नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के 12 कॉलेजों में टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्टाफ को वेतन मिलने का रास्ता साफ हो गया है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कॉलेज प्रशासन के साथ बैठक में 28.24 करोड़ रुपए जारी करने का आदेश दिया. सरकार ने किसी भी स्थिति में कॉलेजों के स्टाफ की तन्ख्वाह नहीं रुकने का आश्वासन दिया. बैठक में मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, गवर्निंग बॉडी सदस्य, कॉलेजों के चेयरपर्सन, प्रिंसिपल और लेखा अधिकारी मौजूद रहे.


DU के कॉलेज कर्मियों को वेतन मिलने का रास्ता साफ


बैठक में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से कॉलेजों के स्टाफ को वेतन नहीं मिलने की शिकायत सामने आ रही थी. दिल्ली सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में सुधार के लिए जानी और पहचानी जाती है. लेकिन, दिल्ली सरकार की नीयत की गलत व्याख्या की जा रही है. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के बीच गलतफहमी पैदा हुई है.


केजरीवाल ने बैठक में स्पष्ट किया कि वेतन के मुद्दे पर सरकार साथ है. पिछले कुछ वर्षों से डीयू के अधिकारियों और वीसी से बातचीत शुरू करने की कोशिश की है, लेकिन दोनों संस्थाओं के बीच राजनीतिक मतभेद की समस्या है. दिल्ली सरकार की तरफ से आज एक नई शुरुआत हुई है. दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारियों और डीयू के कुलपति की ओर से भी बातचीत शुरू करने की जरूरत है, जिससे विवादास्पद लंबित मुद्दों को सुलझाया जा सके.


 सरकार ने 28.24 करोड़ जारी करने का दिया आदेश


मुख्यमंत्री ने बताया कि दिल्ली सरकार वित्त पोषित दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों को 28.24 करोड़ रुपए की राशि जारी करने जा रही है. मामला कोर्ट में विचाराधीन रहने तक स्टाफ का वेतन रोकना सरकार की मंशा नहीं है. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कोर्ट निर्णय लेगी कि कॉलेजों के विभिन्न मदों में मौजूद रकम राजस्व या किसी अन्य मद में शामिल किया जाए या नहीं.


शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि दिल्ली सरकार से सौ फीसद वित्तपोषित 12 कालेज खर्च बढ़ाने संबंधी कोई भी निर्णय दिल्ली सरकार को विश्वास में लेकर ही करें. साथ ही, दिल्ली सरकार और डीयू के बीच की खाई को पाटने के लिए कॉलेजों के खातों और बजट में 100 प्रतिशत पारदर्शिता सुनिश्चित होनी चाहिए.


मनीष सिसोदिया ने कहा कि उन्होंने पिछले पांच साल के दौरान विभिन्न परियोजनाओं के लिए कॉलेजों को धनराशि स्वीकृत की है. लेकिन संघटक कॉलेजों को 100 प्रतिशत पारदर्शिता बरतने की आवश्यकता है. अगर आप अपनी तरफ से पारदर्शिता बरतते हैं, तो दिल्ली सरकार भी पारदर्शी तरीके से फंड देने को तैयार है. कॉलेजों के खातों और बजट में यह सारे खर्च स्पष्ट तौर पर दिखाई देने चाहिए.


उन्होंने नसीहत दी कि 100 प्रतिशत वित्त पोषित संस्थान दिल्ली सरकार की सहायता के पैटर्न का पालन करें. कॉलेजों को दिल्ली सरकार पर अनावश्यक वित्तीय बोझ नहीं डालना चाहिए. उदाहरण के तौर पर, उम्मीद की जाती है कि दिल्ली सरकार 2010 से पहले नियुक्त किए गए टीचिंग स्टॉफ की तनख्वाह का भुगतान करे, जबकि दिल्ली सरकार के पास 2010 से पहले टीचिंग स्टाफ की नियुक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं है.


कॉलेजों को स्टाफ की नियुक्ति से पहले पूर्व अनुमति लेनी चाहिए, क्योंकि दिल्ली सरकार उनके वेतन और अन्य खर्चों की फंडिंग करती है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो ये दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से अव्यवहारिक और अनुचित दृष्टिकोण माना जाएगा. इसके साथ ही गवर्निंग बॉडी दिल्ली विश्वविद्यालय और दिल्ली सरकार के बीच एक पुल का काम करती है, हम उन्हें खत्म नहीं कर सकते. उनकी टाइम लाइन को जितनी जल्दी हो सके, बढ़ाया जाना चाहिए.


ऐसा देखा गया है कि कॉलेज यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जारी करने में देरी करते हैं. देरी को खत्म करने की जरूरत है, ताकि अधिकारी कुशलता पूर्वक काम करें और जल्द से जल्द फंड जारी करने का रास्ता साफ हो सके. सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कई लंबित मुद्दों को सुलझाने की जरूरत है. उनकी मंशा कॉलेजों की छवि खराब करने की नहीं है. कॉलेज अपनी रैंकिंग में सुधार करें, क्योंकि कॉलेजों की सफलता ही हमारी सफलता है. शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के कार्यालय की तरफ से कुलपति को लंबित मुद्दों पर बातचीत के लिए निमंत्रण भेजा जाएगा.


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