नई दिल्ली: उर्दू को गीतों की जुबां में सजाने वाले मशहूर गीतकार गुलज़ार ने आज उर्दू की लिपि को बचाए जाने की जरूरत बताई. यहां ‘जश्न-ए-रेख्ता’ के उद्घाटन सत्र में उन्होंने यह बात कही. इसी सत्र में रेख्ता फाउंडेशन की ओर से उर्दू जुबां को ऑनलाइन सीखने के लिए एक वेबसाइट ‘आमोजि़श डॉट कॉम’ शुरू की गई है.


दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित गुलज़ार ने कहा, ‘‘उर्दू की लिपि छोटी होती जा रही है. इसकी रवायत को जारी रखना जरूरी है.’’ इस अवसर पर ‘जश्न-ए-रेख्ता’ का आयोजन करने वाले रेख्ता फाउंडेशन के संस्थापक संजीव सर्राफ ने ‘आमोजि़श डॉट कॉम’ का भी उद्घाटन किया. इसके माध्यम से फाउंडेशन लोगों को उर्दू जुबां और लिपि सीखने का ऑनलाइन पाठ्यक्रम उपलब्ध कराएगा.


उर्दू जुबां को ‘गरीबी में नवाबी का मजा देने वाली’ भाषा बताते हुए गुलज़ार ने कहा कि उर्दू सिर्फ तहज़ीब नहीं है. यह अपने आप में एक सभ्यता है. बहुत मामूली रूप में शुरू हुई इस जुबां के पास आज की तारीख में अपना पूरा एक मुल्क पाकिस्तान है. यह निरंतर बदल रही है. आज के दौर में यह 18वीं या 19वीं सदी के स्वरूप में नहीं बोली जाती है.


उन्होंने कहा कि भारत में जहां यह हिंदुस्तानी है जो यहीं की भाषाओं के साथ सज-संवर रही है. वहीं पाकिस्तान में भी इस पर सिंधी, पश्तो और पंजाबी जुबां का असर पड़ रहा है. लेकिन इसकी लिपि को वास्तव में बचाए जाने की जरूरत है.


‘जश्न-ए-रेख्ता’ के उद्घाटन सत्र में जाने-माने सरोद वादक अमज़द अली खान भी शामिल हुए. खान ने कहा, ‘‘उर्दू किसी मज़हब की जुबां नहीं है. यह हिंदोस्तां की जुबां है.’’ उन्होंने गुलज़ार को भी ‘आज का गालिब़’ बताया.


इस अवसर पर सर्राफ ने कहा कि रेख्ता ने उर्दू को बचाए रखने का बीड़ा उठाया है और इसकी वेबसाइट पर वर्तमान में शायरों की संख्या 1,700 से बढ़कर 2,300 हो गई है. उसकी साइट के ई-पुस्तक खंड पर उपलब्ध किताबों की संख्या करीब 23,000 हो गई है. इस मौके पर रेख्ता फाउंडेशन ने अपना नया लोगो भी जारी किया.