नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार गिराने के लिए बीजेपी ने यही समय क्यों चुना? सवा तीन साल से पीडीपी के साथ सरकार चला रही बीजेपी के सामने अचानक कौन सी मजबूरी आन पड़ी? जानकारों की मानें तो इसके पीछे 2019 के चुनाव की रणनीति छिपी है. बीजेपी के इस फैसले के बाद एक बार फिर आने वाले चुनाव में  धारा 370 की गूंज सुनाई दे सकती है. वा तीन साल से धारा 370 पर बीजेपी नेता मौन हो गए थे. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है.


बीजोपी को था कोर वोट बैंक खो देने का खतरा!


2019 के लोकसभा चुनाव में अब साल भर से भी कम का वक्त बचा है और बीजेपी महबूबा को मनाते-मनाते अपना कोर वोट बैंक गंवा न दे, इसका खतरा लगातार बना हुआ था. कठुआ रेप कांड के बाद बीजेपी जम्मू के लोगों की नाराजगी झेल ही रही है. इसका संक्रमण चुनाव के पहले पूरे देश में फैलने न पाए, इसको लेकर बीजेपी के रणनीतिकार लगातार मंथन कर रहे थे. इसलिए बीजेपी के पास महबूबा सरकार से हाथ खींचने के अलावा कोई चारा नहीं था.


फिर सुनाई दे सकती है धारा 370 की गूंज


महबूबा मुफ्ती सरकार से हटने के बाद बीजेपी 2019 के अपने एजेंडे पर ज्यादा फोकस कर सकेगी. सवा तीन साल से धारा 370 पर बीजेपी नेता मौन हो गए थे. अब 23 जून को श्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर जा रहे हैं. जहां फिर धारा 370 की गूंज सुनाई दे सकती है, जो कम से कम अगले साल के आम चुनाव तक जाएगी.


दरअसल बीजेपी कश्मीर को लेकर पूरे देश में प्रचारित करती रही है कि वह अनुच्छेद 370 को लेकर उसका रुख साफ है और वह इसे खत्म करेगी. वहीं पीडीपी किसी भी कीमत पर इसके लिए न तैयार थी और न ही होगी. यही वजह थी की कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में अनुच्छेद 370 को अलग रखा गया था. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हमें संविधान के अनुच्छेद 370 और राज्य के विशेष दर्जे के बारे में आशंका थी. हमने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए की रक्षा की है.


क्या है धारा 370?


साल 1954 में राष्ट्रपति के एक आदेश के बाद संविधान में यह अनुच्छेद जोड़ा गया था, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार प्रदान करता है और राज्य विधानसभा को कोई भी कानून बनाने का अधिकार देता है, जिसकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती. यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर के लोगों को छोड़कर बाकी भारतीय नागरिकों को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी पाने और राज्य सरकार की छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ लेने से रोकता है.


बिगड़ती जा रही थी कानून व्यवस्था


जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनने के बाद कानून व्यवस्था सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही थी. इसका सबसे ताजा उदाहरण रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के एकतरफा युद्धविराम के दौरान दिखा. महबूबा मुफ्ती की मांग पर केंद्र ने सुरक्षाबलों ने कश्मीर घाटी में सर्च ऑपरेशन औऱ संदिग्ध आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रुकवा दिया, लेकिन आतंकी वारदातें नहीं रुकीं.


रमजान में घटी नहीं बल्कि बढ़ीं आतंकी वारदातें


रमजान महीने के पहले 16 अप्रैल से 15 मई तक 25 आतंकी हमले हुए. लेकिन रमजान के दौरान यानि 16 मई से 15 जून के दौरान ये तीन गुना बढ़कर 66 हो गईं.


रमजान से पहले महीने में आतंकियों ने पांच ग्रेनेड अटैक किए, लेकिन रमजान के महीने में 22 ग्रेनेड अटैक हुए. रमजान से पहले पांच सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जबकि रमजान के दौरान सात सुरक्षाकर्मियों ने शहादत दी.


29 जून से शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा


रमजान महीना तो भारी अशांति के बीच गुजर गया. अब 29 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है. खुदा न खास्ता इस यात्रा के दौरान कोई अनहोनी हो गई तो बीजेपी को जवाब देना मुश्किल पड़ सकता था. पिछले साल अमरनाथ यात्रियों की बस पर आतंकी हमले में गुजरात के सात श्रद्धालुओं की मौत के बाद बीजेपी को अपने कैडर और देश को जवाब देने में लेने के देने पड़ गए थे.


अब अपने मन मुताबिक काम करेगी केंद्र सरकार!


कहा ये भी जा रहा है कि घाटी में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद केंद्र सरकार अपने मन मुताबिक काम करेगी. आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट रफ्तार पकड़ेगा तो अलगाववादी नेताओं पर भी कोई मुरव्वत नहीं होगी. पत्थरबाज़ों के लिए महबूबा के दिल में जो हमदर्दी थी, उस पर सुरक्षाबल अब खुलकर चोट करेंगे.


इस एकतरफा और अचानक किए फैसले से बीजेपी की राष्ट्रवादी छवि पर फिर से शान भी चढ़ेगी. वहीं कठुआ गैंगरेप जैसे विवाद सामने आने के बाद बीजेपी की छवि खराब हुई थी. जम्मू के लोग पूरे मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने इस मांग को ठुकरा दिया था, जिससे बीजेपी की राजनीतिक जमीन भी कमजोर हुई थी.


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