Parachute), हुक बीम असेंबली ( Hook beam assembly, रडार अल्टीमीटर (Radar altimeter) और सियुडोलाइट (Pseudolite) जैसे नए सिस्टम विकसित किए गए हैं. इसरो ने अपने पहले RLV-TD HEX-01 (Hypersonic Flight Experiment-01) मिशन को 23 मई, 2016 को SDSC SHAR के साथ भेजा था. इसके जरिए डिजाइन और परीक्षण के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया था.

सैटेलाइट प्रक्षेपण में लागत कम करने पर ज़ोर

कम लागत में दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रक्षेपण यान तैयार हो जाने से हर अंतरिक्ष प्रक्षेपण और उड़ान पर कम खर्च होगा. इससे भविष्य में अंतरिक्ष पर्यटन की संभावनाओं को मजबूत आधार मिल सकेगा. इस तकनीक के विकास का मकसद स्पेस से जुड़े कॉमर्शिलय पहलू पर पकड़ मजबूत बनाना है. इसरो प्रमुख एस सोमनाथ पहले ही कह चुके हैं कि रीयूजेबल व्हीकल सिर्फ व्यवसायिक क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि रणनीतिक क्षेत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. इससे भारत भी अंतरिक्ष में अपने पेलोड भेजकर वापस सुरक्षित ला सकेगा.

भविष्य में किस तरह के लॉन्च व्हीकल बन सकते हैं और लॉन्चर की लागत को कैसे कम किया जा सकता है, इस दिशा में इसरो तेज़ी से काम कर रहा है. फिलहाल एक प्रक्षेपण की कीमत 20 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम है. इसे 5 हजार डॉलर तक लाने की दिशा में इसरो काम कर रहा है. इसरो के पास अभी दो तरह के प्रक्षेपण यान हैं. भारत काफी सालों से अपने पृथ्वी की निचली कक्षा में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) पर अपने कंज्यूमर सैटेलाइट प्रक्षेपित करता आ रहा है.  

इससे पहले इसरो के चेयरमैन सोमनाथ ने कहा था कि इसरो आने वाले सालों में अंतरिक्ष क्षेत्र में सबसे लेटेस्ट तकनीक विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास पर अधिक से अधिक ध्यान केंद्रित करेगा. उन्होंने देश में इसरो और वैज्ञानिक संगठनों के बीच संपर्क बढ़ाने की जरूरत पर भी ज़ोर दिया ताकि स्पेस टेक्नोलॉजी में बड़े स्तर पर अनुसंधान और विकास गतिविधियों को अंजाम दिया जा सके.

यह भी पढ़ें: ISRO: मंगल ग्रह पर लौटेगा इसरो, शुक्र पर भी है नजर, मिशन में जापान का मिलेगा साथ

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