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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में लेखकों से abp न्यूज की खास बातचीत, राणा सफ़्वी ने बताया क्यों स्मारकों पर लिखी किताब

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कई सारे लेखक और इतिहासकार शिरकत करने पहुंचे हैं. शब्दों को कागज पर उतारने वालों से एबीपी रूबरू हुआ और उनसे मुलाकात की.

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल बेहद शानदार तरीके से आयोजित किया जा रहा है. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कई सारे लेखक शिरकत करने पहुंचे हैं. शब्दों को कागज पर उतारने वालों से एबीपी रूबरू हुआ और उनसे मुलाकात की. इसी कड़ी में इतिहासकार राणा सफ़्वी ने भी शिरकत की. उन्होंने कहा कि देश में अलग-अलग समुदाय, अलग-अलग तरह के लोग साथ मिलकर रहते हैं, जिस वजह से हमारी गंगा जमुनी तहजीब बनी हुई है. राना सफ़्वी ने हाल ही में एक किताब लिखी है 'ए सेंट ए फोक टेल एन्ड अदर स्टोरीज'.

उन्होंने इस किताब में कई ऐसे स्मारकों का जिक्र किया है, जो लोगों के बीच कम पहचाने गए हैं. सफ़्वी ने कई पहलुओं पर बात करते हुए बताया कि आखिर क्यों उन्होंने किताब का ऐसा विषय चुना. उन्होंने बताया कि ताजमहल के बारे में लोग जानते हैं, लेकिन मैंने उस बुरहानपुर का जिक्र नहीं आता, जहां मुमताज की मौत हुई थी. छह महीने जहां मुमताज को दफ्नाया गया. बाद में उनके ताबूत को आगरा लाया गया. उन्होंने कहा कि बुरहान में राजा जय सिंह की छतरी थी, जिसके बारे में भी लोग नहीं जानते हैं. ऐसे में एक कोशिश थी कि देश की ऐसी सांस्कृतिक विरासत भी लोगों के बीच पहुंचे, जिसके बारे में लोग कम जानते हैं. बुरहानपुर के बगल में ही असीरगढ़ फोर्ट भी मौजूद है.

इसके साथ पब्लिशर नवीन किशोर ने भी जयपुर के लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत की. उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी अमेरिका और पश्चिमी देशों से कहा जाता है कि आप हमसे किताब खरीदो. ऐसे में किताबों की ट्रांसक्रिप्ट की जरूरत महसूस की गई. उन्होंने कहा कि पहले से ही किताबों का डिजिटाइजेशन हो रहा था, इससे कोरोना का बहुत बड़ा असर नहीं हुआ. हार्ड कॉपीज के साथ ही आज ईबुक्स आ रही हैं. छह महीने के भीतर ही किताबें मार्केट से बाहर हो जाती हैं. 

इस फेस्टिवल में 'आरडी बर्मन- द मैन, द म्यूजिक' किताब लिखने वाले बालाजी विट्टल भी पहुंचे. बालाजी विट्टल मनोरंजन की दुनिया से जुड़ी हुई कई किताबें लिख चुके हैं. उन्होंने बताया कि वो एक लेखक के नजरिए से किताबों का विषय कैसे चुनते हैं. उन्होंने कहा कि मैं हर फिल्म को विलेन के नजरिए से देखता हूं. ओटीटी को लेकर उन्होंने कहा कि फिल्मों में अब विलेन को लेकर नजरिया बदल गया है. अब विलेन को हीरो के बराबर तरजीह दी गई है. फिल्म मेकर्स और ऑडिएंस में मैच्युरिटी आ गई है. उन्होंने बताया कि प्राण, अमजद खान उनके पुराने जमाने के पसंदीदा विलेन थे. आज के वक्त में मनोज बाजपेयी, केके मैनन, शाइनी आहूजा जैसे कलाकारों को वो पसंद करते हैं. मिर्जापुर और सेक्रेट गेम्स जैसी कहानियां क्या अब और आएंगी? इस पर उन्होंने कहा कि अब छोटे शहरों के विलेन सामने आ रहे हैं. छोटे शहरों की कहानियां अब बहुत पॉपुलर हो रही हैं. ऐसे में विलेन के बारे में लिखने में बेहद मजा आ रहा है. 

इसके साथ ही फेस्टिवल में एक और लेखिका शरीक हुईं रख्शंदा जलील. उन्होंने एबीपी से खास बातचीत में बताया कि उन्होंने कैसे स्मारकों के बारे में लिखना शुरू किया. उन्होंने कहा कि मैं दिल्ली में रहती थी तो दिल्ली के स्मारकों से रुचि पैदा हुई. जिसके बाद कॉलम के रूप लिखना शुरू किया. उन्होंने कहा कि लोग कई स्मारकों के बारे में नहीं जानते हैं. ऐसी ही एक कहानी है मोठ की मस्जिद को लेकर. लोग नहीं जानते हैं कि मोठ की मस्जिद क्यों बनी या कैसे बनाई गई. उन्होंने स्मारकों पर लोगों के कुछ भी लिख देने को लेकर भी एतराज ज़ाहिर किया. उन्होंने कहा कि हमें नई नस्ल को इसके बारे में जानकारी देनी चाहिए.

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