ISRO जासूसी मामले में पांच के खिलाफ चार्जशीट दाखिल, जानें क्या है मामला, जिसमें रॉकेट की तस्वीरें पाकिस्तान से शेयर करने के लगे थे आरोप
साल 1994 में इसरो के तत्कालीन सायरोजेनिक्स विभाग के प्रमुख नंबी नारायण पर रॉकेट की तस्वीरें और स्वदेशी तकनीक दूसरे देशों से साझा करने के आरोप लगे थे. सीबीआई की जांच में ये आरोप झूठे निकले.
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने 1994 के इसरो जासूसी मामले में पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. अंतरिक्ष वैज्ञानिक नंबी नारायणन को कथित तौर पर फंसाने के सिलसिले में यहां तिरुवनंतपुरम की एक अदालत में यह चार्जशीट दाखिल की गई है. सूत्रों ने बुधवार (26 जून, 2024) को बताया कि अभी यह नहीं पता चल सका है कि किन लोगों के खिलाफ चारजशीट दाखिल की गई है.
सूत्रों के मुताबिक अभी यह पता नहीं चल पाया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद 2021 में दर्ज इस मामले में किसके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल, 2021 को आदेश दिया था कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक नारायणन से जुड़े 1994 के जासूसी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को दी जाए.
केरल पुलिस ने अक्टूबर 1994 में दो मामले दर्ज किए थे. मालदीव की नागरिक रशीदा को तिरुवनंतपुरम में गिरफ्तार किया गया था. उस पर आरोप था कि उसने पाकिस्तान को बेचने के लिए इसरो के रॉकेट इंजन के गोपनीय चित्र प्राप्त किए थे. इस मामले में इसरो में क्रायोजेनिक परियोजना के तत्कालीन निदेशक नारायणन को तत्कालीन इसरो उपनिदेशक डी शशिकुमारन के साथ गिरफ्तार किया गया था. इसके अलावा, रशीदा की दोस्त फौजिया हसन को गिरफ्तार किया गया था. सीबीआई जांच में यह आरोप झूठे पाए गए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में मंबी नारायण के खिलाफ की गई कार्रवाई को साइकोपेथोलॉजिकल ट्रीटमेंट करा दिया था. कोर्ट ने कहा कि उन्हें कस्टडी में लिए जाने की वजह से उनकी स्वतंत्रता और गरिमा खतरे में पड़ गई, जो उनके बुनियादी मानवाधिकार हैं. अतीत में उन्होंने अपने कार्यों के जरिए जो कमाया, वह इस कार्रवाई की वजह से खतरे में पड़ गया.
क्या है पूरा इसरो स्पाई मामला?
नवंबर, 1994 में नंबी नारायणन पर आरोप लगा था कि उन्होंने भारतीय के स्पेस प्रोग्राम से जुड़ी कुछ गोपनीय तस्वीरें एजेंटों से साझा की थीं. इसके बाद उन्हें केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उस वक्त वह इसरो के सायरोजेनिक्स विभाग के प्रमुख थे और स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बना रहे थे. उन पर स्वेदशी तकनीकी विदेशों को बेचने के आरोप लगे थे. सीबीआई जांच में यह पूरा मामला झूठा निकला और 1998 में उन्हें बेदाग साबित कर दिया गया. नारायणन ने उन्हें फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया.
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