नई दिल्ली: देश की उच्च और सर्वोच्च अदालत में जजों की नियुक्ति को कॉलेजियम के ज़रिए करने को लेकर राज्यसभा में सवाल उठा. बीजेपी से राज्यसभा सांसद अशोक वाजपेई ने कॉलेजियम सिस्टम पर यह कहते हुए सवाल उठाए कि इस सिस्टम की वजह से कई ऐसे लोग वंचित रह जाते हैं जो वाकई में हकदार होते हैं.
जजों की नियुक्ति में जातिवाद, परिवारवाद और वंशवाद का बोलबाला
अशोक वाजपेई ने राज्यसभा में चर्चा के दौरान एक मामले का जिक्र करते हुए कहा की इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के दौरान जातिवाद परिवारवाद और वंशवाद का बोलबाला होने की बात कही. चिट्ठी में कहा गया कि जजों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि अन्य पैमानों के आधार पर होती है.
इंडियन ज्यूडिशल कमिशन के ज़रिए हो नियुक्ति !
अशोक वाजपेई ने कहा कि भारतीय संविधान में कॉलेजियम सिस्टम का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है. अगर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति करनी है तो इंडियन ज्यूडिशल कमिशन का गठन होना चाहिए और उसके जरिए ही नियुक्ति होनी चाहिए. जिससे कि जातिवाद, परिवारवाद और वंशवाद जैसे आरोप न लग पाएं.
क्या होता है कॉलेजियम और कैसे होती है जजों की नियुक्ति
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के 5 वरिष्ठ जजों की कमेटी कॉलेजियम का हिस्सा होती है. यही कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाई कोर्ट में होने वाली जजों की नियुक्ति की मंजूरी देता है जो कि सरकार के पास जाती है. अगर सरकार उसको उसको मंजूर करती है तो फिर जजों की नियुक्ति सीधे हो जाती हैं और अगर सरकार उन नामों में से कुछ नामों पर आपत्ति जताती है तो एक बार फिर मामला कॉलेजियम के पास आता है लेकिन अगर कॉलेजियम सरकार के पास फिर से उसी नाम को भेजती है तो सरकार की तरफ से उस नाम को मंजूरी देने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं रह जाता.
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