पिछले आठ महीने से एलएसी पर चीन से डटकर मुकाबला कर रही आईटीबीपी ने अपने केनाईन (‘के9’) स्कॉवयड के नए श्वान-योद्धाओं (डॉग्स) का नामकरण पूर्वी लद्दाख के महत्वपूर्ण नामों पर किया है. ऐसे में इन छोटे-छोटे डॉग्स में किसी का नाम गलवान रखा गया है तो किसी का दौलत (दौलत बेग ओल्डी) तो किसी का श्योक, मुखपरी और सिरिजैप.
इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) के पंचकुला स्थित नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फ़ॉर डॉग्स (एनटीसीडी) में बुधवार को एक खास नामकरण-समारोह का आयोजन किया गया. ये खास इसलिए था क्योंकि नामकरण आईटीबीपी के पप्पीज़ (पप्स) का होना था. परंपरा पर आधारित होने वाले पाश्चात्य नामों को दरकिनार करते हुए आईटीबीपी ने पहली बार किसी भी सशस्त्र बल में अपने पप्स को देसी नाम देने का प्रचलन प्रारंभ कर दिया है. नाम भी ऐसे वैसे नहीं, पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी एलएसी के उन इलाकों के जहां पिछले आठ महीने से भारत और चीन की सेनाओं में टकराव चल रहा है और हिंसक-संघर्ष भी हो चुका है.
औपचारिक नामकरण समारोह में 2 महीने पहले जन्मे योद्धा-मैलिनोईस श्वानों के नाम रखे. इन 17 श्वानों, जिनके पिता का नाम ‘गाला’ और माताओं का नाम ‘ओलगा’ और ‘ओलिशिया’ हैं, उनके नए नाम हैं- गलवान, ससोमा, सिरिजाप, चिप चाप, सासेर, चार्डिंग, रेजांग, दौलत, सुल्तान-चुस्कू, इमिस, रांगो, युला, मुखपरी, चुंग थुंग, खार्दुंगी, आने-ला और श्योक.
समारोह में आईटीबीपी के डीआईजी, के सुधाकर नटराजन ने सैन्य परंपरा के तहत स्वार्ड (तलवार) को इन पप्स के सर पर रखकर के9 स्कॉवयड में शामिल किया. इस दौरान सभी जवानों के लिए खास ‘बड़ा-खाना’ भी आयोजित किया गया--ऐसा भोज जिसमें अधिकारी और जवानों ने एक साथ खाना खाया.
आईटीबीपी के प्रवक्ता, विवेक पांडेय के मुताबिक, सुप्रसिद्ध के-9 विंग के इन श्वानों को आईटीबीपी ने नामकरण समारोह में उन नामों को देश की सुरक्षा में लगे जवानों को समर्पित किया है जो बहुत मुश्किल परिस्थितियों में देश की सुरक्षा कर रहे हैं. योद्धा-श्वानों को लद्दाख के उन महत्वपूर्ण इलाकों के नाम दिए गए हैं जहां आइटीबीपी पिछले 6 दशकों से देश की सीमा की सुरक्षा कर रही है और पिछले आठ महीने से तनाव चल रहा है. आपको बता दें कि एलएसी पर टकराव के वक्त भारतीय सेना के साथ साथ आईटीबीपी के जवान भी इस वक्त विषय परिस्थितियों और मौसम में तैनात हैं.
जानकारी के मुताबिक, आईटीबीपी ने अब यह भी योजना बनाई है कि अब से नवजात श्वानों का भी इसी प्रकार सीमा पर स्थित इलाकों के नामों पर नामकरण किया जाएगा. साथ ही काराकोरम पास (पूर्वी लद्दाख) से जचेप ला (अरूणाचल प्रदेश) तक 3488 किलोमीटर लंबी भारत चीन सीमा पर प्रसिद्ध स्थानों के नामों पर श्वानों का नाम रखा जाएगा.
नक्सल रोधी अभियानों में आईटीबीपी ने पहली बार एक दशक पूर्व मैलिनोईस श्वानों को तैनात किया था और अब सुरक्षा बलों में इन श्वानों की बढ़ती मांग को देखते हुए आईटीबीपी ने इन श्वानों की वैज्ञानिक पद्धति से ब्रीडिंग भी प्रारंभ कर दी है.
1962 में भारत चीन सीमा संघर्ष के दौरान गठित आईटीबीपी में फिलहाल लगभग 90000 जवान हैं, सीमा सुरक्षा के अलावा आईटीबीपी कई अन्य सुरक्षा कर्तव्यों में तैनात है.
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