Jaipur Literature Festival 2024: फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन आज कहां है, संसद में भी नहीं बोलने दिया जा रहा- मृदुला गर्ग
Jaipur Literature Festival 2024: एबीपी लाइव ने जानी मानी साहित्यकार मृदुला गर्ग से बात की. मृदुला गर्ग ने इस दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, हिन्दी साहित्य समेत कई मुद्दों पर अपने विचार रखे.
Jaipur Literature Festival 2024: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2024 में साहित्य का उत्सव लगातार जारी है. एबीपी लाइव की टीम यहां से साहित्यप्रेमियों तक हर कार्यक्रम और मेहमान से जुड़ी खबरें पहुंचा रही हैं. इसी बीच एबीपी लाइव ने जानी मानी साहित्यकार मृदुला गर्ग से बात की. मृदुला गर्ग से हमारे सवाल और उनके जवाब नीचे दिए हुए हैं.
सवाल- मृदुला जी, जब हम चित्तकोबरा, कठगुलाब या आपकी कोई कहानी पढ़ते हैं तो बतौर पाठक मन में सवाल आता है कि आप अपने किरदार कहां से चुनती हैं. क्या आप पहले उनसे मिल चुकी होती हैं या उनकी पैदाइश लिखते हुए ही होती हैं.
जवाब- देखिए, कोई किरदार पूरी तरह लेखक की पैदाइश नहीं होती. कहीं न कहीं वो मिला जरूर होता है. वो हमें पूरे स्वरूप में नहीं मिलता लेकिन कुछ न कुछ आदतें, कुछ न कुछ बोलने का तरीका, खासियत किसी आदमी से मिली-जुली होती है. जब हम किसी से मिलते हैं तो कुछ यादें हमारे दिमाग और मन में जमा हो जाती हैं और फिर उसमें कुछ काल्पनिकता भी जुड़ती है. फिर जब हम पर लिखने का जुनून सवार होता है तो हम उनको अपना किरदार बनाते हैं.
सवाल- क्या ये सच है कि आपने पहली कहानी कमलेश्वर जी को भेजी थी? लिखने का सिलसिला कैसे शुरू हुआ कुछ बताइए
जवाब- मैं नहीं जानती लिखने का सिलसिला क्यों शुरू हुआ लेकिन हां बहुत पहले मैंने कमलेश्वर जी को अपनी एक कहानी भेजी थी. हरी बिंदी नाम था उस कहानी का, तो कमलेश्वर उसे छापने के लिए राजी हो गए लेकिन उन्होंने पूछा इसकी क्या गैरंटी है कि तुम आगे भी लिखती रहोगी? जवाब में मैंने अगले दो साल में उनको 24 कहानियां भेजी.
सवाल- 'नायाब औरतें' आपकी नई किताब है इसके बारे में कुछ बताइए?
जवाब- 'नायाब औरतें' की सभी किरदार वैसे के वैसे हैं. सत्यकथा कह सकते हैं इसे आत्मकथा नहीं शायद
सवाल- आप कहती हैं आत्महत्या में आपकी घनघोर आस्था है, ऐसा क्यों कहती हैं आप
जवाब- जब सोच-समझकर आप आत्महत्या की योजना बनाते हो तो मृत्यु को आप जीवन का हिस्सा बना लेते हो. अधिकतर लोग ऐसे ही जिए जाते हैं. अगर आपको लगे कि बस बहुत जी लिए, सबकुछ पा लिया, या ऐसी कोई बीमारी हो जो सहनीय नहीं है और आप नहीं चाहते कि लोग उससे परेशान हों तो आपको अधिकार है कि आप उसे खत्म कर दें.
सवाल- मजरूह सुल्तानपुरी नेहरू के खिलाफ कविता लिखते हैं तो जेल होती है, मंटों की कहानियों पर केस चलता है, आपकी भी चित्तकोबरा लिखने के बाद गिरफ्तारी होती है. आप फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन पर क्या कहेंगी?
जवाब- फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन है कहां? आज भी नहीं है और कभी भी पूरी तरह नहीं था. अब तो हाल ये है कि संसद में सवाल नहीं कर सकते हैं. मुझे याद है अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में एक बार नेहरू जी को डिक्टेटर कह दिया था, बाद में उन्होंने माफी मांगी कि ये संसदीय भाषा नहीं है. उन्होंने अपने शब्द वापस लिए ये कहते हुए कि मैं पीएम नेहरू की संसद से बाहर आलोचना कर सकता हूं लेकिन संसद में मुझे ऐसा शब्द नहीं इस्तेमाल करना चाहिए था. आजकल तो कुछ भी बोला जा रहा है सदन के अंदर. और बाहर कोई कुछ बोल दे तो सरकार गिरफ्तार करा देती है. किसी का अलग विचार है तो विचार से आप बहस कीजिए उसको नुकसान पहुंचाकर नहीं.
सवाल- हिन्दी साहित्य में ऐसा कौन सा पहलू है जिसपर कम लिखा गया या लिखा ही नहीं गया और लिखा जाना चाहिए
उत्तर- हिन्दी में पहले एक फैशन चल गया कि गांव पर लिखा जाना चाहिए तो गांव पर लिखा जाने लगा, फिर आदिवासी, ट्रांसजेंडर पर लिखा गया. मेरा मानना है कि जो लिखा जाना चाहिए के अंतरगत लिखा जाता है वो बेहद खराब होता है. इसलिए मैं नहीं कह सकती कि ये लिखा जाना चाहिए क्योंकि किसी के मन में अगर किसी चीज को लिखने को लेकर उत्साह भी नहीं है तो कैसे वो लिखेगा.
सवाल- आप आगे क्या लिख रही हैं, पाठकों को क्या नया मिलने वाला है
उत्तर- अभी मैंने एक किताब खत्म की है तो अभी तो मेरा इरादा नहीं लिखने का है लेकिन मैं आगे दिल्ली पर एक किताब लिखना चाहूंगी क्योंकि मैंने जिस दिल्ली को देखा है वो मेरे बाद तो लोगों को पपता नहीं चलेगा. मैंने गांधी को इसी दिल्ली में देखा है, उनकी प्राथना सभा में गई हूं, उनकी अंतिम यात्रा भी देखी है तो काफी कुछ है दिल्ली को लेकर मेरे जेहन में मैं उसपर लिखना चाहूंगी.