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जम्मू कश्मीर का 1987 का वो चुनाव, जिससे घाटी में हुई बंदूको की एंट्री, क्यों अब हो रही इसकी बात

Jammu Kashmir Election: जम्मू कश्मीर के सात जिलों के मतदाता केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद 10 सालों में पहली बार विधानसभा चुनाव में मतदान करेंगे.

Jammu Kashmir Assembly Election 2024: जम्मू कश्मीर में 19 सितंबर 20204 को घाटी में पहले राउंड की वोटिंग है. वैसे एक सियासी विवाद ने तो घाटी में भी सिर उठाया है. इस विवाद को हवा दी है. पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की चीफ सज्जाद लोन का दावा है कि जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में धांधली हो सकती है. 1987 जैसे हालात फिर बन सकते हैं? आखिर 1987 में घाटी में क्या हुआ था? और क्यों 1987 का विधानसभा चुनाव बेहद विवादित माना जाता है?

कहा जाता है कि इस चुनाव में जम्मू कश्मीर की तकदीर बदल दी थी. इस चुनाव के बाद ही घाटी में बंदूकों की एंट्री हुई थी. दऱअसल, सोमवार (16 सिंतबर 2024) को पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चीफ सज्जाद लोन ने दावा किया कि चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करके 1987 के चुनावों को दोहराने की कोशिश की जा रही है. किसी को ये नहीं सोचना चाहिए कि वो कश्मीर की आवाज दबा देगा.

सज्जाद लोन के दावे में है कितना दम?

एक्सपर्ट रशीद राहिल कहते है कि, देखिए जहां तक हमने देखा है 1987 में लहर चली थी मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की उस समय की जो सरकार थी. उसमें कुछ गड़बड़ हुई थी. जिसमें आजाद उम्मीदवार थे. जिन नौजवानों ने चुनाव लड़ा या उनके जो समर्थक थे. उन्होंने बंदूकें हाथों में उठा ली थीं. सज्जाद लोन जो कह रहे हैं कि 1987 फिर दोहराया जाएगा. मुझे नही लगता ऐसे हालात हैं आज वही लोग चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं. हालांकि, इससे पहले घाटी में सज्जाद लोन के साथ साथ नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस भी चुनावों को प्रभावित करने का आरोप लगा चुके है.

1987 में जमातों का गुट कैसा था?  

एक्सपर्ट रशीद राहिल ने कहा,'12 जमातों का गुट था. जिसे जमात-ए-इस्लामी को मोहम्मद यूसुफ शाह लीड कर रहे थे. कहा जाता है कि उन्होंने चुनाव जीता था. इसलिए कह रहे है कि ऐसा कोई चुनाव नहीं हुआ जो आज हो रहा है. जम्मू कश्मीर के पहले दो चरणों में ही 190 आजाद उम्मीदवार किस्मत आजमा रहें हैं? रशीद राहिल का कहना है कि मुझे लगता है कि राजनीति अब एक व्यापार बन गया है.

शेख अब्दुल्ला ने कहा था कि हर घर से अबदुल्ला निकलेगा. आज हर इलाके से कैंडिडेट निकल रहे हैं लोकतंत्र के लिए अच्छा है कोई भी लड़ सकता है. इस बार भी जमात-ए-इस्लामी से लोग हाथ मिला रहे हैं. दरअसल,  23 मार्च, 1987 को घाटी में वोटिंग होनी थी. मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को उम्मीद थी कि जीत उसकी ही होगी. लेकिन नतीजे उलट गए. 
 
क्या 1987 रिपीट हो सकता है?

इस पर रशीद राहिल कहते हैं, अब ऐसा नहीं होने वाला है, क्योंकि, युवा समझ चुका है कि बंदूक से नहीं संदूक से लड़ाई लड़नी है. यानी घाटी अमन की राह पर है. इसलिए युवा जागरूक हैं वो समझते हैं. समाधान बंदूक से नहीं ईवीएम के बक्से से निकलेगा.

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