जम्मू कश्मीर: रोशनी एक्ट के तहत हुए 25 हजार करोड़ के कथित भूमि घोटाले को लेकर जांच शुरू
वर्ष 2001 में नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने रोशनी एक्ट बनाया. सरकार ने इस एक्ट के तहत जमा होने वाले राजस्व को पन बिजली परियोजना पर लगाने का तर्क दिया गया था. एक्ट का प्रावधान था कि उन्हीं लोगों को जमीन का मालिकाना हक मिलेगा, जिनके पास 1999 से पहले से सरकारी जमीनों पर कब्जा है.
जम्मू: प्रदेश हाई कोर्ट के आदेशों के बाद जम्मू कश्मीर के चर्चित रोशनी एक्ट के तहत गैरकानूनी ढंग से हुए 25,000 करोड़ के भूमि घोटाले को लेकर प्रदेश सरकार ने जांच शुरू कर दी है. प्रदेश सरकार का दावा है कि इस जांच में सब से पहले बड़ी मछलियों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी.
जम्मू कश्मीर के बहुचर्चित 25 हज़ार करोड़ के रौशनी एक्ट घोटाले की जांच जम्मू कश्मीर सरकार ने शुरू कर दी है. जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग ने दावा किया है कि इस एक्ट के तहत गैर कानूनी ढंग से आवंटित हुई ज़मीनो की जांच प्रक्रिया अगले करीब छह महीनो में पूरी की जाएगी, और इस घोटाले में शमिल किसी भी आरोपी को बक्शा नहीं जायेगा. प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के फाइनेंसियल कमिश्नर डॉ पवन कोतवाल के मुताबिक इस पूरे घोटाले की जांच होगी और सब से पहले इस घोटाले से शामिल बड़ी मछिलयों पर सब से पहले शिकंजा कसा जायेगा.
दरअसल, वर्ष 2001 में नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने रोशनी एक्ट बनाया. सरकार ने इस एक्ट के तहत जमा होने वाले राजस्व को पन बिजली परियोजना पर लगाने का तर्क दिया गया था. एक्ट का प्रावधान था कि उन्हीं लोगों को जमीन का मालिकाना हक मिलेगा, जिनके पास 1999 से पहले से सरकारी जमीनों पर कब्जा है.
वर्ष 2004 में इस एक्ट में बदलाव कर वर्ष 1999 से पहले कब्जे की शर्त हटा दी गई. इससे लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जे को दर्शाकर आवेदन किए. एक्ट के तहत मूल्य तय करने के लिए कई कमेटियां बनीं, लेकिन इसमें भी नियमों को ताक पर रखा गया. 2007 के बाद मालिकाना हक के लिए आवेदन नहीं हो सकता था, लेकिन राजनेताओं ने यह जारी रखा. इसके बाद इस एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने और इस सारे घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अंकुर शर्मा ने अदालत का दरवाज़ा खटखटया.
अंकुर के मुताबिक इस एक्ट के तहत करीब 20 लाख कनाल सरकारी भूमि पर हुए अवैध कब्ज़ों में से 3.5 लाख कनाल सरकारी भूमि की रजिस्ट्रियां करीब 30,000 आवेदकों के हक़ में की गयी है. उनके मुताबिक प्रदेश की सरकारी भूमि पर क़ब्ज़ा करने और फिर उन अवैध क़ब्ज़ा को कानूनी बनाने के लिए 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने यह कानून लाया.
अंकुर के मुताबिक सरकारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने और फिर उस ज़मीन को कोडियो के भाव रजिस्टर करने में राजनेता, मंत्री और नौकरशाह सब से आगे थे. याचिकर्ता के मुताबिक प्रदेश की सरकारी भूमि की लूट खसूट किस हद तक की गयी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2013 की सीऐजी रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि जहां सरकार इस एक्ट के द्वारा सरकार का लक्ष 25 हज़ार करोड़ रुपये कमाने का था. वहीं सरकार इस एक्ट से महज़ 76 हजार करोड़ रुपये ही जुटा पायी.
रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि कश्मीर में प्रदेश के दो बड़े राजनैतिक दलों को करोड़ों की ज़मीन तय मूल्य से 85 प्रतिशत तक के कम मूल्य पर दी गयी. वहीं, याचिकर्ता ने रोशनी एक्ट के निरस्त होने के बाद जम्मू के साम्बा, कठुआ और जम्मू ज़िलों में पाकिस्तानी सीमा से सटे सरकारी ज़मीन पर बने खेतो में काम करने वाले किसानो पर कोई असर नहीं पड़ेगा.