Jamiat Against UCC: उत्तराखंड विधानसभा में पेश यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल (Uttarakhand Uniform Civil Code Bill) पर आज बुधवार (7 फरवरी) से बहस शुरू हो रही है. इस बीच भारत‌ में मुस्लिम समुदाय‌ के सबसे पुराने संगठनों में से एक जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस विधेयक में मुसलमानों से भेदभाव का आरोप लगाया है. जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने UCC विधेयक को भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय को ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है, जो शरीयत के खिलाफ हो. अगर अनुसूचित जनजाति को विधेयक के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो फिर मुस्लिम समुदाय को छूट क्यों नहीं मिल सकती?


मौलाना मदनी ने मंगलवार (7 फरवरी) को एक बयान में कहा, "हमें ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है, जो शरीयत के खिलाफ हो. सच तो यह है कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता." 


' आदिवासियों को मिली है छूट'
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता विधेयक में अनुसूचित जनजातियों को संविधान के प्रावधानों के तहत नए कानून में छूट दी गई है और यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है.  मदनी ने सवाल किया, " अगर संविधान के एक अनुच्छेद के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखा जा सकता है, तो हमें संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक आजादी क्यों नहीं दी जा सकती?


' मौलिक अधिकारों को नकारती है समान नागरिक संहिता'
 मौलाना मदनी ने दावा किया, "समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है, अगर यह समान नागरिक संहिता है, तो फिर नागरिकों के बीच यह भेदभाव क्यों?" उन्होंने यह भी कहा, "हमारी कानूनी टीम विधेयक के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी, जिसके बाद कानूनी कदम पर फैसला लिया जाएगा." 


क्या है UCC बिल में?


बता दें कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य विधानसभा में मंगलवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश किया. इसमें बहुविवाह और 'हलाला' जैसी प्रथाओं को आपराधिक कृत्य बनाने तथा 'लिव-इन' में रह रहे जोड़ों के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रावधान है.  ‘समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024' विधेयक में धर्म और समुदाय से परे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति जैसे विषयों पर एक समान कानून प्रस्तावित है. हालांकि, प्रदेश में रह रही अनुसूचित जनजातियों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है.


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