Dhangri Village Terrorist Attack: जम्मू-कश्मीर में दहशत फैलाने के लिए आतंकियों की ओर से टारगेट किलिंग का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है. नए साल के पहले दिन ही राजौरी के ढांगरी गांव में आतंकियों ने हिंदुओं के घरों पर हमला किया था. आतंकियों की अंधाधुंध फायरिंग में कई लोग मारे गए थे. इस घटना के 10 दिन बाद भी गांव में मातम पसरा हुआ है. 


इस आतंकी हमले में कुछ परिवारों की जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद हो गई है. कई परिवार ऐसे हैं जिनके घरों में अब एक भी मर्द नहीं बचा है. इन परिवारों के सामने अब आगे का जीवन गुजारने का संकट खड़ा हो गया है. बता दें कि आतंकियों ने 1 जनवरी और 2 जनवरी को गांव पर हमला किया था. 


लगातार दो दिन हुआ आतंकी हमला


स्थानीय लोगों के मुताबिक, आतंकियों ने पहले दीपक कुमार के घर को निशाना बनाया और उसकी हत्या कर दी. इसके बाद ये आतंकी प्रीतम शर्मा के घर गए और यहां उसको और उनके बेटे आशीष को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया. आतंकियों ने फिर तीसरे घर पर हमला बोला. ये घर सतीश कुमार नाम के शख्स का है. इस हमले के दूसरे दिन डांगरी गांव में ही आईईडी ब्‍लास्‍ट किया गया, जिसमें एक बच्चे और एक किशोरी की मौत हो गई.


सरोज बाला ने अपना सब कुछ खो दिया


राजौरी गांव की सूरज देवी का सब कुछ बर्बाद हो गया. स्थानीय लोगों के मुताबिक, चार साल पहले ही सरोज बाला के पति की बीमारी से मौत हुई थी और अब आतंकियों ने उनके दोनों बेटों दीपक और प्रिंस की हत्या कर दी. दीपक की दो दिन बाद ही सेना के ऑर्डिनेंस विभाग में ज्वाइनिंग थी. घटना के बाद से सरोज बाला बदहवास हैं. उन्हें होश आता है और फिर घटना को याद करके बेहोश हो जाती हैं. 


नीता देवी के परिवार में भी कोई नहीं बचा


आतंकवादियों ने मजदूरी करने वाले प्रीतम लाल (55) और उनके 31 वर्षीय बेटे शिशु पाल की भी हत्या कर दी. शिशु पाल की विधवा नीता देवी ने पीटीआई को बताया, "जब आतंकवादियों ने गांव में गोलीबारी शुरू की, मैं परिवार के लिए रात का खाना बना रही थी. उन्होंने (पति शिशु पाल), मुझे और मेरे नाबालिग बच्चों (एक बेटे और एक बेटी) को स्टोर रूम में धकेल दिया. आतंकियों ने उनसे पहचान पत्र मांगा और फिर उन पर गोली चला दी." 


रिटायर फौजी ने बड़ी बहादुरी दिखाई


उसने कहा, "उसने कहा कि उसके ससुर गांव में मजदूरी करते थे, जबकि उसका पति एक कंस्ट्रक्शन एजेंसी में काम करता था. कुछ साल पहले उसकी सास की मौत हो गई थी. कोई भी नहीं है जो हमें खिला सके." उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. साढ़े तीन साल पहले सेना से रिटायर हुए सतीश कुमार (45) घर लौट रहे थे, तभी उन्होंने गोली चलने की आवाज सुनी. उनके बहनोई चमन शर्मा ने बताया कि सतीश कुमार ने अपने परिवार को बचाने के लिए अपनी जान दे दी. 


रिटायर फौजी का परिवार भी घायल हुआ


उन्होंने कहा कि सतीश कुमार को आतंकवादियों ने उस समय गोली मार दी, जब वह अपने घर में आतंकियों प्रवेश करने से रोकने की कोशिश कर रहे थे. इस दौरान उनकी पत्नी सरोज (36), बेटी आरुषि (14) और बेटे शुभ शर्मा (17) गेट पर आ गए और उनको भी गोलियां लगीं. उन्होंने कहा, "वह अच्छे दिल वाले व्यक्ति थे और हमेशा सभी के सुख-दुख में उपलब्ध रहते थे. सेना से रिटायर होने के बाद, उनका प्राथमिक ध्यान अपने परिवार की अच्छी देखभाल और अपने बच्चों की शिक्षा पर था."


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