नई दिल्लीः संसद के नए भवन का निर्माण तय है लेकिन इससे पहले ही संसद परिसर की व्यवस्था में बदलाव किया गया है. लोकसभा सचिवालय ने रेलवे से कैंटीनों की जिम्मेदारी वापस ले ली है. साथ ही उसे 15 नवंबर को भारत पर्यटन विकास निगम (आइटीडीसी) को सौंपने का फैसला भी कर लिया है. आपको बता दें कि 52 साल बाद संसद भवन में रेलवे की कैंटीनें अब इतिहास का हिस्सा बन जाएंगी. आइटीडीसी अब शीतकालीन सत्र से संसद भवन परिसर की चारों कैंटीन में खाने-पीने की व्यवस्था देखेगी. इसके साथ ही कैंटीन सब्सिडी की मामूली रियायतें भी ख़त्म हो जाएंगी. माना जा रहा है कि अब संसद की कैंटीनों में खाना-पीना अब महंगा हो जाएगा.


लोकसभा सचिवालय ने नार्दन रेलवे कैटरिंग डिविजन को पत्र सौंपा


लोकसभा सचिवालय ने 19 अक्टूबर को नार्दन रेलवे कैटरिंग डिविजन को पत्र सौंपकर संसद भवन की चारों कैंटीनों के सभी सामान और क्रॉकरी को 15 नवंबर को आइटीडीसी को सौंपने का निर्देश जारी किया है. लेकिन रेलवे से कैंटीनों की जिम्मेदारी हटाए जाने का कारण स्पष्ट नहीं किया है. आपको बता दें कि संसद की कैंटीनों में तैनात रेलवे कैटरिंग के सभी कर्मचारियों को भी वापस उनके कैडर में भेजने का निर्देश मिला है.


विभाग को लौटा दिए जाएंगे एम्प्लॉय 


संसद के मुख्य भवन के अलावा रिसेप्शन, लाइब्रेरी बिल्डिंग और संसदीय सौध में चल रही रेलवे की कैंटीनों में 400 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं और ये सभी रेलवे के एम्प्लॉय हैं इसीलिए वे सभी वापस उनके विभाग को लौटा दिए जाएंगे. ज्ञात हो कि खाने-पीने की व्यवस्था में हो रही परेशानी को देखते हुए 1968 में रेलवे को कैंटीन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.


क्या था मामला? 


साल्वे कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 1971 में इस समस्या को हल किया गया और रियायती दरों पर खाना-पीना उपलब्ध कराया जाने लगा. साल 1972 में संसदीय सौध में कैंटीन खुली. वहीं, लाइब्रेरी बिल्डिंग की कैंटीन 2002 में वाजपेयी सरकार के दौरान शुरू हुई. हालांकि, खाने-पीने के मामले में रियायतें को लेकर हर बार चर्चा गर्म रही है. इस मसले को समय-समय पर सुलझाया गया है.


 


ये भी पढ़ें :-


रेलवे की अनोखी यात्रा सेवा, 'बैग्स ऑन व्हील्स' का आनंद उठा सकेंगे यात्री


55 साल बाद हरियाणा ने अपने कानूनों से ‘पंजाब’ शब्द हटाने की प्रक्रिया शुरू की