राजस्थान में किस वजह से हारी कांग्रेस? सत्यपाल मलिक ने इस नेता को लपेटा
Rajasthan: राजस्थान में सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस की इस करारी हार की बड़ी वजह गहलोत-पायलट की राजनीतिक लड़ाई-खींचतान को माना जा रहा है. इस पर पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का बड़ा बयान आया है.
Gurjar Voters in Rajasthan: राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई है. कांग्रेस पार्टी नतीजे आने के बाद से हार के कारणों पर मंथन और चिंतन कर रही है. माना जा रहा है कि कांग्रेस की हार का बड़ा कारण पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच रही सियासी खींचतान है. कांग्रेस की राजस्थान में हार पर अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और कद्दावर जाट नेता सत्यपाल मलिक ने भी बड़ा बयान दिया है.
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में राजस्थान में कांग्रेस की हार का ठीकरा गुर्जर नेता और डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट पर फोड़ा है. मलिक ने आरोप लगाया कि सचिन पायलट प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की वजह से ऐसा नहीं होने पर उन्होंने हाल के विधानसभा चुनावों में गुर्जर समुदाय के दबदबे वाली सीटों पर लोगों से खुलकर अपील की कि आपके समुदाय से सीएम नहीं बनने दिया गया. इस बयान का बड़ा असर राजस्थान चुनाव में पड़ा.
चुनाव से पहले कांग्रेस नेतृत्व ने उठाया था ये कदम
जगजाहिर है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद से ही शीत युद्ध चल रहा था. दोनों के बीच चल रहा शह मात का खेल 2023 तक और खुलकर सामने आ गया. हालांकि, विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पहल करते हुए दोनों नेताओं के बीच दूरी को कम करने की कोशिश की थी. कांग्रेस पार्टी की ओर से गहलोत और पायलट के बीच एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ने को लेकर निर्देश जारी किए गए थे.
कांग्रेस के 5 साल के कार्यकाल में आखिर तक जारी रही राजनीतिक लड़ाई
पायलट ने गहलोत सरकार के 5 साल के कार्यकाल के दौरान में डिप्टी सीएम रहने के बाद भी अपनी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद रखी. इस आग में घी का काम उस ऐलान ने कर डाला, जिसमें 2023 का विधानसभा चुनाव भी सीएम कैंडिडेट के तौर पर अशोक गहलोत के नेतृत्व में लड़ा जाना रहा.
गहलोत के खिलाफ गुर्जर बेल्ट में पायलट के प्रचार का हुआ बड़ा असर
सचिन पायलट ने चुनाव तो कांग्रेस के दम-खम पर ही लड़ा, लेकिन गहलोत के खिलाफ गुर्जर बेल्ट में अपना रसूख भी दिखा दिया. कांग्रेस को गुर्जर समुदाय ने औंधे मुंह गिराने का काम किया और यह वोट बैंक कांग्रेस-बीजेपी के बीच में बंट गया, जिसका फायदा बीजेपी को जीत के रूप में मिला.
गुर्जर समाज का 12 जिलों में दबदबा
गुर्जर समाज के प्रभाव वाले जिलों की बात करें तो राजस्थान के 12 जिले ऐसे हैं जहां समुदाय का अच्छा खासा वोट बैंक माना जाता है. गुर्जर बाहुल्य जिलों में खासकर भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, दौसा, कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर और झुंझुनू आदि माने जाते हैं.
गुर्जरों आबादी का 35 सीटों पर अच्छा प्रभाव
इसका मतलब यह है कि राजस्थान की करीब 35 सीटों पर गुर्जर समाज अच्छा प्रभाव रखता है. 2021 की जनसंख्या आंकड़ों की माने तो गुर्जर जाति की आबादी करीब 60 लाख के आसपास है. राजस्थान में जाट समुदाय भी 12% से ज्यादा है. गहलोत-पायलट के बीच राजनीतिक लड़ाई का असर जाट वोट बैंक पर भी पड़ा है जिसका खामियाजा कांग्रेस को हार के रूप में उठाना पड़ा है.
इस बार 69 सीटों पर सिमटी कांग्रेस
राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणामों की बात करें तो इस बार 199 सीटों में से 115 सीट पर बीजेपी का कब्जा हुआ है. वहीं, कांग्रेस सिर्फ 69 पर सिमट कर रह गई है. बहुजन समाज पार्टी को भी 2 सीटों पर जीत हासिल हुई हैं तो 13 विधानसभा सीट पर अन्य ने जीत दर्ज की है. बीजेपी ने इस बार सवर्ण समाज के भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया है.
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