नई दिल्ली: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने शुक्रवार को दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की. यह मुलाकात चर्चा का विषय बना हुआ है. मदनी और भागवत के बीच यह मुलाकात दिल्ली के झंडेवालान स्थित संघ कार्यालय 'केशव कुंज' में हुई. इस दौरान मौलाना अरशद मदनी ने संघ प्रमुख भागवत से मौजूदा हालत पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि संघ मुस्लिमों को लेकर अपना नजरिया बदलें और सिर्फ बयानबाजी नहीं बल्कि जमीन पर उतरकर काम करें.


दोनों के बीच मुलाकात इसलिए भी चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जमीयत उलेमा-ए-हिंद दोनों ही धार्मिक संगठन है और अपने-अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं. हालांकि धार्मिक संगठन होते हुए भी कई मायनों में जमीयत उलेमा-ए-हिंद, आरएसएस से अलग है. ऐसे में जब जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस वक्त चर्चा का विषय बना हुआ है तो आपको आज इस संगठन के बारे में बताते हैं.


क्या है जमीयत उलेमा-ए-हिंद


जमीयत उलेमा-ए-हिंद भारतीय इस्लामी विद्वानों का संगठन है. इसकी स्थापना 1919 में की गई थी. इस संगठन को हमेशा से ही कांग्रेस का समर्थक माना जाता रहा है. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने को लेकर जहां एक तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सवालों के घेरे में रहता है तो वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद का स्वतंत्रता संग्राम में काफी योगदान रहा है और इस संगठन के सदस्यों ने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.


स्वतंत्रता आंदोलन में लिया हिस्सा और बंटवारे का किया विरोध


जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदस्यों ने कांग्रेस के साथ मिलकर ख़िलाफ़त आन्दोलन में हिस्सा लिया था. ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था. इस आन्दोलन का उद्देश्य (सुन्नी) इस्लाम के मुखिया माने जाने वाले तुर्की के ख़लीफ़ा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिए अंग्रेज़ों पर दबाव बनाना था.


इतना ही नहीं देश के बंटवारे के खिलाफ भी यह संगठन रहा है. इस संगठन का हमेशा मानना रहा कि देश मुस्लिम और गैर मुस्लिम से मिलकर बनता है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने साफ शब्दों में मुसलमानों के लिए अलग मुल्क की बात को नकार दिया था.


आज क्या है इस संगठन की स्थिति


जमीयत उलेमा-ए-हिंद आज पूरे भारत में फैला हुआ है. इस संगठन का अपना उर्दू समाचार पत्र अल-जमीयत भी छपता है. इसने अपने राष्ट्रवादी दर्शन के लिए एक सैद्धान्तिक आधार प्रस्तुत किया है. उनका कहना है कि मुसलमानों और गैर-मुस्लिमों ने आजादी के बाद एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करने के लिए भारत में रहने का फैसला किया.


जमीयत उलेमा-ए-हिन्द देश की आजादी पूर्व से ही चला आ रहा संगठन है, लेकिन कई बार ये अंदरूनी खींचतान का शिकार रहा. बीते कई दशकों से ये संगठन एक परिवार के कब्जे में है. साल 2008 में जमीयत उलेमा-ए-हिंद दो हिस्सों में बंट गया, लेकिन इस बार भी लड़ाई चाचा-भतीजे के बीच थी और बंटे दोनों संगठनों के जिम्मेदार भी मदनी परिवार के ही अलग अलग सदस्य बने.  इन तमाम खींचतान के बावजूद ये संगठन देश में मुसलमानों का सबसे बड़ा धार्मिक और सामाजिक संगठन माना जाता है.


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