Drugs Case: एक दिव्यांग एथलीट ने केरल से कश्मीर तक अपना सफर तय किया है. ये यात्रा ड्रग्स और नशाखोरी के खिलाफ हुई है. जिसकी शुरूआत दक्षिणी राज्य के एथलीट जॉबी मैथ्यू ने की. जोसेफ की ये जर्नी 3600 किलोमीटर के आसपास रही. जो चुनौतियों से भरपूर थी क्योंकि वो एक दिव्यांग हैं.
जॉबी (निक नेम) प्रॉक्सिमल फेमोरल फोकल डेफिशियेंसी से पीड़ित हैं. जॉबी ने कहा, "मेरे जन्म के समय मेरे माता-पिता बहुत दुखी थे और डॉक्टरों ने मुझे 60% विकलांगता का प्रमाण पत्र दिया था लेकिन पहले मेरी मां और बाद में मेरी पत्नी के सहयोग से, मैं विकलांग होने और सामान्य लोगों को भी चुनौती देने में सक्षम था"
जॉबी जीत चुके हैं गोल्ड मेडल
जॉबी ने बताया, "वह चैंपियनशिप में भाग ले रहे हैं और मैंने जापान में तीन पदक जीते. जापान, इज़राइल, कजाकिस्तान में भी पदक जीते लेकिन मेरा सबसे बड़ा खिताब 2008 में स्पेन में था, जहां मैंने सामान्य श्रेणी में भाग लेकर स्वर्ण पदक जीता".
जोसेफ ने आगे कहा कि वह 2008 से भारत पेट्रोलियम के साथ काम कर रहे हैं, और वह पिछले तीस वर्षों के दौरान एक खिलाड़ी के रूप में दिखाया है कि शारीरिक बाधा हमें जीवन में कुछ भी हासिल करने से नहीं रोक सकती है. जॉबी ने कहा, 'नशाखोरी सबसे बड़ी चुनौती है और मैं यहां युवाओं को संदेश देने के लिए हूं.' उन्होंने वर्ल्ड आर्म रेसलिंग में भारत के लिए 28 वर्ल्ड चैंपियनशिप मेडल जीते हैं.
'पैर छोटे हैं लेकिन हाथ मजबूत'
जोसेफ ने कहा, "मेरे पैर छोटे हैं, लेकिन मेरे हाथ मजबूत हैं और मैं कुश्ती में किसी भी सामान्य व्यक्ति को हरा सकता हूं. अगर मैं ऐसा कर सकता हूं, तो स्वस्थ जीवन जीने वाले युवा क्यों नहीं कर सकते. वो नशीले पदार्थों के बजाय खेलों में भाग ले सकते हैं." नशे की लत के खिलाफ संदेश फैलाने के उद्देश्य से एक विशेष रूप से विकलांग व्यक्ति अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ केरल से कश्मीर तक अपनी यात्रा पर निकल पड़े हैं.
जोसेफ एक पेशेवर आर्म रेसलर हैं और श्रीनगर में चल रही 45वीं नेशनल आर्म रेसलिंग चैंपियनशिप में हिस्सा भी लेंगे. वह अब अपनी पत्नी मेघा, जो पेशे से डॉक्टर हैं और दो बेटों के साथ नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर जागरूकता अभियान चला रहे हैं.