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जगदंबिका पाल से अनिल एंटनी तक… 9 साल में 23 नेता निकले; सबका एक ही कारण- राहुल सुनते नहीं

2014 के बाद 23 बड़े नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं. इनमें गुलाम नबी आजाद और ज्योदिरादित्य सिंधिया का भी नाम हैं. कांग्रेस छोड़ते वक्त सभी नेता का एक ही आरोप रहा है- राहुल गांधी सुनते नहीं हैं.

राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के बाद मुश्किलों में घिरे कांग्रेस को पिछले 2 दिन में दो बड़ा झटका लगा है. गुरुवार को वरिष्ठ नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी के बीजेपी में शामिल होने के बाद शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम किरण रेड्डी ने भी सत्ताधारी दल की सदस्यता ग्रहण कर ली.

बीजेपी में शामिल होने के बाद किरण रेड्डी ने कांग्रेस हाईकमान के फैसलों पर सवाल उठाया. रेड्डी ने कहा कि हाईकमान गलत फैसला ले रहा है, जिस वजह से सभी राज्यों में लगातार टूट हो रही है. करारी हार के बावजूद कांग्रेस हाईमान ने कोई सबक नहीं लिया है. यह पहली बार नहीं है, जब पार्टी हाईकमान पर कोई नेता सवाल उठा रहा है.

हाल ही में गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ने के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया था. आजाद की गिनती गांधी परिवार के करीबियों में होती थी. पिछले 9 साल में कांग्रेस से करीब 23 बड़े नेता पलायन कर चुके हैं. दिलचस्प बात है कि ये सभी नेता कांग्रेस छोड़ने के लिए हाईकमान को ही जिम्मेदार ठहरा चुके हैं. आइए सभी की स्टोरी को विस्तार से जानते हैं...

1. जगदंबिका पाल- यूपी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे जगदंबिका पाल ने साल 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ दी थी. पाल बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. पाल ने कांग्रेस छोड़ते वक्त आरोप लगाया था कि बड़े नेता उन्हें अपमानित कर रहे हैं.

2. चौधरी बीरेंद्र सिंह- अगस्त 2014 में हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने भूपिंद्र सिंह हुड्डा से अदावत के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. बीरेंद्र सिंह ने हाईकमान पर अनदेखी का आरोप लगया था. बीरेंद्र सिंह बीजेपी में शामिल हो गए, जहां उन्हें मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाया गया. 

3. अजित जोगी- जून 2016 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे अजित जोगी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. जोगी ने यह फैसला आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद लिया था. इस्तीफा देते हुए जोगी ने कहा था कि कांग्रेस हाईकमान नेहरू-गांधी की विचारधारा से भटक गई है.

4. हिमंत बिस्वा सरमा- मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से अदावत के बाद असम सरकार में मंत्री रहे हिमंत बिस्वा सरमा ने 2015 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. सरमा बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और अभी असम के मुख्यमंत्री हैं. सरमा ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी से जब मैंने अपनी समस्याएं बताई तो वो मेरी बातों को अनसुना कर अपने कुत्ते के साथ खेलने लगे.

5. गिरधर गमांग- ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे गिरिधर गमांग ने 2015 में कांग्रेस छोड़ दिया था. गमांग और ओडिशा कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जयदेव जेना के बीच सियासी तल्खी बढ़ गई थी. गमांग जेना गुट पर विश्वासघात का आरोप लगाया गया था और हाईकमान पर इसकी जांच नहीं कराने का आरोप लगा था. गमांग ने कहा कि कांग्रेस हाईकमान फैसला नहीं ले पा रही है.

6. एसएम कृष्णा- कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और मनमोहन सरकार में विदेश मंत्री रहे एसएम कृष्णा ने 2017 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफा देने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कृष्णा ने कहा कि राहुल गांधी सरकार के कामकाज में लगातार हस्तक्षेप करते थे. राहुल गांधी किसी के प्रति जवाबदेह नहीं थे और अपनी मर्जी से पार्टी चला रहे थे. ऐसे में मैंने कांग्रेस छोड़ना ही उचित समझा.

7. शंकर सिंह वाघेला- गुजरात के पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला ने 2017 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. वाघेला का इस्तीफा उस वक्त हुआ, जब गुजरात चुनाव में कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही थी. कांग्रेस छोड़ते हुए वाघेला ने कहा कि राहुल गांधी से कुछ फैसला लेने के लिए मैंने कहा था, लेकिन वे फैसला नहीं ले पाए. कांग्रेस बदलना ही नहीं चाह रही है.

8. एनडी तिवारी- उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और इंदिरा जमाने से कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे एनडी तिवारी ने 2017 में कांग्रेस छोड़ दी थी. कांग्रेस छोड़ने से पहले उन्होंने हाईकमान पर नासमझी का आरोप लगाया था. तिवारी ने इस्तीफा से पहले कहा कि कांग्रेस हाईकमान हकीकत से कोसों दूर जा चुकी है, इसलिए पार्टी टूट रही है.

9. विजय बहुगुणा- उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने साल 2016 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. बहुगुणा मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से खफा थे. कांग्रेस छोड़ते हुए उन्होंने राहुल गांधी पर तीखा हमला किया था. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी कार्यकर्ताओं से काफी दूर है और उनके इर्द-गिर्द चापलूसों की फौज है. राहुल उन्हीं चापलूसों के कहने पर कांग्रेस में फैसला लेते हैं.

10. रीता बहुगुणा जोशी- यूपी में कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकीं रीता बहुगुणा जोशी ने भी 2016 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. रीता ने इस्तीफा देते हुए कहा था कि सोनिया जी हमारी बात सुनती थीं, लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में ऐसा नहीं हो रहा है. उन्होंने आगे कहा कि पूरे देश में कांग्रेस के लोग राहुल गांधी से नाराज हैं, फिर भी वे ही पार्टी चला रहे हैं.

11. अशोक चौधरी- बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और विधानपार्षद अशोक चौधरी ने 3 अन्य पार्षदों के साथ 2018 में कांग्रेस छोड़ दिया. बिहार में कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. इस्तीफा देते हुए उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाया था. चौधरी ने कहा था कि कांग्रेस हाईकमान बिहार में लालू यादव का पिछलग्गू बने रहना चाहती है. प्रभारी हाईकमान को गुमराह करते हैं और फिर कुछ भी फैसला हो जाता है.

12. नारायण राणे- 2016 में कांग्रेस हाईकमान से खफा होकर नारायण राणे ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ दिया. राणे ने कांग्रेस छोड़ने के  बाद पहले खुद की पार्टी बनाई और फिर बीजेपी में शामिल हो गए. कांग्रेस छोड़ते हुए राणे ने आरोप लगाया था कि राहुल गांधी सबकुछ जानते हुए भी महाराष्ट्र को लेकर कोई फैसला नहीं लिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस हाईकमान यहां पार्टी को डुबाने पर तुली है.

13. संजय सिंह- गांधी परिवार के करीबी और अमेठी के कद्दावर नेता संजय सिंह ने साल 2019 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. सिंह राहुल गांधी से नाराज थे. इस्तीफा देते वक्त उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में 15 सालों से संवादहीनता है. राहुल गांधी के आने के बाद कोई भी फैसला सर्वसम्मति से नहीं लिया जाता है. संजय सिंह ने कहा था कि कांग्रेस अतीत में जी रही है.

14. अल्पेश ठाकोर- 2018 में कांग्रेस छोड़ने वाले अल्पेश ठाकोर ने राहुल गांधी पर तीखा हमला बोला था. ठाकोर ने कहा था कि राहुल गांधी सच बात सुनना ही नहीं चाहते हैं. उन्हें अगर कोई बात पसंद आ जाती है, तो उसी के हिसाब से फैसला कर देते हैं. अल्पेश ने कांग्रेस हाईकमान पर यूज एंड थ्रो की पॉलिटिक्स करने का आरोप लगाया था. 

15. राधाकृष्ण विखे पाटिल-  2019 लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण पाटिल ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. पाटिल ने इस्तीफा देते हुए कहा था कि राहुल गांधी की राजनीति प्रधानमंत्री पर हमला करने तक सीमित हो गई है. कांग्रेस को जनता के मुद्दों से कोई ताल्लुकात नहीं है.

16. टॉम वडक्कन- सोनिया गांधी के करीबी टॉम वडक्कन ने 2019 में कांग्रेस छोड़ दिया था . वडक्कन ने कांग्रेस को वशंवादी पार्टी करार देते हुए अपना इस्तीफा दिया था. उन्होंने कहा था कि राहुल गांधी उसी परिपाटी को आगे बढ़ा रहे हैं. वडक्कन के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल ने कहा था कि वो कोई बड़े नेता नहीं है. 

17. सतपाल महाराज- 2014 में उत्तराखंड कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ नेता सतपाल महाराज ने राहुल पर जमकर निशाना साधा था. महाराज ने राहुल को एसी में बैठकर पॉलिटिक्स करने वाला नेता बताया था. उन्होंने इस्तीफा देते हुए कहा था कि राहुल गांधी आम जनता की दर्द को नहीं समझ पाएंगे, क्योंकि उनकी पॉलिटिक्स एसी कमरे से चलती है. राहुल नेताओं से मिलते भी नहीं है.

18. अमरिंदर सिंह- पंजाब के पूर्व सीएम और कद्दावर कांग्रेसी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साल 2022 में पार्टी छोड़ दी थी. 2021 में पंजाब में सीएम पद से हटने के बाद से ही कैप्टन कांग्रेस हाईकमान से नाराज चल रहे थे. कांग्रेस छोड़ते वक्त उन्होंने कहा कि पार्टी ने मजबूर किया है. कैप्टन ने प्रियंका और राहुल को बच्चा बताते हुए उन्हें कांग्रेस की बागडोर मिलने पर सवाल उठाया था. 

19. जितिन प्रसाद- बंगाल में कांग्रेस के प्रभारी और मनमोहन कैबिनेट में मंत्री रहे जितिन प्रसाद ने साल 2021 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. जितिन प्रसाद को राहुल गांधी का काफी करीबी नेता माना जाता था. जितिन कांग्रेस के बागी गुट जी-23 के सदस्य भी थे. पार्टी से इस्तीफा देते हुए जितिन प्रसाद ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कांग्रेस में काम करना मुश्किल हो गया है. ऐसा स्ट्रक्चर बना दिया गया है, जिसमें नेता जनता से कट जा रहे हैं. 

20. ज्योतिरादित्य सिंधिया- 2019 में मध्य प्रदेश कांग्रेस में सबसे बड़ी बगावत ज्योतिरादित्य सिंधिया ने की थी. सिंधिया के समर्थन में 27 विधायक बेंगलुरु पहुंच गए थे. इसके बाद एमपी में कांग्रेस की सरकार गिर पड़ी थी. कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए सिंधिया ने कहा था कि पार्टी मे अपनी बात कह पाने के लिए नेता का वक्त नहीं मिल पा रहा था. हालांकि, राहुल ने सिंधिया के इस दावे को खारिज कर दिया था. सिंधिया बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. 

21. आरपीएन सिंह- राहुल गांधी के करीबी और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह ने भी 2022 में कांग्रेस छोड़ दी थी. सिंह उस वक्त झारखंड कांग्रेस के प्रभारी थे. कांग्रेस छोड़ते हुए आरपीएन सिंह ने राहुल गांधी की कोर टीम को लेकर सवाल उठाया था. सिंह ने कहा था कि पार्टी में व्यवस्था और विचार दोनों बदल गए हैं. एक्सट्रीम लेफ्ट से आए लोगों को पार्टी में तवज्जो दी जा रही है. जो हमेशा खिलाफ रहे, उन्हें पार्टी हाईकमान बड़े पदों से नवाज रही है.

22. कपिल सिब्बल- कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर के बाद कपिल सिब्बल ने 2020 में इस्तीफा दे दिया था. सिब्बल जी-23 के सक्रिय सदस्य थे और कांग्रेस में बदलाव की मांग सालों से कर रहे थे. इस्तीफे से पहले सिब्बल ने राहुल गांधी पर निशाना साधा था. सिब्बल ने कहा था कि घर की कांग्रेस की वजह से पार्टी बर्बाद हो रही है. फैसला लेने में सबकी मदद नहीं ली जा रही है. 

23. गुलाम नबी आजाद- कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका 2022 के अंत में लगा, जब कद्दावर नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के बाद आजाद ने राहुल गांधी पर तीखे प्रहार किए थे. उन्होंने कहा कि राहुल पार्टी के भीतर किसी की नहीं सुनते हैं. मुसलमानों को महासचिव से आगे नहीं बढ़ाया जाता है, इसलिए मैंने पार्टी छोड़ दी.

इन 23 नेताओं के अलावा भी कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं. इनमें प्रियंक चतुर्वेदी, हार्दिक पटेल, रिपुन बोरा, सुष्मिता देव, विश्वजीत राणे, कीर्ति आजाद और ललितेश पति त्रिपाठी का नाम शामिल हैं. इतनी बड़ी मात्रा में पलायन होने की वजह से असम, यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस काफी कमजोर हो चुकी है. 

पलायन का मर्ज फिर दवा क्यों नहीं?
कांग्रेस में लगातार नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद हाईकमान पर सवाल उठ रहे हैं. पिछले साल पार्टी ने उदयपुर में इस पर चिंतन किया था, लेकिन चिंतन के बाद भी कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं. कांग्रेस ने इसे रोकने के लिए 2 बड़ा फैसला लेने की बात कही थी.

1. संगठन स्तर पर त्वरित फैसला लिया जाएगा, जिससे संवादहीनता की कमी न हो. टिकट बंटवारे का भी ऐलान जल्द किया जाएगा, जिससे बागियों को मनाया जा सके.

2. अखिल भारतीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक एक पॉलिटिकिल कमेटी का गठन किया जाएगा. कमेटी में अधिकांश नेताओं को जगह दी जाएगी. यही कमेटी राजनीतिक फैसला ले सकेगी.

कांग्रेस में उदयपुर के प्रस्ताव को लागू करने के लिए अध्यक्ष का चुनाव कराया गया था. मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद इसे लागू होने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है.

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