जम्मू कश्मीर सरकार ने भूमि अनुदान नियमों में बदलाव किया है. सूबे के उपराज्यपाल प्रशासन ने दिसंबर के तीसरे हफ्ते में जम्मू-कश्मीर भूमि अनुदान नियम-2022 के तहत नए भूमि नियम अधिसूचित किए हैं. ये नियम जम्मू-कश्मीर भूमि अनुदान नियम-1960 की जगह लागू किए गए हैं.
दरअसल 1960 के भूमि अनुदान नियम पहले इस सूबे में सरकारी जमीन को पट्टे यानी लीज पर देने की खास व्यवस्था को लेकर लागू किए गए थे. ये जमीन को पट्टे या लीज पर देने वाली बेहद लचीली पॉलिसी थी.
माना जाता है कि इसके तहत बेहद कम कीमतों पर सूबे की प्राइम लोकेशन होटेल, वाणिज्यिक और आवासीय निर्माणों के लिए खोल दी गई थी. इसका भरपूर फायदा इस सूबे के नामी-गिरामी और पैसे वाले लोगों ने उठाया. सरकार से कम कीमतों पर लीज पर जमीन लेकर इन लोगों ने अच्छा-खासा मुनाफा कमाया.
अब नए सरकारी नियमों के तहत सरकार ने इस तरह की लीज को आगे न बढ़ाने की घोषणा कर डाली है. यही वजह है यहां के रसूखदारों को ये नियम रास नहीं आ रहे हैं.
अब प्राइम लोकेशन छोड़नी होगी
जम्मू-कश्मीर भूमि अनुदान नियम-1960 के तहत वर्षों से सूबे की प्राइम लोकेशन जैसे श्रीनगर, जम्मू, गुलमर्ग और पहलगाम में पट्टे पर जमीन लेकर लोगों ने यहां नई होटेल चेन से लेकर बड़े वाणिज्यिक ढांचे खड़े कर डाले हैं. माना जाता है कि पुराने भूमि अनुदान नियम की वजहों से यहां के अपर मिडिल क्लास को खासा फायदा पहुंचता रहा है.
जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का मानना है कि भूमि पट्टे पर देने को लेकर पहले बनाए गए जम्मू-कश्मीर भूमि अनुदान कानून पीछे की तरफ ले जाने वाले यानी रिग्रेसिव है. आम लोगों के फायदे को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं.
उन्होंने कहा कि इससे विकास को बढ़ावा नहीं मिलता है और इनमें संशोधन किए जाने की सख्त जरूरत थी. उन्होंने मौजूदा वक्त में लीज पर जमीन लेने वाले लोगों पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि इन लोगों ने महज 5 रुपये देकर 100 करोड़ की संपत्ति का फायदा कमाया है.
हालांकि इसे लेकर यहां के लोगों का कहना है कि नए भूमि अनुदान नियम बाहर के लोगों के सूबे की प्राइम लोकेशन पर अच्छी जमीनों को खरीदने का दरवाजे खोल देंगे.
नए भूमि कानून में नया क्या है?
2022 के नए भूमि कानूनों के मुताबिक सूबे में मौजूदा वक्त में जो लोग लीज वाली जमीन के मालिक है उनकी लीज खत्म होने पर उसे आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. इस कानून में कहा गया है कि सभी लीज वाली जमीनों पर ये लागू होगा. केवल गुजारे भत्ते और खत्म हो चुकी आवासीय लीज पर ये कानून लागू नहीं होगा.
मतलब सूबे के जिन लोगों ने गुजर-बसर करने के लिए छोटी दुकान या फिर मकान बनाने के लिए पट्टे या लीज पर जमीन ली हैं वो इस कानून के दायरे में नहीं आएंगे.
सरकार ने साफ कर दिया है कि इस कानून के सामने आने से पहले जमीनों की जो लीज हुई और जो खत्म हो गई हैं उन पर भी ये कानून लागू होगा. मतलब उन लीज को भी आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. नए कानून के तहत पुराने भूमि अनुदान नियम-1960 की 99 साल तक बढ़ाई जा सकने वाली लीज की अवधि को घटाकर 40 कर दिया गया है.
सरकार ने मौजूदा जमीन लीज धारकों को साफ कर दिया है कि नए नियमों के तहत उन्हें संपत्ति को छोड़ना होगा या बेदखली का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, वर्तमान भूमि धारकों ने इन नियमों को "जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष करार दिया जहां पट्टाधारकों को जमीन पर पहला अधिकार नहीं दिया गया है और न ही संशोधित दरों पर बातचीत की गई है.”
यहां ये बात गौर करने वाली है कि घाटी में मौजूद मशहूर पर्यटन स्थलों के अधिकतर होटल और जम्मू-श्रीनगर की अहम कमर्शियल जगहें लीज की जमीन पर हैं.
लीज को लेकर अब आगे की क्या है योजना?
सूबे की सरकार ने जमीन की लीज को लेकर योजना बनाई है. इसके तहत एक विशेषज्ञ समिति लीज खत्म होने वाली सभी संपत्तियों की एक सूची तैयार करेगी. इसके बाद इनकी नए सिरे से ई-नीलामी यानी ऑनलाइन नीलामी की जाएगी.
नए नियमों के तहत जमीन की लीज के लिए "भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 11 के तहत कानूनी तौर से सक्षम कोई भी शख्स बोली लगा सकता है.
कौन ले सकेगा लीज पर जमीन
उपराज्यपाल प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर भूमि अनुदान नियम-2022 लाकर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कृषि, पर्यटन, कौशल विकास में ही नहीं बल्कि पारंपरिक कला, शिल्प, संस्कृति और भाषाओं के विकास पर पट्टे पर दी गई जमीन के इस्तेमाल में विविधता ला दी है. जलविद्युत परियोजनाओं, स्टेडियमों, खेल के मैदानों, जिम और अन्य मनोरंजक उद्देश्यों के लिए भूमि को पट्टे पर दिया जा सकता है. इसमें स्वरोजगार या पूर्व सैनिकों, वॉर विडोज और शहीदों के परिवारों के आवास के लिए जमीन लीज पर दी जा सकेगी. पहली बार यहां जमीन का इस्तेमाल प्रवासी की सुविधाओं, भवनों और अन्य निर्माण श्रमिकों के लिए भी किया जा सकता है.
संशोधनों का तत्काल असर क्या होगा?
नए नियमों में नई नीलामी के लिए सैकड़ों संपत्तियां खुली हैं. इस नीलामी में बाहरी लोग भी शामिल हो सकते हैं. हालांकि सरकार ने अभी लीज खत्म होने वाली संपत्तियों की सूची जारी नहीं की है. माना जा रहा है कि टूरिस्ट हॉटस्पॉट गुलमर्ग में इसका असर काफी अहम होगा, जहां 59 में से 56 होटल की लीज पहले ही खत्म हो चुकी है. इसी तरह पहलगाम, श्रीनगर और जम्मू में पटनीटॉप संपत्तियों की नीलामी के लिए जाएगी.
क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां क्यों हैं संशोधनों के विरोध में?
भूमि अनुदान नियमों में संशोधनों का सूबे के राजनीतिक दल पुरजोर विरोध कर रहे हैं. नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस इस मामले में सरकार पर निशाना साध रहे हैं. नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. उनका कहना है कि सूबे में बाहरी लोगों को बसाने के मकसद से भूमि अनुदान नियमों में बदलाव किया गया है. उनका कहना है कि इन लीज संपत्तियों का पहला हक "उन लोगों का है जो पहले से यहां के बाशिंदे हैं.
द हिंदू के मुताबिक पीडीपी नेता और होटल व्यवसायी मुहम्मद इकबाल ट्रंबू ने दावा किया कि सूबे की सरकार का यह कदम स्थानीय कारोबारियों और उनके हितों को ताक पर रखकर अमीर बाहरी लोगों को यहां लाने के लिए है. उन्होंने सूबे में कारोबार के हालातों को देखते हुए किसी भी स्थानीय कारोबारी के ई-नीलामी में भाग नहीं ले पाने की आशंका जताई है.
उनका कहना है कि यहां के कारोबारी घराने बीते 30 साल से अनिश्चित माहौल का सामना कर रहे हैं. उनका कहना है कि बाहर से आकर लोग इन संपत्तियों को खरीदेंगे और यहां के स्थानीय लोग, जिनके पास वर्तमान में ये संपत्तियां हैं वो अपने लोन को चुकाने के लिए घरों सहित अपनी निजी संपत्तियों को बेचने को मजबूर हो जाएंगे. सरकार का ये कदम 7 लाख स्थानीय लोगों को बेरोजगार कर देगा और कश्मीर की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करेगा.