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Jamiat Ulama-e-Hind: ज़मीयत के सम्मेलन में मौलाना मदनी ने कहा- नफरत रोकने में फेल हुई सरकार

Jamiat Ulama-e-Hind: मौलाना मदनी ने मौजूदा हालातों के बारे में जिक्र करते हुए, बिना किसी का नाम लिए इशारों-इशारों में सरकार को मंदिर-मस्जिद विवाद के बाद पैदा हुए हालातों के लिये जिम्मेदार ठहराया.

Jamiat Ulama-e-Hind Meeting: देशभर में चल रही मंदिर-मस्जिद विवाद (Gyanvapi Row) की चर्चाओं के बीच आज सबकी निगाह सहारनपुर के देवबंद में चल रहे दो दिवसीय जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-e-Hind) के सम्मेलन पर रही. इस सम्मेलन के पहले दिन कई मुद्दों पर चर्चा हुई. लेकिन खासतौर पर सबकी नजर रही ज़मीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी (Maulana Mahmood Madani) के भाषण पर रही. अपने भाषण में मौलाना मदनी ने मौजूदा हालातों के बारे में जिक्र करते हुए, बिना किसी का नाम लिए इशारों-इशारों में सरकार को मंदिर-मस्जिद विवाद के बाद पैदा हुए हालातों के लिये जिम्मेदार ठहराया. 

अपने भाषण की शुरूआत में ही मौलाना मदनी काफी भावुक हो गये. इस दौरान उन्होंने कहा कि हालात मुश्किल हैं. लेकिन मायूसी की जरूरत नहीं है. चंद दिनों पहले मैं सोच रहा था जिसका कोई नहीं वो क्यों मुश्किल में होगा. लेकिन जिसका बहुत कुछ है वो ही मुश्किल में होगा. मौलाना मदनी ने कहा कि मुश्किल झेलने के लिये ताकत चाहिये, हम कमजोर लोग हैं. अगर ज़मीयत ने फैसला किया है कि हम शांति को बढ़ायेंगे, अगर ज़मीयत का फैसला हुआ है कि हम जुर्म को सह लेंगे, हम अपने वतन पर आंच नहीं आने देंगे तो हम ये करेंगे क्योंकि ये हमारी ताकत है कमजोरी नहीं. 

नफरत फैलाने वाले लोग मुल्क के गद्दार हैं

मौलाना मदनी ने अपने भाषण में आगे कहा कि खामोशी सब्र का इम्तिहान है. सरकार की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि वो चाहते क्या हैं? उनका एक्शन प्लान क्या है? इस मुल्क में उन लोगों की दरकार नहीं जो नफरत के पुजारी हैं. मदनी ने कहा वो पहले इतने नफरत फैलाने वाले नहीं थे. लेकिन आज ज्यादा नजर आ रहे हैं. लेकिन अगर हमने भी उनकी ही भाषा में जवाब देना शुरू कर दिया तो वो अपने मंसूबों में कामयाब हो जायेंगे. मौलाना मदनी ने कहा कि नफरत फैलाने वाले लोग मुल्क के गद्दार हैं. नफरत को मोहब्बत से सुलझाया जा सकता है. 

"अपनी ही बस्ती में हम अंजान हो गये हैं"

उन्होंने मौजूदा हालतों का जिक्र करते हुए कहा कि आज तो ऐसी हालत हो गयी है कि अपनी ही बस्ती में हम अंजान हो गये हैं. अखंड भारत की बात करते हैं ये लेकिन आज हालत ये कर दी है कि मुसलमान का चलना तक मुश्किल कर दिया है. इसलिये मैं कहता हूं कि आप मुल्क से गद्दारी कर रहे हैं. मौलाना मदनी ने कहा कि हम वो नहीं करेंगे जो तुम करवाना चाहते हो. हम वो करेंगे जो हमें उस वक्त सही लगेगा. हम तुम्हारे एक्शन प्लान पर नहीं चलेंगे. 

आपके जिस्म पर पसीना हमारे जिस्म पर खून होगा- मदनी

अपने भाषण के अंत में मौलाना मदनी ने फिर कहा कि आप मुल्क के साथ दुश्मनी कर रहे हैं, वापस पलटकर देखिए क्या खो रहे हो. इम्तहान हमारे सब्र का है और सब्र को कमजोरी ना समझें. उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो जेल भरो आंदोलन करेंगे. आपके जिस्म पर पसीना हमारे जिस्म पर खून होगा. सरकार पर कटाक्ष करते हुए मौलाना मदनी ने फिर कहा कि सत्ता हमेशा नहीं रहती. सत्ता और इंसान को जाना ही पड़ेगा. 

ज़मीयत उलमा-ए-हिंद के सम्मेलन के पहले दिन कुछ प्रस्ताव भी पास किये गये जो इस प्रकार हैं- 

इस्लामोफोबिया की रोकथाम के विषय में प्रस्ताव 
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि भारत में इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी उकसावे की घटनाएं बराबर बढ़ रही हैं. ‘इस्लामोफोबिया’ सिर्फ धर्म के नाम पर शत्रुता ही नहीं, बल्कि इस्लाम के खिलाफ भय और नफरत को दिल व दिमाग पर हावी करने की मुहिम है, जो मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ एक विश्व व्यापी दुष्प्रयास है. इसके कारण आज हमारे देश को धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक इंतहापसंदी (अतिवाद) का सामना करना पड़ रहा है. हमारा प्रिय देश इस तरह के दुष्प्रयासों से पहले कभी इतना प्रभावित नहीं हुआ था जितना अब हो रहा है. इस प्रस्ताव में सरकार का जिक्र करते हुए कहा गया है कि आज देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में आ गई है जो देश की सदियों पुरानी भाई चारे की पहचान को बदल देना चाहते हैं. उनके लिए हमारी साझी विरासत और सामाजिक मूल्यों का कोई महत्व नहीं है. उनको बस अपनी सत्ता ही प्यारी है. ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद इस स्थिति पर अपनी गहरी चिंता जाहिर करती है और निम्न उपाय अपनाने की जरूरत महसूस करती है.

  1. 2017 में प्रकाशित लॉ कमीशन की 267 वीं रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि हिंसा पर उकसाने वालों को सजा दिलाने के लिए एक अलग कानून बनाया जाए और सभी कमजोर वर्गों विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग को सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के दुष्प्रयासों पर रोक लगाई जाए. 
  2. सभी धर्मों, जातियों और कौमों के बीच आपसी सद्भाव, सहनशीलता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संदेश देने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित ‘इस्लामोफोबिया की रोकथाम का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ हर साल 14 मार्च को मनाया जाए, और मानव गरिमा के सम्मान का स्पष्ट संदेश दिया जाए.
  3. इस स्थिति से निपटने के लिए ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद ने “जस्टिस एंड एम्पावरमेंट इनीशिएटिव फॉर इंडियन मुस्लिम्स’’ (भारतीय मुसलमानों के लिए न्याय और अधिकारिता पहल) नाम से एक स्थायी विभाग बनाया है, जिसका मकसद नाइंसाफी और उत्पीड़न को रोकने और शांति और न्याय बनाए रखने की रणनीति विकसित करना है. 

दूसरा प्रस्ताव- देश में नफरत के बढ़ते हुए दुष्प्रचार को रोकने के उपायों पर विचार
इसमें कहा गया कि हमारा देश धार्मिक बैर भाव और नफरत की आग में जल रहा है. चाहे वह किसी का पहनावा हो, खान-पान हो, आस्था हो, किसी का त्योहार हो, बोली (भाषा) हो या रोजगार, देशवासियों को एक दूसरे के खिलाफ उकसाने और खड़ा करने के दुष्प्रयास हो रहे हैं. युवकों को रचनात्मक कामों में लगाने के बजाय, विघटनकारी कामों का साधन बनाया जा रहा है. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सांप्रदायिकता की यह काली आंधी मौजूदा सत्ता दल व सरकारों के संरक्षण में चल रही है जिसने बहुसंख्यक वर्ग के दिमागों में जहर भरने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है.

देश के मुस्लिम नागरिकों, पुराने जमाने के मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति के खिलाफ भद्दे और निराधार आरोपों को जौरों से फैलाया जा रहा है और सत्ता में बैठे लोग उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें आजाद छोड़कर और उनका पक्ष लेकर उनके हौसले बढ़ा रहे हैं. ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद इस बात पर चिंतित है कि खुले आम भरी सभाओं में मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ शत्रुता के इस प्रचार से पूरी दुनिया में हमारे देश की बदनामी हो रही है और उस की छवि एक धार्मिक कट्टरपंथी राष्ट्र जैसी बन रही है. इससे हमारे देश के विरोधी तत्वों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौका मिल रहा है. ऐसी परिस्थिति में ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद देश की एकता, अखंडता और प्रगति के बारे में चिंतित है और भारत सरकार से आग्रह करती है कि उन तत्वों पर और ऐसी गतिविधियों पर तुरंत रोक लगाई जाए जो लोकतंत्र, न्यायप्रियता और नागरिकों के बीच समानता के सिद्धांतों के खिलाफ और इस्लाम व मुस्लिम दुश्मनी पर आधारित हैं. 

तीसरा प्रस्ताव- सद्भावना मंच को मजबूत करने पर विचार
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद के संविधान की धारा (8) सामाजिक सेवा के अनुसार, 2 सितंबर 2019 को आयोजित ज़मीयत की मुंतजिमा कमेटी की बैठक में कम से कम 11 सदस्यों का ज़मीयत सद्भावना मंच बनाने का फैसला किया गया था. तय किया गया था मंच के आधे सदस्य गैर-मुस्लिम होंगे. इस मंच में ज़मीयत के सदस्यों के अलावा धर्म या कौम के भेद-भाव के बिना स्थानीय जिम्मेदार व्यक्तियों को शामिल किया जाना तय हुआ था और यह भी तय हुआ था कि मंच की मीटिंग हर महीने बुलाई जाएगी जिसमें ये कदम उठाए जाएंगे—

  1. विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के लोगों की संयुक्त बैठक करना.
  2. आम नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करना.
  3. मजदूर भाइयों, किसानों और पिछड़े लोगों की सेवा करना.
  4. यतीमों, बेवाओं और मजबूर लोगों की मदद करना.
  5. नवयुवकों को नशे की आदत और नैतिक भटकाव से बचाने के लिए मिल-जुल कर प्रयास करना.
  6. संवेदनशील धार्मिक मुद्दों (जैसे गौरक्षा, धर्म स्थलों में लाउडस्पीकर का उपयोग, त्योहारों के मौके पर सार्वजनिक जगहों का इस्तेमाल) आदि की समस्या कहीं हो तो उसका शांतिपूर्ण समाधान खोजना.
  7. पर्यावरण संरक्षण जैसे वृक्षा रोपण, जल संरक्षण और गंदगी से इलाके को साफ रखने के लिए सामुहिक प्रयास करना. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सकारात्मक संदेश देने के लिए धर्म संसद की तर्ज पर 1000 जगह सद्भावना संसद के आयोजन का भी ऐलान किया है. 

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