ISRO 14 फरवरी को प्रक्षेपित करेगा इस साल का अपना पहला PSLV सी52 अभियान
ISRO: इसी साल जनवरी में ही भारत सरकार ने रॉकेट वैज्ञानिक एस सोमनाथ को इसरो का प्रमुख नियुक्त किया था. एस सोमनाथ ने GSLV Mk-III लॉन्चर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
ISRO launches Satellite: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 2022 का अपना पहला अभियान 14 फरवरी को शुरू होगा और पीएसएलवी-सी52 द्वारा पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह ईओएस-04 को कक्षा में स्थापित किया जाएगा. बेंगलुरु स्थित इसरो मुख्यालय की ओर से कहा गया कि सोमवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के प्रथम ‘लांच पैड’ से सुबह पांच बजकर 59 मिनट पर ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी सी52) को रवाना किया जाएगा.
इसरो ने कहा कि पीएसएलवी सी52 को 1,710 किलोग्राम वजनी ईओएस-04 उपग्रह को 529 किलोमीटर की सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करने के लिए बनाया गया है. पीएसएलवी सी52 अभियान में दो और छोटे उपग्रहों को स्थापित किया जाएगा. ईओएस-04 एक रडार इमेजिंग उपग्रह है जो हर मौसम में कृषि, वनस्पति, मृदा में नमी और अन्य चीजों के लिए उच्च गुणवत्तापूर्ण चित्र भेजेगा.
जनवरी में ही इसरो को मिले थे नए चीफ
जनवरी में ही भारत सरकार ने रॉकेट वैज्ञानिक एस सोमनाथ को इसरो का प्रमुख नियुक्त किया था. एस सोमनाथ ने GSLV Mk-III लॉन्चर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. एस सोमनाथ ने ISRO में वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख के सिवन की जगह ली थी.
एस सोमनाथ ने अपना पद संभालते ही मीडिया से बातचीत में कहा था कि भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए व्यापार के अवसर प्रदान करने के वास्ते विकसित करने की जरूरत है और भावी पीढ़ियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में बदलाव करने की भी आवश्यकता है.
इसरो को और अधिक अवसर दिये जाने की आवश्यकता पर दिया था बल
इसरो प्रमुख ने कहा था कि वर्तमान में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ISRO तक ही सीमित है, लेकिन सरकार अब चाहती है कि इस क्षेत्र में नए लोग आएं. सोमनाथ ने अंतरिक्ष बजट को मौजूदा 15,000-16,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20,000-50,000 करोड़ रुपये से अधिक किए जाने की आवश्यकता जताते हुए कहा, ‘‘लेकिन अंतरिक्ष बजट में वृद्धि केवल सरकारी धन या समर्थन से नहीं हो सकती है."
इसरो प्रमुख ने आगे कहा कि दूरसंचार और हवाई यात्रा जैसे क्षेत्रों में जो बदलाव हुए हैं वही बदलाव यहां भी होना चाहिए. इससे रोजगार के अधिक अवसर सृजित हो सकते हैं और अनुसंधान एवं विकास बढ़ सकता है.” उन्होंने स्पष्ट किया कि हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि इसरो का निजीकरण किया जा रहा है.