जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने कहा- विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35 ए पर कोई भी फैसला निर्वाचित सरकार करेगी
शनिवार को जम्मू-कश्मीर में अफवाह फैली की संविधान के अनुच्छेद 35ए को रद्द किए जाने की तैयारी है. अनुच्छेद 35ए के तहत राज्य के लोगों को विशेष अधिकार प्राप्त है.
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर सरकार के नए प्रवक्ता रोहित कंसल ने कहा है कि सूबे को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35 ए पर कोई भी फैसला निर्वाचित सरकार करेगी. इसका मतलब ये हुआ कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव बाद जो भी सरकार चुनी जाएगी वह इसपर फैसला करेगी. राज्य में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लागू है. अनुच्छेद 370 से जुड़े अनुच्छेद 35 ए पर सोमवार को सुनवाई होगी.
जम्मू कश्मीर में राज्यपाल के प्रशासन के मुख्य प्रवक्ता नियुक्त किये गये वरिष्ठ नौकरशाह रोहित कंसल ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35 ए पर सुनवाई को टालने के अनुरोध पर राज्य सरकार का रुख वैसा ही है जैसा 11 फरवरी को अनुरोध किया गया था.’’ वह इस प्रश्न का उत्तर दे रहे थे कि क्या इस विवादास्पद मुद्दे पर राज्यपाल के प्रशासन के रुख में कोई बदलाव आया है.
जम्मू कश्मीर सरकार के वकील ने उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 35 ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आगामी सुनवाई को स्थगित करने के लिए सभी पक्षों के बीच एक पत्र वितरित करने के लिए अनुमति मांगी थी. उन्होंने कहा कि राज्य में कोई ‘निर्वाचित सरकार’ नहीं है.
आपको बता दें कि शनिवार को जम्मू-कश्मीर में अफवाह फैली की संविधान के अनुच्छेद 35ए को रद्द किए जाने की तैयारी है. अनुच्छेद 35ए के तहत राज्य के लोगों को विशेष अधिकार प्राप्त है. अफवाहों को और अधिक बल तब मिला जब जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों की 120 कंपनियां भेजी गई है. इसपर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि राज्य में बड़ी संख्या में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती आगामी लोकसभा चुनावों से जुड़ी है.
आधिकारिक बयान में कहा गया, "राज्यपाल ने लोगों से अपील की कि बलों का बलों की तैनाती को सिर्फ चुनाव कराने के संदर्भ में देखा जाना चाहिए और इसे किसी भी और बात से नहीं जोड़ा जाना चाहिए."
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राज्यपाल ने कहा कि 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद ‘कुछ सुरक्षा संबंधी कार्रवाई’ की जा रही हैं. जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने सीआरपीएफ के काफिले पर हमला कर दिया था जिसमें बल के 40 कर्मी शहीद हो गए थे.
अनुच्छेद 35A को मई 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिए संविधान में जोड़ा गया. ये अनुच्छेद जम्मू - कश्मीर विधान सभा को अधिकार देता है कि वो राज्य के स्थायी नागरिक की परिभाषा तय कर सके. इन्हीं नागरिकों को राज्य में संपत्ति रखने, सरकारी नौकरी पाने या विधानसभा चुनाव में वोट देने का हक मिलता है. इसका नतीजा ये हुआ कि विभाजन के बाद जम्मू कश्मीर में बसे लाखों लोग वहां के स्थायी नागरिक नहीं माने जाते.