नई दिल्ली: इसरो यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने आज अपना आठवां रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च करेगा. आज शाम 7 बजे श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पेड से 'आईआरएनएसएस-1 एच' की लॉन्चिंग होगी, इसे पीएसएलवी-सी 39 की मदद से अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा.
'नाविक' श्रृंखला के मौजूदा सात उपग्रहों में संवर्धन के लिए नौवहन उपग्रह 'आईआरएनएसएस-1एच' के गुरुवार को होने वाले प्रक्षेपण के लिए 29 घंटे की उल्टी गिनती रखी गई. 'आईआरएनएसएस-1एच' नौवहन उपग्रह 'आईआरएनएसएस-1ए' की जगह लेगा, जिसकी तीन रुबीडियम परमाणु घड़ियों (एटॉमिक क्लॉक) ने काम करना बंद कर दिया था. 'आईआरएनएसएस-1ए' 'नाविक' श्रृंखला के सात उपग्रहों में शामिल है.
प्रक्षेपण के लिए पीएसएलवी-सी39 पीएसएलवी के 'एक्सएल' संस्करण का इस्तेमाल करेगा। 1,400 किलोग्राम से ज्यादा वजन के 'आईआरएनएसएस-1एच' का निर्माण इसरो के साथ मिलकर छह छोटी-मझौली कंपनियों ने किया है. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है, जिसे भारत ने अमेरिका के जीपीएस की तर्ज पर विकसित किया है.
हालांकि अमेरिका का जीपीएस ग्लोबल है जबकि भारत का आईआरएनएसएस क्षेत्रीय है. हालांकि इसरो का यह भी कहना है कि न्यूक्लियर वॉचेज का बंद पड़ना बहुत समस्या नहीं है. इससे पहले रूस और यूरोपियन स्पेस एजेंसियों के प्रोग्राम में भी इस तरह की दिक्कत हुई है. आईआरएनएसएस का पहला हिस्सा 1 जुलाई 2013, दूसरा अप्रैल 2018 को लांच किया गया.
अब तक कुछ ही देशों ने अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम तैयार किया है भारत उस इलाइट क्लब में शामिल हो चुका है. इसके अलावा
अमेरिका का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, रूस का ग्लोनास, यूरोप का गैलीलियो, चीन का बेदोउ और जापान का क़वासी जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम
ये वो देश है जिनके पास खुद का नेविगेशन सिस्टम है.
यह पहला मौका है जब किसी सॅटॅलाइट के लिए सीधे तौर पर प्राइवेट कम्पनीज को शामिल किया गया है. इन प्राइवेट कम्पनीज का 25% का योगदान रहा है. एक बार लांच के बाद अपनी लोकेशन बेस्ड सर्विसेस रेलवेज सर्वे, और दूसरी कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण साबित होगा.