Jammu Kashmir Terrorism: जम्मू-कश्मीर में लगातार हुए आतंकी हमलों के बाद प्रदेश में विधानसभा चुनावों को टालने की मांग की जा रही है. इसको लेकर घाटी में आतंक की कमर तोड़ने वाले पूर्व डीजीपी कुलदीप खुड्डा ने एबीपी न्यूज के साथ खास बातचीत की. उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर में 1989 से 1996 तक और 2018 से अभी तक केंद्र का शासन रहा. 1996 से 2018 तक लोकतांत्रिक सरकारें रहीं लेकिन आतंकवाद की घटनाएं कभी नहीं रुकीं. अब वक्त की जरूरत है कि एक मजबूत सरकार हो.
उन्होंने कहा, “पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की घटनाएं काफी ज्यादा हुई हैं. सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की नजर से ये चूक हुई जिसकी वजह से अब हिंसा में एक बार फिर बढ़ोतरी देखी जा रही है. आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान शामिल रहता है. पिछले काफी समय से जम्मू के कठुआ, पुंछ, राजौरी और अन्य इलाकों में घुसपैठ ज्यादा बढ़ी है. जरूरी ये है कि सभी एजेंसियां एक साथ काम करें और इससे निपटें. ये जरूरी इसलिए भी है क्योंकि 1990 के बाद पहली बार आतंकी एक बार फिर से अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं.”
पाकिस्तान को इस तरह दिया जाए जवाब
पाकिस्तान के बारे में बोलते हुए खुड्डा ने कहा, “ऊरी स्ट्राइक और बालाकोट स्ट्राइक से कुछ समय के लिए पाकिस्तान आतंक के रास्ते से पीछे हटा लेकिन आतंकवाद की पॉलिसी को कभी नहीं छोड़ा. अब देखना यह है कि क्या बालाकोट और उरी स्ट्राइक से बड़ी कोई करवाई करने का वक़्त आया है या नहीं, यह फैसला केंद्र सरकार को करना है."
‘शपथ ग्रहण वाले दिन जानकर किया आतंकी हमला’
उन्होंने आगे कहा, “जम्मू में हुए हमलों के पीछे पाकिस्तान की सोची समझी साज़िश थी. जिसमें नई सरकार के शपथग्रहण के दिन पहला हमला और उसके बाद अब G-7 बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर को एक बार फिर से इंटरनेशनल लेबल पर दोबारा वापस लाने की कोशिश के तौर भी देखा जा रहा है. कश्मीर में सुरक्षा बालों से आतंकी अब नहीं लड़ सकते. इसीलिए जम्मू में सॉफ्ट टारगेट पर हमले होने लगे हैं. जिससे निपटने के लिए नई रणनीति की ज़रुरत है और सतर्कता के साथ इस से लड़ना होगा."
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