नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों द्वारा खुद ही अपने लिए वेतन तय करने पर सवाल उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसदों द्वारा खुद ही अपने वेतन और भत्ते तय करना नैतिकता का मुद्दा है. अदालत ने आंकड़ा मांगा कि पूर्व सांसदों के पेंशन और अन्य सुविधाओं पर कितनी राशि खर्च होती है.
अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ से कहा कि वित्त विधेयक2018 में सांसदों के वेतन और भत्ते से संबंधित प्रावधान हैं और एक अप्रैल 2023 से मूल्य वृद्धि सूचकांक के आधार पर उनके भत्तों की समीक्षा की भी व्यवस्था है.
वेणुगोपाल ने पांच सदस्यीय न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का भी जिक्र किया और कहा कि याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों को एक बड़ी बेंच देख रही है. सांसदों के वेतन और भत्ते तय करने के लिए स्वतंत्र प्रणाली गठित करने के अदालत के सवाल पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वेतन तय करने के लिए विस्तृत प्रक्रिया का पहले ही पालन किया जा रहा है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के एक वकील ने जब पूर्व सांसदों को पेंशन और कई अन्य सुविधाएं दिए जाने से राजस्व पर बोझ का मुद्दा उठाया तो पीठ ने पूछा, क्या आपके पास कोई आंकड़ा है कि इस पर कितनी राशि खर्च हुई है? वकील ने कहा कि वे इस बारे में उच्चतम न्यायालय के समक्ष आंकड़ा पेश करेंगे.
वकील ने कहा कि किसी सांसद की मृत्यु के बाद उसके परिवार के सदस्य भी आजीवन पेंशन पाने के हकदार हो जाते हैं. हालांकि कोर्ट ने कहा कि सांसदों द्वारा खुद ही अपने वेतन और भत्ते तय करना नैतिकता का मुद्दा है.