नई दिल्ली: जल्लीकट्टू के अध्यादेश को तमिलनाडु के राज्यपाल विद्यासागर राव ने मंजूरी दे दी है. इसका मतलब है कि अब तमिलनाडु के लोग जल्लीकट्टू खेल सकेंगे. कल तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम जल्लीकट्टू का उद्घाटन करेंगे.
आपको बता दें कि इसके समर्थन में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उतर आए. उन्होंने कहा है कि तमिल लोगों की संस्कृति बचाने की पूरी कोशिश होगी. पीएम ने आज ट्वीट कर कहा कि हम लोगों को तमिलनाडु की संपन्न संस्क्रति पर गर्व है. तमिल लोगों की सांस्कृतिक आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हरसंभव कोशिश की जाएगी. केंद्र सरकार तमिलनाडु के विकास के लिए हर कदम उठाने को तैयार है.
जल्लीकट्टू के समर्थन में चौतरफा प्रदर्शन का ही असर है कि केंद्र सरकार ने जल्लीकट्टू पर बैन हटाने के लिए अध्यादेश का रास्ता चुनना पड़ा.
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाया
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद पिछले साल केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी कर इस पारंपरिक खेल को इजाजत दे दी थी, लेकिन सरकार के इस अध्यादेश को फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई जिस पर अंतिम फैसला आना बाकी है. इसी कारण अभी तक केंद्र सरकार के किसी मंत्री ने इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अंतिम निर्णय आना अभी बाकी है.
इधर, आम लोगों से लेकर दिग्गज हस्तियों ने जल्लीकट्टू का समर्थन किया है. दिग्गज फिल्म अभिनेता रजनीकांत, अभिनेत्री नयनतारा और अभिनेत्री तृषा ने भी जलीकट्टू का समर्थन किया है.
क्या है जल्लीकट्टू ?
जलीकट्टू तमिलनाडु में एक बहुत पुरानी परंपरा है. जलीकट्टू तमिलनाडु में 15 जनवरी को नई फसल के लिए मनाए जाने वाले त्योहार पोंगल का हिस्सा है. जलीकट्टू त्योहार से पहले गांव के लोग अपने अपने बैलों की प्रैक्टिस करवाते हैं. जहां मिट्टी के ढेर पर बैल अपनी सींगो को रगड़ कर जलीकट्टू की तैयारी करता है. बैल को खूंटे से बांधकर उसे उकसाने की प्रैक्टिस करवाई जाती है ताकि उसे गुस्सा आए और वो अपनी सींगो से वार करे.
खेल के शुरु होते ही पहले एक एक करके तीन बैलों को छोड़ा जाता है. ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं. इन बैलों को कोई नहीं पकड़ता, ये बैल गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल. मुदरै में होने वाला ये खेल तीन दिन तक चलता है.