उमर अब्दुल्ला की पाकिस्तान को दो टूक, कहा- भारत से अलग जम्मू-कश्मीर का कोई भविष्य नहीं
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वे, न तो धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नेताओं के नजरिये वाला भारतीय बन सकते हैं और न ही ऐसे लोगों के नजरिये वाला कश्मीरी बन सकते हैं, जो भारत के एक हिस्से के तौर पर कश्मीर का कोई भविष्य नहीं देखते.
नई दिल्लीः नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि उन्हें भारत से अलग जम्मू-कश्मीर का कोई भविष्य नहीं दिखाई देता. उन्होंने यह भी कहा कि वह 'न तो धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नेताओं के नजरिये वाला भारतीय बन सकते हैं' और 'न ही ऐसे लोगों के नजरिये वाला कश्मीरी बन सकते हैं, जो भारत के एक हिस्से के तौर पर कश्मीर का कोई भविष्य नहीं देखते. अब्दुल्ला ने हाल ही में आई पुस्तक 'इंडिया टुमॉरो: कन्वर्सेशन विद द नेक्स्ट जेनरेशन ऑफ पॉलिटिकल लीडर्स' में कहा कि ऐसे में सबसे अच्छा यही है कि आप जो हैं, वही बने रहें.
232 दिन की हिरासत ने बना दिया था 'चिड़चिड़ा' और 'गुस्सैल'
पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म करने और उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद उमर अब्दुल्ला को हिरासत में ले लिया गया था. अब्दुल्ला ने कहा कि 232 दिन की हिरासत ने उन्हें 'चिड़चिड़ा' और 'गुस्सैल' बना दिया था, फिर भी जम्मू-कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग मानने के उनके जांचे-परखे रुख में कोई बदलाव नहीं आया.
अब्दुल्ला ने पुस्तक के लेखकों प्रदीप छिब्बर और हर्ष शाह के साथ एक साक्षात्कार में कहा, 'जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न हिस्सा है. मेरी हिरासत और पांच अगस्त के बाद के हालात ने भी मेरे ये विचार बदलने के लिये मजबूर नही कर पाये. ’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि मैंने यह सोच सभी तरह की चीजों को दिमाग में रखते हुए बनाई है मैं नहीं मानता कि भारत से अलग जम्मू-कश्मीर का कोई भविष्य हो सकता है.'
यह पुस्तक पाठकों को देश की अगली पीढ़ी के 20 सबसे प्रभावशाली नेताओं के साक्षात्कारों के जरिये भारत की समकालीन राजनीति की दिशा जानने का मौका देती है. अब्दुल्ला ने कहा, 'मैंने यह हकीकत कबूल कर ली है कि मैं कभी धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नेताओं के नजरिये वाला भारतीय नहीं बन सकता हूं. लेकिन, उसी समय मैं कभी ऐसे लोगों के नजरिये वाला कश्मीरी भी नहीं बन सकता हूं, जो भारत के एक हिस्से के तौर पर कश्मीर का कोई भविष्य नहीं देखते. लिहाजा, सबसे अच्छा यही है कि आप जो हैं, वही बने रहें.' उन्होंने जोर देकर कहा कि 'भारत ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के साथ' जो किया उसे किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता.
पचास वर्षीय अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें लगता है कि जम्मू-कश्मीर के साथ 'बहुत, बहुत बुरा' सलूक किया गया और 'उससे किया गया हर एक वादा तोड़ दिया गया.' उन्होंने कहा, 'मेरे जैसे लोगों के लिए इस बात को समझना मुश्किल हो गया है कि मुझे क्यों लगता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का ही अंग रहना चाहिये. दिल्ली ने हमें इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा'
प्रधानमंत्री से फैसले को पलटने लिए नहीं कहूंगा
अब्दुल्ला ने कहा कि बहुत साफ है कि वह इस सरकार से अनुच्छेद 370 तथा अनुच्छेद 35ए को हटाने के उसके रुख को बदलने के लिए या नवगठित केंद्रशासित प्रदेश को फिर से पूर्ण राज्य बनाने के लिए नहीं कहेंगे. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी ने जो किया, मैं उनसे उसे पलटने के लिए नहीं कहूंगा. यह बेबकूफी होगी. यह सबसे बेकार किस्म की राजनीति है क्योंकि जो भी मैं करुंगा, वह मतदाताओं के तुष्टीकरण का प्रयास होगा. जबकि मैं जानता हूं कि इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है. मेरा मानना है कि तुष्टीकरण की राजनीति सबसे खराब है.’’
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधानों को समाप्त करने तथा उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है. अब्दुल्ला ने अपनी आठ महीने की हिरासत का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें शुरू में लगा था कि यह एक या दो सप्ताह की होगी. उन्होंने कहा कि वह आज भी नहीं समझ पा रहे कि उनके साथ और मुख्यधारा के अन्य नेताओं के साथ इस तरह का बर्ताव क्यों किया गया.
अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘हम जम्मू कश्मीर में चुनाव लड़ने के लिए जी-जान लगा देते हैं और कैसी विडंबना है कि हमें हिरासत में रखने के लिए यह एक वजह बताई गयी. मेरी हिरासत के आदेश में एक खंड में इसी का उल्लेख था कि मैं बाहर आकर किस तरह लोगों को आतंकी धमकी और चुनाव के बहिष्कार के बावजूद बाहर निकलने तथा बड़ी संख्या में मतदान के लिए प्रभावित कर सकता हूं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे कभी ऐहसास नहीं हुआ कि इस चीज का इस्तेमाल मेरे खिलाफ हो सकता है. कल, मैं लोगों को किस तरह बाहर निकलने और मतदान के लिए मनाऊंगा? मैं उनसे क्या कहूंगा?’’
अब्दुल्ला को पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के प्रावधान समाप्त किये जाने की केंद्र सरकार की घोषणा के कुछ ही समय बाद हिरासत में ले लिया गया था. फरवरी में उन पर जन सुरक्षा कानून (पीएसए) लगाया गया था और उन्हें 24 मार्च, 2020 को छोड़ दिया गया. उनके पिता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पर भी पीएसए लगाया गया और उन्हें 221 दिन की हिरासत के बाद 13 मार्च को रिहा किया गया. पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अब भी अपने घर पर नजरबंद हैं.
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