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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

जम्मू और कश्मीर में प्रॉपर्टी टैक्स: जानिए इसके लागू होने के बाद क्या कुछ बदल जाएगा?

जम्मू और कश्मीर में अब नगरपालिका क्षेत्रों में प्रॉपर्टी टैक्स लगेगा. इसकी शुरुआत 1 अप्रैल से होगी. इसे लेकर आम जनता के जहन में कई सवाल हैं. वहीं प्रशासन के मुताबिक ये टैक्स जनता के हित के लिए है.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पिछले महीने नगरपालिका क्षेत्रों में प्रॉपर्टी टैक्स संबंधी अधिसूचना जारी की थी. इस अधिसूचना के तहत अब एक अप्रैल से प्रॉपर्टी टैक्स लगाने का आदेश दिया जा चुका है. अधिसूचना के मुताबिक, आवासीय संपत्तियों के लिए टैक्स की दरें टैक्सेबल एनुअल वैल्यू (TAV) का 5 प्रतिशत और कॉमर्शियल प्रॉपर्टी के लिए 6 फीसदी होंगी. इसके टैक्स सिस्टम को लाने की वजह केंद्र शासित प्रदेश के कस्बों और शहरों में शहरी स्थानीय निकायों का विकास करना और आत्मनिर्भर बनाना है. 

जम्मू और कश्मीर में 19 नगर परिषद और 57 नगरपालिका समितियां हैं. साल 2022 तक जम्मू-कश्मीर में सेल टैक्स डिपार्टमेंट शहरी इलाकों के मकान मालिकों को मिलने वाले किराए पर टैक्स लगाता था. साल 2022 के बाद इसे बंद कर दिया गया था.

टैक्स सिस्टम को क्यों बंद किया गया 

अधिकारियों का कहना है कि इस टैक्स को लेने में लगने वाली लागत इनकम से बहुत ज्यादा थी. इसके अलावा, कई संपत्ति मालिकों ने इस टैक्स को अदा करने में नाराजगी भी जताई और फिर इस टैक्स सिस्टम पर मुकदमा भी दर्ज हो गया था.

नया टैक्स कौन देगा , और कौन-कौन इस टैक्स सिस्टम से बाहर है ?

नए टैक्स सिस्टम में नगर पालिका की जमीन, पूजा स्थलों, श्मशान-कब्रिस्तान, भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार के स्वामित्व वाली संपत्तियों को छूट दी गई है. जम्मू और कश्मीर नगरपालिका अधिनियम 2000 की धारा 71ए के अधिनियम की धारा 65 (1) और 73 (1) की शक्तियों का इस्तेमाल करके केंद्र शासित प्रदेश की नगर पालिकाओं और नगरपालिका परिषदों में संपत्ति कर लगाने, मूल्यांकन और संग्रह करने के नियमों को अधिसूचित करती है. 

ये टैक्स शहरी स्थानीय निकायों में संपत्ति रखने वाले लोगों को देना होगा जो 1 अप्रैल से लागू होगा. हालांकि सभी संपत्ति के मालिकों पर ये टैक्स नहीं लगेगा. 

प्रशासन के मुताबिक, 1,000 वर्ग फुट से छोटे क्षेत्र वाले घरों को इस टैक्स सिस्टम से छूट दी गई है.  नई टैक्स प्रणाली के आने के बाद लगभग 80 प्रतिशत घरों को टैक्स देना होगा. जो सालाना 600 रुपये तक हो सकता है. प्रशासन के मुताबिक, लगभग 30,000 दुकानें 2,000 रुपये से कम का भुगतान करेंगी. वहीं कुल 20,000 दुकानें 1,500 रुपये से कम का भुगतान करेंगी.  5,20,000 घरों में से 4,09,600 घरों यानी 80% घरों को टैक्स से बाहर रखा गया है. 

टैक्स कैलकुलेशन का फॉर्मूला क्या है?

प्रॉपर्टी पर सालाना 5 प्रतिशत टैक्स देना होगा. वहीं अगर प्रॉपर्टी आवासीय है तो उस पर 6 प्रतिशत टीएवी लगेगा. टीएवी अलग-अलग फैक्टर को देखते हुए तय किया जाता है. जैसे जमीन की कीमत, किस नगरपालिका में आपकी जमीन है, आपकी प्रॉपर्टी की जमीन कैसी है. इसकी उम्र कितनी है वगैरह.

जम्मू और कश्मीर में शहरी स्थानीय निकायों के इतिहास पर एक नजर 

उन्नीसवीं शताब्दी में, तत्कालीन रियासत के डोगरा शासक ने श्रीनगर और जम्मू शहरों के लिए एक नगरपालिका समिति की स्थापना की थी. नगरपालिका समितियों को 1956 में नगरपालिका परिषदों में तब्दील कर दिया गया. फिर, 2003 में तत्कालीन राज्य की विधायिका ने उन्हें नगरपालिका में अपग्रेड करने के लिए एक कानून पारित किया. 

बाद के दशक में जम्मू और श्रीनगर शहरों की नगरपालिका समितियों ने राज्य में आने वाले सामानों पर चुंगी लगाना शुरू कर दिया. 1980 के मध्य में चुंगी कर को खत्म कर दिया गया. उस जमाने में चुंगी कर स्थानीय क्षेत्र में प्रवेश या बिक्री करने वाली चीजों पर लगता था. ये कर सरकारी आय का एक बेहतर जरिया भी माना जाता था. इस कर को वस्तु के वजन या उसकी कीमत पर लगाया जाता था. बाद में इसके बजाय, एक टोल टैक्स लगाया जाने लगा. 

इस टैक्स से राज्य को क्या फायदा होगा?
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने केंद्र शासित प्रदेश में संपत्ति कर देने के लिए आम जनता से परामर्श करने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ये कर आम जनता के फायदे के लिए है. मनोज सिन्हा ने आगे कहा था कि नागरिकों का कल्याण ही सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और नागरिकों का कल्याण तभी है जब वो हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें. संपत्ति कर शहरों की वित्तीय आत्मनिर्भरता और केंद्र शासित प्रदेश में सार्वजनिक सुविधाओं में सुधार करेगा. 

मनोज सिन्हा ने आगे कहा था कि दूसरे राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर के शहरों में भी तेजी से विकास दिखना चाहिए. ये वो वक्त है जब शहर का विकास एक इंजन की गति से आगे बढ़े. इसके लिए, शहरों की वित्तीय आत्म-स्थिरता जरूरी है. जम्मू-कश्मीर में लगने वाला संपत्ति कर देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले सबसे कम होगा और इसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में सार्वजनिक सुविधाओं में सुधार के लिए किया जाएगा. 

किसी को बहकावे में आने की जरूर नहीं - मनोज सिन्हा

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने ये भी ताकीद की थी कि जम्मू-कश्मीर में संपत्ति कर पर गलत सूचना के बहकावे में आने की कोई जरूर नही है. इसके बजाय सभी को टैक्स भर कर आम जनता तक सच्चाई और तथ्यों को पहुंचाने में हमारी मदद करनी होगी. 

मनोज सिन्हा ने इस टैक्स जरूरी बताते हुए कहा कि ये केंद्र शासित प्रदेश के विकास को एक दिशा देगा. उपराज्यपाल ने कहा कि अमृत काल औपनिवेशिक निवेश को बढ़ाने वाला युग बनेगा और इस तरह का टैक्स सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देगा.

एलजी मनोज सिन्हा ने आगे कहा कि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं और प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में, हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखते हैं.

सिन्हा ने कहा कि  टैक्स सिस्टम आने के बाद हमारा वर्किंग कल्चर पूरी तरह से बदल जाएगा.  जम्मू-कश्मीर में सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक विकास योजना होने का जिक्र करते हुए उपराज्यपाल ने कहा कि पूरे केंद्र शासित प्रदेश में लैंड बैंक विकसित किए गए हैं, इसके अलावा अतिक्रमण विरोधी अभियानों के दौरान प्राप्त भूमि का इस्तेमाल अलग-अलग क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किया जाएगा.

मनोज सिन्हा ने ये भी बताया कि आम आदमी को संपत्ति कर से कोई समस्या नहीं है केवल कुछ खास लोग ही इससे परेशान हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर की आम जनता की आंखों में धूल झोंककर कई पीढ़ियों से किस्मत के साथ खिलवाड़ किया है.

प्रशासन के मुताबिक वो इस टैक्स में बेहतर सुझावों और समाधानों पर विचार करने के लिए तैयार हैं. अधिकारियों का मानना है कि ये फैसला आम आदमी और व्यापारिक समुदाय का हित सर्वोपरि रख कर लिया गया है.

प्रधान सचिव (आवास एवं शहरी विकास विभाग) एच राजेश प्रसाद की तरफ से जारी अधिसूचना में ये बताया गया कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था. गृह मंत्रालय ने अक्टूबर 2020 में यूटी प्रशासन को शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से संपत्ति कर लगाने की इजाजत दी थी. 

जम्मू-कश्मीर संपत्ति कर नहीं देने पर लगेगा जुर्माना

टैक्स जमा करने की तारीख 1 अप्रैल से शुरू हो रही है. समय पर संपत्ति कर का भुगतान करने में नाकामयाब हुए तो 100 रुपये यानी संपत्ति कर का 1% जुर्माना लगाया जाएगा. हालांकि, अधिकतम जुर्माना 1,000 रुपये से ज्यादा नहीं होगा. ध्यान दें कि किसी भी शिकायत या पुनर्मूल्यांकन के मामले में स्थानीय निकायों के निदेशक से अपील की जा सकती है.

ये भी ध्यान देने की जरूरत है कि गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अक्टूबर 2020 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों का अनुकूलन) आदेश, 2020 के माध्यम से जम्मू-कश्मीर नगर निगम अधिनियम, 2000 और जम्मू-कश्मीर नगर निगम अधिनियम, 2000 में संशोधन के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन को संपत्ति कर लगाने का अधिकार दिया था. 

विपक्ष जता चुका है ऐतराज

विपक्षी दलों, सामाजिक और व्यापारिक संगठनों ने इस फैसले का तीखा विरोध किया है. नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और डेमोक्रेटिक आजाद प्रोग्रेसिव पार्टी पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो वे मौजूदा सरकार द्वारा लिए गए सभी 'जनविरोधी' फैसलों को खत्म कर देंगे. बता दें कि जम्मू-कश्मीर में बीते कुछ महीनों ने सरकारी जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराया जा रहा है. इस दौरान कई पूर्व मंत्री और नेता भी इस अभियान के चपेट में आ चुके हैं.

अमृतसर सन्धि और जम्मू-कश्मीर की रियासत

अमृतसर सन्धि 25 अप्रैल, 1809 में रणजीत सिंह और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई थी.  उस समय लॉर्ड मिण्टो प्रथम भारत का गवर्नर-जनरल था. इस संधि के बाद सतलज पार की पंजाब की रियासतों पर अंग्रेजों के संरक्षण में आ गईं और पंजाब राज्य के शासक को सतलुज के पश्चिम का राजा मान लिया गया. जम्मू-कश्मीर उस समय रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था जिसे अंग्रेजों ने गुलाब सिंह को दे दिया. 

इस समझौते की वजह से एक पीढ़ी तक आंग्‍ल-सिख संबंध को बरकरार रहे. अंग्रेज-फ्रांसीसियों के खिलाफ एक रक्षा संधि चाहते थे और दूसरी तरफ पंजाब को सतलुज तक अपने दायरे या काबू में रखना चाहते थे. हालांकि यह एक रक्षा संधि नहीं थी, लेकिन इसने सतलुज नदी को लगभग एक मानक सीमा रेखा के रूप में निश्‍चित कर दिया. 

अंग्रेजों के इस लक्ष्‍य से रणजीत सिंह के मन में कहीं ना कहीं ईस्ट इंडिया कंपनी की अनुशासित सेना और युद्ध न करने के निश्‍चय पर भरोसा पैदा कर दिया. इसी समय गुलाब सिंह जो लाहौर दरबार का एक सरदार था. इसके बदले में उसने अंग्रेजों को दस लाख रुपये दिये. यानी कश्मीर का मालिक एक तरह से गुलाब सिंह हो गए.

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