Jammu Kashmir: घुसपैठ का केंद्र रहे माछिल के मोहम्मद सुलतान ने पीएम मोदी का कहा थैंक्स, बोले- अब पहले जैसे हालात नहीं
Jammu Kashmir: 70 साल के मोहम्मद सुलतान के अनुसार पिछले 75 साल से उनका गाओं बाकी देश से कटा हुआ है. उसका गावों पोषवारी बाला में न तो सड़क और और न ही अस्पताल.
Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में जहां एक तरफ सेना सीमाओं की सुरक्षा का बीड़ा उठाये हुए है. वहीं दूसरी तरफ देश दुनिया से कटे हुए इन दूर दराज़ के सरहदी इलाकों में आम लोगों की मदद के लिए सेना भरसक प्रयास भी करती है! ऐसा ही एक दूर दराज़ का इलाका है उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा का माछिल सेक्टर जहां सेना के बिना लोगों का जीवन नामुमकिन है!
श्रीनगर से करीब 180 किलोमीटर और कुपवाड़ा के जिल्ला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ो के बीच छुपी है माछिल घाटी- 16 हज़ार लोगों की आबादी वाली इस घाटी में आने जाने के लिए एक ही रास्ता है, जो करीब 13 हज़ार फीट ऊंची जमींदार गली से होते हुए जाता है और सर्दियों के 6 महीने भारी बर्फ़बारी के चलते बंद रहता है! इसलिए यहां के 14 गाओं में बेस लोग सेना पर हर छोटी बड़ी चीज़ के लिए निर्भर रहते है!
गावों पोषवारी बाला में न तो सड़क और और न ही अस्पताल
70 साल के मोहम्मद सुलतान के अनुसार पिछले 75 साल से उनका गाओं बाकी देश से कटा हुआ है. उसका गावों पोषवारी बाला में न तो सड़क और और न ही अस्पताल! स्कूल और अन्य सुविधाओं का तो कोई नामोनिशान नहीं और आज भी मरीज़ को अस्पताल ले जाने के लिए करीब 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है! "अगर सेना का हो तो हम कुछ नहीं कर सकते. सेना काम भी देती है और सुविधाएं भी" किसी ज़माने में गुसपैठ का एक बड़ा केंद्र रहे माछिल सेक्टर में 2008 से अभी तक 350 आतंकियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया है लेकिन यहां के लोगो ने कभी भी आतंकवाद का साथ नहीं दिया और अभी यहां के लोग सरहदों पर चल रहे युद्ध विराम के चलते बाकी देश दुनिया की तरह विकास की उम्मीद कर रहे है.
"हम मोदी के शुक्रगुज़ार है कि उस ने यहां पर शांति लाई! पहले यहां से गुस्पैठ भी होती थी और पाकिस्तानी गोलाबारी भी. लेकिन अभी दोनों ख़त्म हो गए हैं." माछिल निवासी हबीबुल्लाह मीर ने कहा. लेकिन दुर्गम और दूर दराज़ का इलाका होने के कारन यहां तक विकास नहीं पहुंचा है और इस की भरपाई भारतीय सेना ने की है! माछिल में सेना की मदद से एक छोटा अस्पताल चल रहा है और सड़क और बिजली की आपूर्ति भी सेना की मदद से ही हो रही है.
बच्चों को देना पड़ता है 140-150 रूपये मात्र फीस
माछिल के सरपंच हबीबुल्लाह हर्रे के अनुसार सेना के बिना यहां के लोगों का जीवन मुमकिन ही नहीं होता! स्थानीय प्रशासन की तरफ से इस इलाके में ना तो शिक्षा और ना ही स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की गयी है! माछिल के रहने वाले लोगों के लिए सेना का सब से बड़ा तोहफा यहां पर चलने वाला आर्मी गुडविल स्कूल है. आठवीं कक्षा तक चल रहे इस स्कूल में इस समय 114 बच्चे पढ़ते है और किसी भी प्रियवते स्कूल के सीटर की शिक्षा के लिए बच्चों को 140-150 रूपये मात्र फीस देना पड़ता है.
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