(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
जम्मू-कश्मीर के कालीनों की पहचान अब घर बैठे कर सकेंगे, QR कोड सिस्टम लागू, जानें डिटेल
J&K Carpets: उपराज्यपाल मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) ने आगे कहा कि वर्तमान में जम्मू और कश्मीर से कम से कम 25 देशों में कालीनों का निर्यात किया जा रहा है.
J&K News: देश में अपनी तरह के पहले प्रयास में सरकार ने जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के हस्तनिर्मित कालीनों के प्रमाणीकरण और लेबलिंग के लिए एक क्यूआर कोड (QR Code) आधारित सिस्टम शुरू किया है. इस क्यूआर-आधारित एप्लिकेशन के साथ, ग्राहक जम्मू कश्मीर में उत्पादित कालीनों की प्रामाणिकता और अन्य आवश्यक विवरणों की जांच और सत्यापन कर सकते हैं. इस क्यूआर कोड की मदद से आम ग्राहक घर बैठे अपने मोबाइल से पता कर सकेंगे कि जो कालीन खरीदी गयी है क्या वह असली में कश्मीरी है या नहीं!
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने गुरुवार को श्रीनगर में एक समारोह में नए सिस्टम का शुभारंभ किया और कहा कि कालीन सहित जम्मू-कश्मीर हस्तशिल्प भारत की रचनात्मक परंपराओं का भंडार है. यह सदियों से सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के रूप में काम कर रहा है और एक रचनात्मक परंपरा है. जटिल डिजाइन और सूक्ष्म रंगों के साथ यह कालीन हस्तनिर्मित होते हैं. इस आधुनिक तकनीक की मदद से कारीगर न केवल हस्तनिर्मित कालीनों की विशिष्टता को मानकीकृत करने में सक्षम होंगे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में जम्मू-कश्मीर के कालीन उद्योग के निर्यात को भी बढ़ावा देंगे.
कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (केसीसी एंड आई) ने कश्मीरी कालीनों के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) शुरू करने के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि क्यूआर कोड धोखाधड़ी और गलत ब्रांडिंग की जांच करने में मदद कर सकता है, जिसने कश्मीर में कालीन उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है. केसीसी एंड आई के अध्यक्ष शेख आशिक अहमद ने कहा कि कश्मीर हस्तनिर्मित कालीनों के लिए जीआई टैगिंग से कश्मीरी हस्तशिल्प का निर्यात भी बढ़ता है, जो पिछले 3-4 वर्षों से विभिन्न कारणों से घट रहा है.
उन्होंने कहा, “यह जीआई टैगिंग भी ग्राहक के विश्वास को पुनर्स्थापित करता है, कारीगरों की प्रामाणिकता की रक्षा करता है. हितधारकों ने प्रशासन से अनुरोध किया कि इस क्यूआर कोड आधारित तंत्र के लिए विभाग को अधिकतम अनुदान स्वीकृत किया जाए ताकि हम अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें.” हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार में जम्मू-कश्मीर की एक विशिष्ट पहचान है. भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान ने कश्मीरी कालीनों को बढ़ावा देने के लिए जीआई प्रमाणन, परीक्षण, लेबलिंग और प्रशिक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.
उपराज्यपाल ने कहा कि, “जम्मू और कश्मीर सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन योजना शुरू की है, जिसके तहत किसी भी देश को निर्यात किए गए जीआई प्रमाणित हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों की कुल मात्रा का 10% प्रोत्साहन, अधिकतम प्रतिपूर्ति रुपये तक है. हस्तशिल्प एवं हथकरघा विभाग में पंजीकृत निर्यातकों को 5 करोड़ रुपये प्रदान किए जा रहे हैं. हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग और भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी), श्रीनगर हाथ से बुने हुए कालीनों के जीआई को लोकप्रिय बनाने के लिए केंद्र शासित प्रदेश के भीतर और बाहर व्यापक जागरूकता और प्रचार अभियान शुरू करेंगे ताकि इसकी मांग दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल कर सके.”
बताया गया कि निफ्ट श्रीनगर के सहयोग से हस्तशिल्प उत्पादों की नवीन और किफायती पैकेजिंग पर एक परियोजना भी पूरी की गई है. उपराज्यपाल ने आगे कहा कि वर्तमान में जम्मू और कश्मीर से कम से कम 25 देशों में कालीनों का निर्यात किया जा रहा है. 2020-21 में जर्मनी को 115 करोड़ रुपये, यूएसए को 34 करोड़ रुपये, यूएई को 36 करोड़ रुपये और नीदरलैंड को 22 करोड़ रुपये के कालीन निर्यात किए गए.
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