नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन का एक महीना पूरा हुआ चुका है. राज्यपाल शासन के बाद राज्य में हिंसा का हालात में सुधार नजर आ रहा है. हालात में सुधार से उत्ससाहित राज्य प्रशासन राज्य में स्थानीय चुनाव के लिए जमीन तैयार करने में जुट गया है. राज्य प्रशासन की कोशिश है कि अमरनाथ यात्रा के बाद स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए सही माहौल बन जाये. फिलहाल अमरनाथ यात्रा को आतंकियों के हमले से बचाना और सुरक्षा देना सुरक्षा बलों और सेना की सबसे बड़ी चुनौती है.


सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिंसाग्रस्त इलाकों में हिंसा की घटनाओं में सीजफायर की तुलना में एक महीने के राज्यपाल शासन में कमी आई है. हालांकि जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन में नागरिकों के मारे जाने की घटनाओं ने हल्की बढ़ोतरी हुई है. सीजफायर के दौरान 4 नागरिकों की मौत हुई थे जबकि राज्यपाल शासन में 7 नागरिक मारे गए हैं. सीजफायर में पत्थरबाज़ी की 90 घटनाएं हुई थी लेकिन राज्यपाल शासन ने 95 पत्थरबाजी की घटनाएं हुई है जो मुख्य तौर पर श्रीनगर और शोपियां में हुई. हालांकि ये सीजफायर लागू होने के पहले के हालात से कम हैं.


इतना ही नहीं राज्यपाल शासन में आतंकी हमले की घटनाओं में कमी आई है जो सीजफायर में 80 थी लेकिन राज्यपाल शासन में मात्र 47 आतंकी वारदात हुई है. इतना ही नहीं राज्यपाल शासन में मात्र 14 आतंकी मारे गए है जबकि सीजफायर के दौरान 24 आतंकी मारे गए गए हैं. वहीं राज्यपाल शासन में 10 सुरक्षा बल के जवान शहीद हुए हैं जिनमें जम्मू-कश्मीर पुलिस के पीएसओ जावेद डार भी हैं जिनकी आतंकियों ने अपहरण के बाद हत्या कर दी थी. जबकि सीजफायर के दौरान मात्र 4 जवान शहीद हुए थे.


राज्यपाल शासन के एक महीने के आंकड़ों की तुलना अगर सीजफायर से पहले के हालात से करें तो हालात में सुधार नजर आ रहा है. राज्यपाल के सलाहकार के विजयकुमार के मुताबिक, प्रशासन मुश्किल हालात को सामान्य बनाने के लिए कोशिश में जुटा है.


गृहमंत्रालय के सूत्रों ने भी पुष्टि की है कि राज्यपाल शासन के दौरान राज्य का प्रशासन हालात सामान्य बनाने में जुट गया है ताकि अमरनाथ यात्रा ख़त्म होते ही राज्य में 6000 से ज्यादा पंचायतों में चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू की जा सके.


हालांकि राज्य के विपक्षी दलों ने अभी पंचायत चुनाव कराने का विरोध किया है. पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विरोध करते हुए कहा कि अभी स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए सही हालात नहीं है. उमर के मुताबिक "अगर अभी चुनाव होते हैं और इसमें बड़े पैमाने में हिंसा होती है तो इसकी वज़ह से विधानसभा चुनाव के जल्द होने के आसार खत्म हो जाएंगे."


लेकिन गृहमंत्रालय के एक बड़े अफ़सर ने एबीपी न्यूज़ के सवाल पर कहा कि विपक्षी नेताओं की दलील सही नहीं है. स्थानीय निकायों के चुनाव पहले ही कई बार टल चुका है ऐसे में अगर राज्य प्रशासन हालात सामान्य होने पर चुनाव अमरनाथ यात्रा के बाद कराता है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.


हालांकि राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी शालीन काबरा ने कहा, "आयोग स्थानीय निकायों के चुनाव कराने को तैयार है और इसके लिये राज्य सरकार के जरूरी सिफारिश का इंतज़ार कर रही है."


पिछले चुनाव 2011 में हुए थे और इसमें 80 फीसदी मतदान हुआ था. जिसमें 4098 सरपंच और 29402 पंच चुने गए थे. इसके अलावा इसमें 1900 शहरी निकायों के प्रतिनिधि चुने गए थे. लेकिन 2016 में हिजबुल के पोस्टर बॉय बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से ये चुनाव लगातार टलता रहा है. पिछले साल दिसंबर में पूर्व मुख्यमंत्री ने इस साल 15 फरवरी को चुनाव कराने का एलान किया था. लेकिन राज्य के सुरक्षा हालात और गृह मंत्रालय से सुरक्षा बल नहीं मिलने के कारण चुनावों को टालना पड़ा था.


लेकिन क्या इस बार अमरनाथ यात्रा के बाद चुनाव हो पाएंगे? एबीपी न्यूज के इस सवाल पर राज्यपाल के सलाहकार के विजय कुमार ने कहा, "प्रशासन हालात को चुनाव के लायक बनाने की कोशिश कर रहा है. हम सकारात्मक रुख के साथ काम कर रहे हैं." उम्मीद है जम्मू-कश्मीर की जनता को अपने विकास के लिए स्थानीय प्रतिनिधि चुनने का मौका मिलेगा.


22 साल से झूल रहे महिला आरक्षण बिल समेत संसद में अटके हैं 58 बिल