नई दिल्ली: भारतीय बैंकों के हजारों करोड़ रूपये लेकर भागे विजय माल्या को देश वापस लाना अब बेहद मुश्किल है. सूत्रों के मुताबिक, सीबीआई की लापरवाही ने माल्या के खिलाफ केस को कमजोर किया.


विजय माल्या के खिलाफ जिन गवाहों के बयान कोर्ट के सामने पेश किए गए हैं उनमें कई खामियां बताई गईं है. सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक 12 गवाहों के बयानों का एक-एक शब्द एक जैसा है. लंदन कोर्ट में दावा किया गया है कि माल्या के खिलाफ लगभग एक दर्जन गवाहों के बयान ऐसे हैं जिनमें शब्द दर शब्द आपस में मिल रहे है. ऐसे में ये कैसे संभव हो सकता है कि हर गवाह एक जैसा बयान दे और एक जैसे शब्द प्रयोग में लाए इसके अलावा भी इन बयानों में और भी खामियां बताई गई हैं. ये गवाह बैंक अधिकारियों तथा अन्य लोगों के बताए गए है. किसी भी स्टेटमेंट में ये नहीं कहा गया कि बयान किस भाषा में दिया गया और उससे भी बड़ी बात कि किसी भी बयान में गवाह के हस्ताक्षर नहीं हैं.


सूत्रों के मुताबिक ये बयान धारा 161 के तहत यानी पुलिस के सामने दिए गए हैं. भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि धारा 161 के तहत लिए गए बयान कोर्ट में सबूत के तौर पर नहीं पेश किए जा सकते साथ ही लंदन प्रशासन का भारतीय प्रत्यार्पण का रिकार्ड भी बताता है कि आज तक एक भी चर्चित शख्स लंदन से प्रत्यार्पण हो कर नहीं आया. माल्या के खिलाफ लंदन कोर्ट में सीबीआई का एक गवाह भी सवालों के घेरे में है.


अजमन फ्रांसिस नाम के गवाह को लेकर सवाल उठाया गया है. कहा गया है कि फ्रांसिस ने माल्या की कंपनी का वैल्युवेशन नहीं किया, फिर उसकी रिपोर्ट और गवाही को क्यों माना जाए? सरकारी सूत्रों के मुताबिक लंदन कोर्ट अब गवाहों और सबूतों को लेकर इसी माह सुनवाई करने जा रहा है कि सीबीआई ने जो गवाह सबूत कोर्ट मे पेश किए है वो कोर्ट के सामने मान्य है या नहीं ऐसे मे यदि किसी भी जांच एजेंसी की लापरवाही के चलते माल्या का प्रत्यार्पण रूका तो वो केवल जांच एजेंसी के लिए ही नहीं सरकार को भी विपक्ष के सीधे निशाने पर खड़ा कर देगा.


पिछले महीने जिस तरह अब तक का सबसे बड़ा घोटाला कहे जाने वाले 2जी मामले के सभी आरोपी सबूतों की कमी के कारण बरी हो गए, उसके बाद से सीबीआई पर बड़े सवाल खड़े होने लगे हैं.


एबीपी न्यूज ने इस बारे में सीबीआई को भी मेल देकर उनसे उनका अधिकारिक पक्ष जानना चाहा लेकिन सीबीआई ने मेल का जवाब नहीं दिया. लेकिन उनके मुख्य सूचना अधिकारी अभिषेक दयाल ने कहा कि ये मामला लंदन कोर्ट के सामने विचाराधीन है लिहाजा सीबीआई इस पर कोई कमेंट नहीं करना चाहती.


विजय माल्या के अर्श से फर्श तक की कहानी
माल्या की हैसियत कभी 22 हजार करोड़ की बताई जाती थी. शराब और बीयर के 50 फीसदी कारोबार पर माल्या का कब्जा था. 1983 में 28 साल की उम्र में वो यूबी ग्रुप का चेयरमैन बन गया था. शराब के कारोबार से जुटाई रकम से 2003 में माल्या ने किंगफिशर एयरलाइंस की शुरूआत की, 2005 में उसने शराब कंपनी शॉ वॉलेस को खरीदा. 2007 में माल्या ने फॉर्मूला वन रेसिंग टीम स्पाइकर को खरीदकर उसका नाम फोर्स इंडिया रखा. आईपीएल में माल्या ने पैसा लगाया और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर को खरीदा लेकिन ये सब करने के बाद 2008 से उसकी किंगफिशर एयरलाइंस घाटे में जाने लगी. जिसके लिए माल्या ने बैंकों से हजारों करोड़ का कर्ज लेना शुरू कर दिया. इसके बावजूद किंगफिशर एयरलाइंस पूरी तरह बंद हो गई. लेकिन तब तक वो 17 बैंकों से 7800 करोड़ रुपए कर्ज ले चुका था जो ब्याज के साथ 9000 करोड़ पर पहुंच गया. बजाय इस कर्ज को वापस करने के माल्या 2 मार्च 2016 को देश छोड़कर लंदन भाग गया.