Jalore Case: जालौर के 9 साल के इंद्र को मिली दलित होने की सजा...जातिवाद का ये जहर कितने मासूमों की लेगा जान
Jalore Dalit Student's Death: 1300 किलोमीटर, 8 अस्पताल और 25 दिन भी जालौर के 9 साल के दलित छात्र इंद्र को मौत के मुंह से नहीं बचा पाए. इस बच्चे की टीचर ने अपने बर्तन से पानी पीने पर पिटाई की थी.
Jalore Dalit Student's Journey Of Death: खुदा की नेमतें हैं बच्चे. जमीं पर इनकी मासूम मुस्कुराहटों से खिलती है जिंदगी...जात-पात से दूर ये फरिश्ते हैं खुशी के जमीं पर...शायद जालौर (Jalore) के टीचर को अपने 9 साल के दलित छात्र (Dalit Student) में ये फरिश्ता नहीं बल्कि जातिवाद का हैवान नजर आया था. यही वजह रही होगी कि महज अपना पानी का मटका छूने पर इस टीचर ने छात्र पर हाथ उठा डाला होगा. सोचिए हम किस समाज में रह रहे हैं और कैसे रह रहे हैं? शायद हर धर्म में पानी पिलाना सबाब का काम माना जाता है, वहीं इसी पानी के लिए एक टीचर ने अपने ही छात्र को मरने की हालत में पहुंचा दिया और बाद में उसकी मौत हो गई.
इस दलित बच्चे की मौत पर जांचें बैठा लीजिए,आयोगों का गठन कर लीजिए, लेकिन इंद्र (Indra) वापस नहीं आएगा और न ही उसकी मौत से उसके स्कूल के मासूम साथियों के दिल से आप खौफ दूर कर पाएंगे. दलित बच्चे इंद्र को बचाने की उसके परिवार ने भरसक कोशिश की, लेकिन नतीजा मासूम की मौत ही निकला. 20 जुलाई से जालौर के सुराणा (Surana) गांव से इंद्र के परिवार ने उसे बचाने के लिए 1300 किलोमीटर के सफर में 8 अस्पतालों में 25 दिन का एक -एक पल उसको बचाने की आस में काटा, लेकिन नतीजा सिफर रहा.
मासूम इंद्र की जान बचाने का सफर
जालौर के नौ साल के दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल टीचर की पिटाई से घायल हो गया था. टीचर छैल सिंह (Chail Singh) ने महज उसके पानी के मटके को छूने पर इंद्र को मारा था. इंद्र इस पिटाई से ऐसा घायल हुआ कि लाख इलाज कराने के बाद भी उसकी सांसें वापस नहीं लौंटी. उसके परिवार ने उसे हर ऐसे अस्पताल में ले जाने में कसर नहीं छोड़ी जहां उसके बचने की आस नजर आ रही थी. सुराणा गांव से 20 जुलाई से लेकर 13 अगस्त तक इंद्र का परिवार 25 दिनों में 1300 किलोमीटर की दूरी नाप गया.
केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि गुजरात के अस्पतालों में जाने में परिवार ने गुरेज नहीं किया. आधे से अधिक महीने के वक्त में इंद्र का परिवार उसे 8 अस्पतालों में लेकर कहां-कहां नहीं भटका. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग (Justice And Empowerment Department) जालौर के सहायक निदेशक सुभाष चंद्र मणि (Subhash Chandra Mani) की तैयार की गई रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है. उन्होंने ये रिपोर्ट इंद्र के पिता देवारम (Devaram) और उनके चाचा के बयानों के आधार पर तैयार की है.
रिपोर्ट में और क्या है ?
ये रिपोर्ट राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग- एनसीएससी (National Commission for Scheduled Castes NCSC) नई दिल्ली के साथ साझा की गई. रिपोर्ट के मुताबिक इंद्र 20 जुलाई को सुबह लगभग 7 बजे स्कूल के लिए निकला और लगभग आधे घंटे बाद स्कूल पहुंचा. लंच ब्रेक के दौरान सुबह 10.30 से 11 बजे के बीच वह शिक्षक और स्कूल के मालिक छैल सिंह के लिए बने बर्तन से पानी पीने के लिए आगे बढ़ा. रिपोर्ट में लिखा है कि इंद्र को घड़े से पानी पीते हुए देखकर सिंह ने उस पर हमला किया, जिसके बाद उसके कान से खून बहने लगा और वह जमीन पर गिर गया.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि स्कूल की छुट्टी होने के बाद इंद्र स्कूल के सड़क के पार पड़ने वाली अपने पिता की पंचर मरम्मत की दुकान पर गया. दुकान पर जाकर उसने पिता को आपबीती बताई. इसके बाद दिन में इंद्र के कान में दर्द बढ़ने पर परिवार ने उसे एक दुकान से दवाईंया लेकर उसे खिलाईं. लेकिन जब इन दवाईंयों से कोई फायदा नहीं हुआ तो परिवार वाले जालौर से 13 किमी दूर बागोड़ा (Bagoda) के बजरंग अस्पताल ले गया. हालांकि रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि उसे उसी दिन या अगले दिन ले जाया गया था. रिपोर्ट बताती है कि जैसे ही इंद्र का दर्द कम हुआ, परिवार उसे वापस घर ले आया.
एक-दो दिन बाद, जब दर्द फिर से तेज हो गया, तो उसके पैरेंट्स उसे सुराणा गांव से करीब 50 किलोमीटर दूर भीनमाल (Bhinmal) के आस्था मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल ले गए. एक दिन बाद, दर्द कम हो गया और वे फिर उसे वापस घर ले आए. हालांकि, अगले दिन दर्द फिर से तेज हो गया और परिजन उसे भीनमाल के त्रिवेणी अस्पताल ले गए, जहां इंद्र दो दिनों तक भर्ती रहा.
घर लाए जाने के एक दिन बाद फिर से दर्द बढ़ गया और परिवार उसे सुराणा के एक स्थानीय अस्पताल में ले गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें 155 किमी दूर गुजरात (Gujarat) के दीसा (Deesa) ले जाने के लिए कहा. दीसा में परिजनों ने इंद्र को करणी अस्पताल में भर्ती कराया. इलाज के बाद डॉक्टरों ने करीब 24 घंटे बाद उन्हें छुट्टी दे दी और परिजन राजस्थान लौट गए.
घर आने के बाद, इंद्र की तबीयत बिगड़ गई और परि्वार एक बार फिर उसे भीनमाल के त्रिवेणी अस्पताल ले गया. यहां वह तीन दिन तक भर्ती रखा गया था. जब दर्द ज्यादा बढ़ गया, तो परिजन उसे भीनमाल से 300 किमी दूर गुजरात के मेहसाणा (Mehsana) के एक अस्पताल में ले गए, जहां उसे छह दिनों तक रखा गया.
हालांकि इसके बाद भी इंद्र की सेहत में सुधार का कोई संकेत न दिखने पर परिवार उसे मेहसाणा से 270 किलोमीटर दूर उदयपुर (Udaipur) के गीतांजलि अस्पताल ले गया. इंद्र को यहां एक दिन के लिए रखा गया और वहां के डॉक्टरों की सलाह पर अहमदाबाद के सिविल अस्पताल ले जाया गया. रिपोर्ट के मुताबिक 13 अगस्त को सुबह 11.30 बजे मौत से पहले इंद्र करीब 24 घंटे तक अहमदाबाद के अस्पताल में भर्ती रहा था.
क्या कहा डॉक्टर्स ने
इंद्र के मामले से अवगत अहमदाबाद सिविल अस्पताल के एक डॉक्टर ने कहा, “ इंद्र को 11 अगस्त को अस्पताल लाया गया था और 13 अगस्त को उसकी मौत हो गई थी. बच्चे की प्रारंभिक मेडिकल जांच में उसमें क्रोनिक सपुरेटिव ओटिटिस मीडिया -सीएसओएम (Chronic Suppurative Otitis Media- CSOM) होने की पुष्टि हुई थी. बच्चे के नेत्रगोलक (Eyeball) और दिमाग की नसों में खून के थक्के जमे हुए थे.जब किसी बच्चे को गले में संक्रमण होता है, तो ये संक्रमण गले से मध्य कान को जोड़ने वाली ट्यूब (Eustachian Tube)के जरिए कान के इस हिस्से तक जा सकता है."
उन्होंने ये भी बताया कि संक्रमण के कान में पहुंचने को ही सीएसओएम कहा जाता है और इलाज न होने की स्थिति में ये यह खोपड़ी के अहम अंगों तक फैल सकता है. हालांकि डॉक्टर ने कहा अभी तक इंद्र की मौत के वजहों का पता नहीं चल पाया है. 20 जुलाई से 13 अगस्त के बीच, राजस्थान और गुजरात में घर और इन कई अस्पतालों के बीच अपनी यात्रा के अंत तक, मेघवाल परिवार ने कम से कम 1,259 किलोमीटर की दूरी तय की थी.
ये भी पढ़ेंः
Jalore Student Death: जालौर की घटना पर बाल संरक्षण आयोग सख्त, राज्य के सभी बालगृह का किया निरीक्षण