ज़मीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-e-Hind) के सम्मेलन के दूसरे दिन यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) पर प्रस्ताव पास किया.सम्मेलन में समान नागरिक संहिता लागू करके मूल संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिशों पर चिंता ज़ाहिर की गई है. मुस्लिम नेताओं ने कहा कि इस्लामी शरीयत में किसी तरह की दखलंदाजी स्वीकार नहीं की जाएगी.


सम्मेलन में कहा गया है, ''मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल मामले जैसे कि शादी, तलाक़, ख़ुला (बीवी की मांग पर तलाक़), विरासत आदि के नियम क़ानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए हुए नहीं हैं. न ही ये रीति-रिवाजों या संस्कृति के मामले हैं, बल्कि नमाज़, रोज़ा, हज आदि की तरह ये हमारे मज़हबी आदेशों का हिस्सा हैं, जो पवित्र कुरआन और हदीसों से लिए गए हैं. इसलिए उनमें किसी तरह का कोई बदलाव या किसी को उनका पालन करने से रोकना इस्लाम में स्पष्ट हस्तक्षेप और भारत के संविधान की धारा 25 में दी गई गारंटी के खि़लाफ़ है. इसके बावजूद अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ लोग पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की मंशा से ‘समान नागरिक संहिता क़ानून’ लागू करने की बात कर रहे हैं और संविधान और पिछली सरकारों के आश्वासनों और वादों को दरकिनार कर के देश के संविधान की सच्ची भावना की अनदेखी करना चाहते हैं.''


'मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के लिए निर्देश जारी करे सरकार'


सम्मेलन में आगे कहा गया, ''जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ये सम्मेलन स्पष्ट कर देना चाहता है कि कोई मुसलमान इस्लामी क़ायदे क़ानून में किसी भी दख़ल अन्दाज़ी को स्वीकार नहीं करता. इसलिए जब भारत का संविधान बना तो उसमें मौलिक अधिकारों के तहत यह बुनियादी हक़ दिया गया है कि देश के हर नागरिक को धर्म के मामले में पूरी आज़ादी होगी. उसे अपनी पसंद का धर्म अपनाने, उसका पालन व प्रचार करने की आज़ादी का बुनियादी हक़ होगा.  हम सरकार से मांग करते हैं कि भारत के संविधान की इस मूल विशेषता और इस गारंटी को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के संबंध में एक स्पष्ट निर्देश जारी किया जाए.''


'समान नागरिक संहिता को हरगिज़ स्वीकार नहीं करेंगे'


सम्मेलन में यह भी कहा गया कि अगर कोई सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की ग़लती करती है, तो मुस्लिम और अन्य अनेक वर्ग इस घोर अन्याय हरगिज़ स्वीकार नहीं करेंगे और इसके खिलाफ़ संवैधानिक सीमाओं के अंदर रह कर हर संभव उपाय करने के लिए मजबूर होंगे. इस मौके पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद सभी मुसलमानों को ये स्पष्ट करना जरूरी समझती है कि शरीअत में दखलंदाजी उसी वक्त होती है, जब मुसलमान स्वयं शरीअत पर अमल नहीं करते. अगर मुसलमान शरीअत के प्रावधानों को अपनी ज़िंदगी में लाने की कोशिश करेंगे, इस पर अमल करेंगे, तो कोई कानून उन्हें शरीअत पर अमल करने से नहीं रोक पायेगा. इसलिए तमाम मुसलमान इस्लामी शरीअत पर जमे रहें, और किसी भी तरह से मायूस या हतोत्साहित न हों.


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