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Poonch Terror Attack: पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए राजौरी और पुंछ ही क्यों चुना? जांच एजेंसियों का बड़ा खुलासा

आंतकी भारत में कैसे घुसपैठ करते हैं, घुसपैठ करने के बाद जंगल में कैसे सर्वाइव करते हैं? वहां पर उनको खाना-पानी, रास्ता और हथियार कौन उपलब्ध कराता है? इसके बारे में सुरक्षा एजेंसियों ने बताया है.

Execlusive: जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले में गुरुवार (20 अप्रैल) को इफ्तारी पार्टी के लिए पास के गांव में जा रहे सेना के ट्रक पर आंतकियों के हमले में पांच जवान शहीद हो गए थे. अब इसको लेकर सुरक्षा एजेंसियों ने बड़ा खुलासा किया है. उनके मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेसी आईएसआई ने पुंछ और राजौरी जिले को ऐसे हमले करने के लिए चुना है. 

सुरक्षा एजेंसियों ने इसके पीछे की वजहों, और सीमा-पार से घुसपैठ के बाद आतंकियों के मॉडस आपरेंडी के बारे में विस्तार से समझाया है. एजेंसियों के मुताबिक जम्मू के पुंछ और राजौरी जिले से भारत-पाकिस्तान की करीब ढाई 100 किलोमीटर की सीमा जिसे एलओसी कहा जाता है लगती है. 

घना जंगल करता है आतंकियों की बड़ी मदद

इन पहाड़ों की चोटियों पर कहीं-कहीं भारतीय सेना तो कहीं इन पहाड़ों की चोटियों पर पाकिस्तान का कब्जा है. लेकिन इन पहाड़ों के साथ सटे घने जंगल यहां घुसपैठ करके आतंकियों के लिए स्वर्ग जैसा काम करते हैं. एलओसी से सटे यह पहाड़ न केवल घने होने के चलते आतंकियों के छिपने की जगह उपलब्ध करवाते हैं तो कहीं इन पहाड़ों में बड़े-बड़े पत्थर और कुछ प्राकृतिक गुफाएं भी आतंकियों के लिए काफी मददगार रहती हैं. 

पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर के 42 गांवों में सीधी पहुंच

हालांकि भारतीय सेना ने ढाई सौ किलोमीटर के इस एलओसी पर तारबंदी की है लेकिन इसके बावजूद सुरक्षा एजेंसियों ने करीब 42 ऐसे गांव की पहचान की है जो इस तारबंदी से आगे हैं. मतलब इन 42 गांव में रहने वाले लोग सेना की तारबंदी को पार करते हुए अपने गांव की तरफ जाते हैं और इन गांवों और पाकिस्तान के बीच किसी भी तरीके की कोई तारबंदी या रुकावट नहीं है.

सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो इन 42 गांव के लोगों तक आईएसआई और आतंकी संगठनों का पहुंचना बहुत आसान है. सुरक्षा एजेंसियों के पास ढेरों ऐसे उदाहरण है जहां पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों ने इन 42 गांव में रहने वाले लोगों का इस्तेमाल न केवल आपने आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए किया हो बल्कि इन गांव वालों के द्वारा हथियारों और नशे की स्मगलिंग भी होती है. 

घुसपैठ के लिए इस्तेमाल करते हैं 
सुरक्षा एजेंसियों की माने तो इन 42 गांव तक पहुंचने के लिए 14 बड़े गेट हैं और इन गेट से इन गांवों तक पहुंचने के लिए वाहनों की आवाजाही भी रहती है. सुरक्षा एजेंसी मानती है कि इन गांव तक जाने वाले हर वाहन को चेक करना लगभग नामुमकिन है और इसी का फायदा उठाकर गांव वाले इन वाहनों में कई बार आतंकी या फिर हथियार लाने ले जाने में सफल रहते हैं. इसके साथ ही इस ढाई 100 कलोमीटर की एलओसी पर करीब 15 ऐसे घुसपैठ के रास्ते हैं जो आतंकी काफी समय से घुसपैठ के लिए इस्तेमाल करते हैं. 

इन 15 रास्तों से घुसपैठ करके एक बार अगर आतंकी राजौरी पुंछ से सटे इन जंगलों में पहुंच गया तो उसे वहां ढूंढना सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी चुनौती है. एजेंसियों का यह भी दावा है कि इन जंगलों से आतंकी भी भलीभांति परिचित नहीं होते ऐसे में इन जंगलों से निकालने के लिए आतंकी या तो यहां अपने ओजी डब्ल्यू नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं या फिर इन जंगलों में आसानी से घूमने वाले चरवाहों का इस्तेमाल भी कई बार करते है.

बंदूक की नोक पर चरवाहों का करते हैं इस्तेमाल

घुसपैठ करने के बाद जो आतंकी पुंछ और राजौरी के घने जंगलों में छिपते हैं, वह छुपे हुए आतंकी इन जंगलों की भौगोलिक स्थितियों से परिचित नहीं होते. ऐसे में आतंकी इन जंगलों से निकलने के लिए कई मौकों पर गुज्जर और बकरवाल समुदाय का सहारा लेते हैं.  गुज्जर और बकरवाल वह समुदाय है जो सर्दियों के मौसम में इन जंगलों में भेड़ बकरियां चराता है और फिर जंगल के रास्ते से होते हुए गर्मियों में श्रीनगर के सोनमर्ग तक पहुंच जाता हैं. 

क्योंकि यह गुर्जर और बकरवाल इस इलाके से और इन जंगलों से भली-भांति परिचित होते हैं ऐसे में आतंकी इन लोगों से न केवल गाइड के रूप में मदद मांगते हैं बल्कि कई मौकों पर इन लोगों से खाना भी खाते हैं.

आतंकियों को ढूंढना है नामुमकिन

सुरक्षा एजेंसियों के इस खुलासे की पुष्टि गुज्जर बकरवाल समुदाय के मोहम्मद सूबा ने भी की है. भारत पाकिस्तान एलओसी से सटे हुए यह जंगल काफी घने हैं और एक बार अगर कोई आतंकी इनमें घुस जाए तो उसे ढूंढना नामुमकिन है. उन्होंने एबीपी न्यूज को यह भी बताया कि कई मौकों पर आतंकियों का सामना इस समुदाय के लोगों से होता है और आतंकी उनसे न केवल बाहर निकलने का रास्ता बल्कि खाना भी मांगते हैं.

उन्होंने दावा किया कि साल 2003 में कुछ आतंकियों ने उनके पिता से बांदीपुर जाने का रास्ता पूछा था और जब आतंकियों को उनके पिता ने रास्ता नहीं बताया तो उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई.

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