Jamiat on Ahmadiyya Muslims: अहमदिया मुस्लिम समाज के मामले में जमीयत उलेमा-ए हिंद और केंद्र सरकार आमने सामने आ गए हैं. उलेमा-ए-हिंद ने इस मामले में केंद्र के दखल की मुखालफत की है और इसे अनुचित करार दिया. साथ ही आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के फैसले का भी समर्थन किया है. 


जमीयत की ओर से जारी बयान मे कहा गया कि कादियानियों (अहमदिया मुस्लिम समाज) को लेकर बोर्ड ने जो फैसला लिया है हम उसका समर्थन करते हैं.   


जमीयत ने कहा, अहमदिया मुस्लिम समाज इस्लाम के दायरे से बाहर
जमीयत ने कहा कि वक्फ बोर्ड का पहला मकसद मुसलमानों की बंदोबस्ती और हितों की रक्षा करना है, जैसा कि वक्फ अधिनियम में परिभाषित किया गया है. 6 से 10 अप्रैल 1974 को 'वर्ल्ड मुस्लिम लीग' के दौरान हुए फैसले का हवाला देते हुए जमीयत ने कहा कि एक सौ दस देशों के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से घोषणा की कि यह अहमदिया मुस्लिम समाज इस्लाम के दायरे से बाहर है और मुसलमानों के प्रति शत्रुता रखता है इसलिए आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड का फैसला सही है.


अहमिदया मुसलमानों ने केंद्र से की थी शिकायत
3 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने अहमदिया मुसलमानों को काफिर और  गैर-मुस्लिम करार देते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था. इसे लेकर केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश सरकार से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की थी. 20 जुलाई को अहमदिया मुस्लिम समाज के अहसन गौरी ने अल्ससंख्यक मंत्रालय को एक शिकायती पत्र सौंपा था. इसमें कहा गया कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक जमैतुल उलेमा के फतवे के आधार पर एक आदेश जारी कर उनके समाज को मुस्लिम समुदाय से बाहर करने का आदेश दिया है. 


केंद्र ने आंध्र प्रदेश सरकार को लिखा था खत
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से आंध्र प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी के एस जवाहर रेड्डी को भेजे गए पत्र में कहा गया कि वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव का असर पूरे देश में देखने को मिल सकता है. इसमें कहा गया कि यह अहमदिया मुसलमानों की तरफ एक हेट कैंपेन के सामन है और अहमदिया मुसलमानों की बहुत बड़ी आबादी देश में रहती है, लैटर में यह भी कहा गया कि उनकी धार्मिक पहचान को लेकर कोई भी फैसला लेने का बोर्ड के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है.


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