Ancient Quranic Manuscripts: मुस्लिमों के पवित्र महीने रमजान के दौरान कश्मीर में एक सप्ताह के लिए खास प्रदर्शनी लगाई गई है. श्री प्रताप सिंह (एसपीएस) संग्रहालय में लगी इस प्रदर्शनी में कुरान की पांडुलिपियां प्रदर्शित की गई हैं. ये प्रदर्शनी गुरुवार (23 मार्च) को शुरू हुई थी. इसमें 17वीं सदी की हस्तलिखित कुरान भी देखने को मिली. इससे लोग काफी खुश हैं, क्योंकि उन्हें इसके जरिए इस्लामी कला और सुलेख के समृद्ध इतिहास और विरासत को जानने और समझने का मौका मिला.
संग्रहालय की देखरेख करने वाली राबिया कुरैशी ने बताया, "हमारा पांडुलिपि खंड अभी तक प्रदर्शित नहीं किया गया था. फिर हमने सोचा लोगों को पता होना चाहिए कि कश्मीर में प्राचीन काल की हस्तलिखित पांडुलिपियां रही थीं. यह पहली बार है कि हम इनकी प्रदर्शनी का आयोजन कर रहे हैं, क्योंकि पांडुलिपि का खंड अब भी बंद है. रमज़ान का पाक महीना है, इसलिए हम चाहते हैं कि लोग पांडुलिपियों के बारे में जानें ताकि उनका ज्ञान बढ़ सके."
17वीं शताब्दी की कुरान भी देखने को मिली
प्रदर्शनी में दुर्लभ और प्राचीन कुरान की पांडुलिपियों के संग्रह को प्रदर्शित किया गया. इसमें 17वीं शताब्दी की कुरान भी शामिल है. कुरान की अधिकांश पांडुलिपियां या तो स्थानीय रूप से बने कागज या चीनी कागज पर हाथ से लिखी गई हैं. 17वीं सदी की सर्वाधिक पांडुलिपियों में कश्मीरी कागज का प्रयोग हुआ है. बता दें कि भारत में पहली कागज निर्माण इकाई कश्मीर में स्थापित की गई थी और पूरे भारत में लोग कश्मीरी कागज का उपयोग करते थे.
सोना, केसर और खनिज रंगों का उपयोग
प्रदर्शित की गई पांडुलिपियां ज्यादातर काली स्याही, सोने और केसरिया रंग का उपयोग करके लिखी गई हैं. इनमें दो से तीन प्रकार का कागज इस्तेमाल में लाया गया था. इनमें से एक रॉयल्टी के लिए था और दूसरा आम लोगों के लिए था. संग्रहालय में अधिकांश पांडुलिपियां प्रकाशित हैं और अधिकतर सोने से बनी हैं. यह भी देखने में आता है कि इनमें केसर का प्रयोग किया गया है. इन पांडुलिपियों को प्राकृतिक और खनिज रंगों से बनाया गया है.
'प्राचीन पांडुलिपियों को देखना आकर्षक'
इस प्रदर्शनी को देखकर स्टूडेंट्स काफी खुश दिखाई दिए. छात्र फरहान अहमद ने कहा, "इन प्राचीन पांडुलिपियों को देखना आकर्षक है. इन्हें काफी अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है. इस प्रदर्शनी के जरिए हमने अपने स्थानीय इतिहास और पांडुलिपि बनाने की कला के बारे में बहुत कुछ सीखा है." एक अन्य छात्रा आयशा मीर ने कहा, "मुझे कभी नहीं लगा कि कश्मीर में पांडुलिपि बनाने की इतनी समृद्ध परंपरा रही है. इन खूबसूरत टुकड़ों को करीब से देखना और उनके इतिहास और महत्व के बारे में जानना अद्भुत है."