नई दिल्ली:  यहां मीर हैं...यहां गालिब हैं...यहां ज़ौक़  हैं...यहां फैज हैं क्योंकि यहां की हवा में उर्दू है. हम बात कर रहे हैं उर्दू के जश्न की, जश्न ए रेख्ता की. जिसका आगाज कल दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में मशहूर गीतकार गुलजार और सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने किया.


इस जश्न में आईजीएनसी के खुले मैदान में न सिर्फ हर तबके के लोग शामिल हुए, बल्कि उर्दू की जादू में गिरफ्तार भी दिखे. मज़हब की बंदिशें बेमानी थी, उर्दू का तहज़ीब और उनकी परंपराओं से चमन खिल उठा था. हर उम्र, छोटे-बड़े, अदीब शायर सभी थे. अलग अलग रंगों लिबास में बच्चों के साथ कॉलेज के लड़के-लड़कियों का हुजूम भी जलवागर था.  महिलाओं का भी भारी जमघट था. कहीं लजीज़ खानों के स्टॉल हैं तो कहीं उर्दू किताबें, आर्ट और दस्तकारी के भी स्टॉल हैं.


इस मौके पर गुलजार, अमजद अली खान और संजीव श्राफ ने उर्दू के आशिकों से अपने दिल की बात कही. उर्दू के नए दीवानों को तोहफे से भी नवाज़ा.


 उर्दू से इश्क का इजहार करता हूं: गुलजार


उर्दू से अपने रिश्ते का इजहार करते हुए गुलजार ने कहा, ''मैं यहां सिर्फ इसलिए हाजिर हूं कि उर्दू सुनूं और सीखूं, मेरे पास सिखाने के लिए कुछ नहीं है.  मैं उर्दू से सिर्फ अपने इश्क का इजहार कर सकता हूं. उर्दू ने आशिक बहुत पैदा किए हैं. उन आशिकों में जो सही तौर पर उर्दू जानते हैं वो आज यहां मौजूद हैं. ''


गरीबी में नवाबी का मजा देती है उर्दू: गुलजार


उर्दू  की खासियत पर रौशनी डालते हुए उन्होंने कहा कि उर्दू की अपनी एक अलग ही रईसी है. मैं कहता हूं कि उर्दू गरीबी में भी नवाबी का मजा देती है. कोई फकीर अगर आपके पास मांगता हुआ आए और अगर वो उर्दू में मागे तो दिल कहता है कि उठकर उसके पास जाएं तब कुछ दें. उर्दू सिर्फ तहजीब की जुबां नहीं हैं यह एक कल्चर है.


उर्दू में बस एक कमी रह गई है


उर्दू के पास सब कुछ होते हुए भी एक चीज की कमी रह हई है. गुलजार ने बताया, ''कोई भी ज़बाँ दिन पर दिन बदलती रहती है. उर्दू के साथ भी ऐसा हो रहा है. आज हम 18वीं और 19वीं सदी की उर्दू नहीं बोलते हैं. उर्दू पर दूसरी भाषाओं का असर हो रहा है. पाकिस्तान में भी जो उर्दू परवरिश पा रही है उस पर पंजाबी, पश्तो जैसी भाषाओं का असर है. उर्दू में अगर कोई एक चीज की कमी है तो वो है इसके रस्मुल खत यानि लिपी की. उर्दू की लिपी को संभानला बहुत जरूरी है.''


मीर गालिब के बाद संजीव श्राफ का शुक्रिया


गुलजार साहब ने जश्न ए रेख्ता के आयोजन के लिए रेख्ता के संस्थापक संजीव श्राफ को बधाई दी. उन्होंने कहा कि मीर और गालिब के बाद अगर उर्दू के लिए किसी को बधाई दूंगा तो वो संजीव श्राफ हैं.


आज के दौर के गालिब हैं गुलजार: अमजद अली खान


सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने बताया कि मेरा उर्दू से कोई सीधा रिश्ता नहीं रहा. मैं जब भी कोई किताब पढ़ने की कोशिश करता हूं मैं अपने सुरों की दुनिया में चला जाता हूं. मैं एक ऐसी दुनिया से आता हूं जहां शब्द नहीं सुर की कीमत ज्यादा है लेकिन गुलजार साहब के लिए मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि वो आज के गालिब हैं.


रेख्ता के संसथापक संजीव श्राफ ने कहा कि उर्दू सिर्फ एक जबान नहीं है, एक अंदाज़, एक सलीका और एक तर्ज़-ए-अदा भी है.


उर्दू सीखने वालों के लॉन्च हुई एक खास वेबसाइट


उर्दू सीखने की चाहत रखने वालों के लिए रेख्ता ने एक नायाब तोहफा पेश किया है. संजीव श्राफ ने बताया कि उर्दू से लोगों को जोड़ने के लिए, उर्दू सिखाने के लिए aamozish.com की शुरुआत की गई है. आमोज़िश  का शाब्दिक अर्थ है सीखना. यहां उर्दू के बेसिक सीखने से लेकर आप उर्दू के मास्टर बन सकते हैं. कैसे काम करता है आमोज़िश डॉट कॉम


और क्या रहा खास...


जश्न ने रेख्ता के आगाज के बाद सरोद वादक अयान अली बंगश और अमान अली बंगश ने अपनी परफॉर्मेंस  से समां बांध दिया. इसके अलावा जश्न ए रेख्ता परिसर में फूड फेस्टिवल का भी आयोजन किया गया है. इसके अलावा उर्दू शायरों की किताबें, पेंटिंग, कैलीग्राफी, पोस्टर ने भी सभी का ध्यान खींचा. जश्न ए रेख्ता के आगाज के मौके पर दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, एक्टर प्रेम चोपड़ा और 'जॉली एलएलबी 2' में अपनी अदाकारी से दिल लूटने वाले सौरभ शुक्ला भी मौजूद रहे.


दिल्ली में तो जरूर जाएं...


अगर आप दिल्ली में हैं और तहजीब-ओ- मोहब्बत की जुबं उर्दू को समझना चाहते हैं तो जश्न ए रेख्ता का रुख करें, यहां उर्दू के आशिकों के लिए दास्तान-गोई, नाटक, कव्वाली, गजल गायकी, फिल्म स्क्रीनिंग, साहित्यिक चर्चाओं, मुशायरा, बैतबाजी, कैलिग्राफी, वर्कशॉप, वाद-विवाद प्रतियोगिता, प्रदर्शनी, उर्दू बाजार, उर्दू गद्य और काव्य पाठ का शानदार आयोजन किया गया है. उर्दू का यह जश्न तीन दिन 17 से 19 फरवरी तक चलेगा.


आखिर में एक शेर...


''उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है,


वो शख़्स है मोहज़्ज़ब है जिस को ये ज़बाँ आई''