‘मैंने किया क्या है?’, जम्मू-कश्मीर में जन संघ टिकट पर जीतने वाले इकलौते मुस्लिम का सवाल
जम्मू कश्मीर के पूर्व विधायक और सांसद शेख अब्दुल रहमान को 20 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया. इसी दिन वह गाजावासियों के समर्थन में जम्मू में होने वाली एकजुटता बैठक में शामिल होने वाले थे.
हमास और इजरायल के बीच जारी जंग का गुरुवार (2 नवंबर, 2023) को 26वां दिन है. युद्ध के कारण स्थिति लगातार खराब होती जा रही है और फलस्तीनी दर-दर भटकते फिर रहे हैं. 7 अक्टूबर को हमास की ओर से किए गए हमले के बाद से इजरायल आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए और हमास के लड़ाकों को खत्म करने के लिए गाजा पट्टी में गोले बरसा रहा है. इन हमलों में अब तक 8,796 लोगों की जान जा चुकी है. युद्ध को लेकर कई देशों में प्रदर्शन हो रहे हैं. 20 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर में गाजावासियों के समर्थन में एकजुटता बैठक होनी थी, लेकिन उससे पहले ही पूर्व सांसद और विधायक शेख अब्दुल रहमान को हिरासत में ले लिया गया. उनकी गिरफ्तारी को बैठक से जोड़कर देखा जा रहा है.
20 अक्टूबर को गाजावासियों के लिए जम्मू-कश्मीर में बुलाई गई एकजुटता बैठक के लिए शेख अब्दुल रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया था. अब्दुल रहमान की उम्र 92 साल है. इस वक्त वह भले राजनीति में सक्रिय न हों, लेकिन जम्मू-कश्मीर की राजनीति में वह एक जाना-माना नाम हैं. वह इकलौते मुस्लिम नेता हैं जो न सिर्फ जन संघ के अध्यक्ष रहे बल्कि जन संघ पार्टी के टिकट पर जम्मू नॉर्थ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी जीता.
जन संघ के टिकट पर बने थे विधायक
1972 और 1973 में रहमान दो बार जन संघ पार्टी की जम्मू-कश्मीर यूनिट के अध्यक्ष बनाए गए और 1973 में विधानसभा का चुनाव जीतकर जम्मू नॉर्थ के विधायक बने. उनसे पहले पंडित प्रेमनाथ डोगरा इस सीट का प्रतिनिधित्व करते थे. साल 1947 में डोगरा आरएसएस के सहयोग से बनाए गए जम्मू प्रजा परिषद का हिस्सा थे. बाद में उन्होंने अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए रहमान के नाम का ऐलान कर दिया. रहमान को उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर भी जाना जाता है.
कैसे जन संघ का हिस्सा बने शेख अब्दुल रहमान
बंटवारे के दौरान भदेरवाह में हुए दंगों में शेख अब्दुल रहमान के परिवार के 16 लोगों की मौत हो गई थी. नेशनल कांफ्रेंस से जनसंघ में एंट्री की उनकी कहनी काफी दिलचस्प है. यह शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का दौर था और वह कश्मीर के बड़े नेता थे. उस समय रहमान भदेरवाह में नेशनल कांफ्रेंस की स्टूडेंट विंग के अध्यक्ष थे. साल 1948 में शेख मोहम्मद अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री बने. उस वक्त जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री शब्द का इस्तेमाल किया जाता था. तब बक्शी गुलाम कश्मीर के डिप्टी पीएम थे. रहमान ने नेशनल कांफ्रेंस से रिश्ता तब तोड़ा जब पार्टी के स्थानीय नेताओं ने चोरी और हिंदू महिलाओं के अपहरण की शिकायतों पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया. इससे नाराज रहमान अपने गांव खालू चले गए. जब डिप्टी पीएम बक्शी को यह बात पता चली तो वह गुस्से में आ गए और रहमान को समन भेज दिया. गुस्से में बक्शी ने कहा था, 'ये लड़का नहीं जानता कि मैं डिप्टी पीएम हूं और गृह विभाग का प्रभारी हूं, ये अपनी कब्र खुद खोद रहा है.'
दूसरी तरफ अगले ही दिन जम्मू प्रजा परिषद के नेता स्वामी राज एडवोकेट उनसे मिले और पार्टी में शामिल होने को ऑफर दिया, जिस पर रहमान भी राजी हो गए. इसके बाद प्रजा परिषद और जन संघ का विलय हुआ और रहमान भी जन संघ का हिस्सा बन गए. कुछ समय बाद ही वह भदेरवाह से विधायक बने. यहां से वह चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोक दल में गए और राज्यसभा सांसद बने. इसके बाद बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए और 1996 में एक बार फिर भदेरवाह से विधायक बने और 2011-12 में फिर नेशनल कांफ्रेंस में वापसी की.
गिरफ्तारी पर क्या बोले शेख अब्दुल रहमान
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ताजा गिरफ्तारी पर शेख अब्दुल रहमान का कहना है कि वह आरटीआई के जरिए पूछेंगे कि उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया और उन पर कौन से केस हैं. उन्होंने कहा, 'हमें इतना तो बता दो कि हमारा जुर्म क्या है.' 20 अक्टूबर को शेख अब्दुल रहमान जम्मू में महाराजा हरि सिंह पार्क में फलस्तीनियों के समर्थन में एकजुटता बैठक करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया और अगले दिन छोड़ा. उनके परिवार का कहना है कि पुलिस ने रहमान को हिरासत में लेने की कोई वजह नहीं बताई है. अगले दिन शाम को रहमान से एक बॉन्ड पर साइन करवाया गया और फिर जाने दिया.
आर्टिकल 370 रद्द करने पर क्या बोले थे शेख अब्दुल रहमान
यूट्यूब चैनल द पब्लिक इंडिया के साथ बातचीत में शेख अब्दुल रहमान ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर के साथ हिंदुस्तान का रिश्ता जज्बाती भी है और बाकी मामलों के अलावा बुनियादी तौर पर इस रिश्ते की तीन बड़ी वजह हैं. तीन दस्तावेज हैं, भारत का संविधान, जम्मू-कश्मीर का संविधान और महाराजा हरि सिंह जी के इंस्ट्रूमेंट एपेक्स सेशन. जब 5 अगस्त, 2019 को रिश्ते की अहम कड़ी अनुच्छेद 370 और 35ए रद्द कर दिया गया तो ऐसी हालत में यहां का संविधान खत्म हो गया. अब सिर्फ एक ही चीज रहती है जो हरि सिंह जी का इंस्ट्रूमेंट एपेक्स सेशन है.'
जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दी के मुद्दे पर उन्होंने कहा, 'इसकी जड़ आर्टिकल 370 रद्द करने के साथ जुड़ती है. संविधान के आर्टिकल में इसे यूनियन ऑफ स्टेट्स कहा गया है, ये रियासतें कोई एडमिनिस्ट्रेटिव यूनिट नहीं हैं. ये रियासतों को मिलाकर एक यूनियन बनाई गई है तो ऐसे में रियासतों के हक ज्यादा होते हैं. पहले उनके हक छीन लिए गए फिर जो बाकी बचे थे उन्हें मौजूदा सरकार ने पिछले सालों में रियासतों ने छीनना शुरू किया. जैसे मुल्क के अंदर जीएसटी लागू कर दिया, शिक्षा नीति सेंटर से बनाई गई, इसी तरह रेवेन्यू और जमीनों के कानून केंद्र बना रहा है. तो हर मामे में केंद्र का दखल बढ़ा है, जबकि ये राज्य सरकारों के हक है.'
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