LAC पर चीन से निपटने के लिए तैयार हैं ITBP के 'हिमवीर', जानिए कैसी चल रही है तैयारी
आईटीबीपी की स्थापना 1962 में चीन के युद्ध के समय में ही हुई थी. आईटीबीपी ही चीन से सटी 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर सबसे आगे तैनात रहती है.
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लद्दाख: LAC पर चीन से मुकाबला करने में सेना के साथ साथ ITBP भी पूरी तरह से तैनात है. ऐसे में आईटीबीपी भी सर्दियों के लिए तैयारी कर रही है. पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर तैनात आईटीबीपी के जवानों के लिए स्पेशल क्लोथिंग से लेकर टेंट और रॉक-क्लाईम्बिंग एक्यूपमेंट भेजे जा रहे हैं, जिससे एलएसी की उंची पहाड़ियों को 'डोमिनेट' किया जा सके. क्या हैं आईटीबीपी की तैयारियां, ये जानने के लिए एबीपी न्यूज की टीम पहुंची लेह-लद्दाख के एक कैंप में, जहां से हिमवीरों के लिए ये सारा सामान एलएसी की तरफ जा रहा था.
एबीपी न्यूज की टीम जब आईटीबीपी यानि इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस के कैंप में पहुंची तो देखा कि ट्रक में सामान लादा जा रहा है. इन कार्टन्स में जवानों के लिए खाख जैकेट्स, बूट्स, बुखारी (अंगीठी), टेंट और रॉक-क्लाईम्बिंग यानि पहाड़ों पर चढ़ने कए एक्युपमेंट्स थे. ये ट्रक इस कैंप से एलएसी की तरफ जा रहा था, जहां आईटीबीपी के जवान हाई आल्टिट्यूड यानि 14 हजार फीट से 18 हजार फीट की उंचाई पर सीमा की निगहबानी कर रहे हैं. ये निगहबानी इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर चीनी सेना गिद्ध की तरह आंखें गड़ाए बैठी है और जरा सी चूक होने पर घुसपैठ की फिराक में है.
आपको यहां पर ये बता दें कि शांति के वक्त में आईटीबीपी ही चीन से सटी 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर सबसे आगे तैनात रहती है. आईटीबीपी की पोस्ट यानि चौकियां ही सबसे आगे होती हैं. लेकिन चीन से सटी एलएसी विवादित है इसलिए थलसेना भी इन इलाकों में तैनात रहती है और आईटीबीपी के साथ ज्वाइंट पैट्रोलिंग करती है. लेकिन विवाद के दौरान सेना मोर्चा संभाल लेती हैं जैसा कि पिछले चार महीने से पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर चल रहा है.
यही वजह है कि पिछले चार महीने के दौरान जब जब भारत का चीनी सेना से टकराव हुआ आईटीबीपी के जवानों ने भी सेना के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चीनी सैनिकों से मुकाबला किया. यही वजह है कि आईटीबीपी भी सर्दियों के लिए अपनी तैयारी कर रही है. इसके तहत फ्रंटलाइन पर तैनात जवानों के लिए स्पेशल क्लोथिंग और आर्टिक टेंट पहुंचाएं जा रहे हैं.
ITBP की स्पेशल क्लोथिंग ठीस वैसी ही है जैसा कि एबीपी न्यूज ने हाल में सेना के बारे में बताया था. - 40-50 डिग्री तापमान के लिए ओलिव-जैकेट, ग्लेशियर जैकेट (सफेद रंग की) और स्पेशल ओवरकोट. इसके अलावा वूलन शॉक्स, ग्लब्स, ट्रैकिंग शूज और स्नो-बूट्स को मिलाकर 15-20 आईट्मस जवानों को दिए जाते हैं. इसके अलावा शॉर्ट रेंज और लॉन्ग रेज पैट्रोलिंग के लिए खास मैट और स्लीपिंग बैग भी दिया जाता है और सबसे खास है ग्लेशियर-पोंचू जिसे बर्फबारी और बरसात के मौसम में कपड़ों के ऊपर पहना जाता है. इसके अलावा खास बैग भी दिया जाता है, जिसमें जवान अपना सारा सामान रखकर पीठ पर टांग सकते हैं और पैट्रोलिंग के लिए जा सकते हैं.
आईटीबीपी की स्थापना 1962 में चीन के युद्ध के समय में ही हुई थी और चीन सीमा की रखवाली करना इसका मुख्य चार्टर था. क्योंकि चीन से सटी दो-तिहाई सीमा (एलएसी) सुपर हाई ऑल्टिट्यूड है यानि 14 हजार से 18 हजार फीट. इसलिए सभी हिमवीरों को रॉक-क्लाईम्बिंग और ट्रैकिंग ट्रैनिंग का एक अहम हिस्सा होता है. ये ट्रेनिंग उत्तराखंड के औली और मसूरी में होती है. क्योंकि इतनी उंचाई पर हर तरफ बर्फ ही बर्फ होती है और वहां पर आईटीबीपी के जवान तैनात होते हैं, इसीलिए आईटीबीपी के जवानों को 'हिमवीर' का नाम भी दिया गया है.
रॉक-क्लाईम्बिंग के लिए आईटीबीपी के जवानों की हर यूनिट को क्विक पॉवर एसेंडिग मशीन दी गई है. इस मशीन को उंचे पहाड़ पर एंकर करने से जवान आसानी से ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ सकते हैं. इसके अलावा भी खास तरह की रोप, रॉक क्लाईम्बिंग ऐक्स शामिल हैं. क्योंकि चीन सीमा पर एवलांच यानि बर्फीले तूफान का खतरा भी बना रहता है, इसलिए एवलांच विक्टिम डिटेक्टर डिवाइस भी दिए जाते हैं, जिससे अगर कोई जवान बर्फ में दब जाता है तो इस मशीन से जवान की धड़कन को डिटेक्ट कर रेस्कयू किया जा सकता है. इसके अलावा हर यूनिट को आर्टिक टेंट भी दिए जा रहे हैं, जिससे 8-10 जवान माइनस 40 से 50 डिग्री तक के तापमान से लड़ सकते हैं.
गौरतलब है कि मई और जून के महीने में पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना से हुई झड़पों के दौरान साहस और शौर्य के लिए भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के 21 जवानों को बहादुरी पदक के लिए अनुशंसा की गई है. आईटीबीपी ने इन 21 जवानों के नाम वीरता मेडल के लिए गृह मंत्रालय को भेजे हैं. इन जवानों ने ईस्टर्न लदाख में चीनी सैनिकों का झड़पों के दौरान बहादुरी से डटकर सामना किया था, इसीलिए इन 'हिमवीरों' के नाम सरकार को वीरता मेडल के लिए भेजा गया है. साथ ही 294 आईटीबीपी जवानों को पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों का शौर्य और बहादुरी के साथ सामना करने के लिए 'डीजी प्रशंसा-पत्र' और 'प्रतीक चिन्ह' प्रदान किया गया है.
आपको बता दें कि 5-6 मई को जब पैंगोंग लेक के करीब फिंगर एरिया में भारत और चीन के सैनिकों में भिड़ंत हुई थी, तब सेना के जवानों के साथ आईटीबीपी के जवान भी शामिल थे. क्योंकि फिंगर एरिया में भारत की आखिरी पोस्ट, धनसिंह थापा पोस्ट पर आईटीबीपी के जवान तैनात रहते हैं. गलवान घाटी के करीब भी आईटीबीपी की पोस्ट है. गलवान में हुई हिंसा के दौरान भी आईटीबीपी के जवानों ने घायल भारतीय सैनिकों को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाया था. पैंगोंग त्सो के दक्षिण में भी आईटीबीपी की पोस्ट थाकुंग में है.
कई बार आईटीबीपी के जवानों ने पूरी रात पीएलए का सामना किया और 17 से 20 घंटों तक उन्हें जवाबी कार्रवाई करते हुए रोके रखा. इन झड़पों में हाई ऑल्टिट्यूड में आईटीबीपी जवानों की ट्रेनिंग और उनकी हिमालय में तैनाती की क्षमता से कई सामरिक महत्व के क्षेत्रों को सुरक्षित रखा जा सका है.
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