श्रीनगर: कश्मीर में अब दरबार नहीं लगेगा. हर साल यहां राजधानी जम्मू से श्रीनगर और फिर श्रीनगर से जम्मू शिफ़्ट होता रहा है. तो सचिवालय भी उसी हिसाब से बदलता रहता है. गर्मियों में कामकाज श्रीनगर से होता है. सर्दी के मौसम में सारा काम जम्मू से होता है. श्रीनगर से ऑफिस जम्मू शिफ़्ट होने को दरबार कहा जाता है. लेफ़्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने 149 साल पुरानी इस परंपरा को बंद करने का फ़ैसला किया है. 29 जून को इस बारे में सरकारी आदेश भी जारी हो गया है.
दरबार के चक्कर में हर साल करोड़ों रूपये खर्च होते थे. सरकारी अफ़सरों को जम्मू और श्रीनगर दोनों जगह घर मिलता था. जिसमें वे छह महीने रहते थे और बाक़ी के छह महीने मकान ख़ाली ही रहता था. जिन्हें सरकारी बंगला नहीं मिलता था उन्हें महंगे दर पर किराया वाला मकान मिलता था. हर साल सिर्फ़ सरकारी फाइल शिफ़्ट करने में ही लाखों लग जाते थे.
ट्रकों में भर कर सरकारी फ़ाइलें भेजी जाती रही हैं. पिछली बार क़रीब दो सौ ट्रक भाड़े पर लिए गए थे. दरबार शिफ़्ट करने में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे हैं. बिल में खूब हेराफेरी होती थी. सरकारी फ़ाइलों को न ढोना पड़े इसीलिए अब फ़ाइलों को डिजिटल फार्म में बदलने का फ़ैसला किया गया है. क़रीब 9 हज़ार अधिकारी और कर्मचारी हर बार जम्मू से श्रीनगर जाते हैं. इनके साथ साथ रहने और आने जाने का खर्च भी सरकारी खाते से जाता रहा है. अब ताज़ा आदेश में सबको अपना घर 21 दिनों में ख़ाली करने को कहा गया है.
जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने भी पिछले साल दरबार शिफ़्ट करने की व्यवस्था ख़त्म करने का सुझाव दिया था. चीफ़ जस्टिस गीता मित्तल ने कहा था कि ये सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ है. अब लेफ़्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने यही बोझ कम कर दिया है. इससे समय, संसाधन और पैसे की बचत होगी. जो कश्मीर के विकास के काम आ सकता है.
डोगरा महाराज गुलाब सिंह ने राजधानी शिफ़्ट करने की शुरूआत 1872 में की थी. इसके बाद ये परंपरा बंद हो गई थी. लेकिन 1947 के बाद ये फिर शुरू हो गया था. एक कहावत है ‘जो कुछ पुराना है मोहक तो लगता है, टूटन का दर्द मगर सहना पड़ता है’. लेकिन दरबार टूटने से कश्मीर को सालों पुरानी दर्द से मुक्ति मिली है.
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