Exclusive: तालिबान के साथ बातचीत का कदम काफी हद तक सही, जम्मू-कश्मीर के पूर्व DGP से खास बातचीत
'यह बात सही है कि तालिबान अब अपने आप को बदला हुआ दिखाने में जुटा है. यह बात भी ठीक है कि बीते दो दशकों में अफगानिस्तान की जनता भी बदली है.'
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अफगानिस्तान में तालिबान की आमद और भारत के लिए बड़े खतरों की चुनौती पर जम्मू कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपी वैद से खास बातचीत की है. कंधार विमान अपहरण कांड के वक्त मसूद अजहर को जम्मू के कोट भलवाल जेल से निकाला गया था और उस वक्त तत्कालीन DIG वैद के ही मातहत था.
एसपी वैद ने कहा, 'तालिबान पिछली बार 90 के दशक में अफगानिस्तान की सत्ता में थे. उस दौरान भारत ने आतंकवाद के कई घाव चेले हैं. उसी समय कारगिल हुआ उसी समय जम्मू कश्मीर विधानसभा पर हमला हुआ यही वक्त था जब भारत की संसद पर भी हमला हुआ और आईसी 814 विमान अपहरण जैसी घटना का घाव भी मिला. लिहाजा तालिबान के साथ हमारे अनुभव अच्छे नहीं रहे. साल 2001 हर लिहाज़ से भारत के लिए आतंकवादी घटनाओं का सबसे खराब साल रहा. ऐसे में तालिबान के आने पर भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है. वहीं तालिबान से ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि तमाम आतंकी संगठनों को पैदा करने वाली आई एस आई अब क्या खेल रचती है.ट
पूर्व पुलिस महानिदेशक ने आगे कहा, 'फिक्र इस बात को लेकर भी हैं कि 15 अगस्त को तालिबान के काबुल मैं पहुंचने के कुछ दिन बाद ही मसूद अजहर क्यों तालिबानी नेतृत्व से मिलने के लिए कंधार गया था. क्योंकि हम यह बात जानते हैं कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी अफगानिस्तान में सक्रिय रहे हैं. तालिबान का अफगानिस्तान की जिलों से सभी कैदियों को रिहा करना भी चिंताजनक कदम था क्योंकि इन जिलों में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के भी 100 से अधिक आतंकवादी बंद थे.'
"भारत को कड़ी निगरानी रखनी होगी"
पूर्व पुलिस महानिदेशक ने कहा, अफगानिस्तान में बंदूक की नोक पर हुए इस सत्ता परिवर्तन के असर काफी दूरगामी होंगे पूर्णविराम ऐसे में भारत को न केवल जम्मू कश्मीर में बल्कि देश के कई राज्यों में जैसे केरल, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हैदराबाद जैसे इलाके इन तमाम जगहों पर बहुत करीब से निगरानी रखनी होगी. खासतौर पर इस बात का ध्यान रखना होगा कि कहीं मुस्लिम युवाओं में कट्टरपंथ की तरफ झुकाव तो नहीं बढ़ रहा. सोशल मीडिया को मॉनिटर करना होगा. मदरसों पर नजर रखनी होगी और साथ ही उलेमाओं के साथ संवाद रखना होगा.
उन्होंने कहा, यह बात सही है कि तालिबान अब अपने आप को बदला हुआ दिखाने में जुटा है. यह बात भी ठीक है कि बीते दो दशकों में अफगानिस्तान की जनता भी बदली है. तालिबान यह वादा जरूर कर रहे हैं कि वह अफगान जमीन का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ आतंकी साजिश के लिए नहीं होने देंगे. मगर अभी इस वादे का जमीन पर असर देखना होगा. ऐसे में यह जरूरी है कि हम बेहद सतर्कता के साथ आगे बढ़े.
"तालिबान ने बातचीत का कदम सही"
पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपी वैद का कहना है कि तालिबान के साथ संवाद रखने का जो कदम सरकार ने उठाया है वह काफी हद तक सही है. तालिबान के पिछले कार्यकाल के दौरान भारत के उनके साथ संबंध नहीं थे. संपर्क और संवाद भी ना के बराबर था. ऐसे में भारत की मुश्किलें बढ़ी हीं. लिहाजा यह सही फैसला है कि हम कम से कम बातचीत और संपर्क के दरवाजे खुले रखें. तालिबान भी यह जानते हैं कि उनके सामने अफगानिस्तान को चलाने की चुनौती है. उनको भारत जैसे अफगानिस्तान में बड़ा निवेश करने वाले देश की जरूरत है. साथ ही उन्हें जिस वैधता की जरूरत है उसमें भी भारत जैसे बड़े देश का अनुमोदन काफी महत्व रखता है.
उन्होंने कहा, तालिबान पिछली बार जब सत्ता में था तो उस वक्त चीन इतना सक्रिय नहीं था. लेकिन अब चीन इस पूरे क्षेत्र में एक बड़ा फैक्टर है. अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ निश्चित रूप से भारत की चिंताएं भी बढ़ाता है और चुनौतियां भी. हालांकि यह बात सही है कि ना तो अफगानिस्तान 90 के दशक वाला अफगानिस्तान है और ना ही भारत अब वैसी स्थिति में. उस वक्त सीमा पर तारबंदी नहीं थी. सुरक्षा का घेरा भी इतना सख्त नहीं था. लेकिन अब सीमा पर तारबंदी है. उस पर आधुनिक सेंसर लगे हुए हैं. साथ ही हमारी सीमा सुरक्षा ग्रिड पहले के मुकाबले कहीं अधिक मजबूत है. साथ ही सेना और सुरक्षा बलों की प्रक्रिया पहले से कहीं अधिक मुस्तैद हैं.
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