नई दिल्ली: वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री रहे जार्ज फर्नांडीस ने आज दिल्ली में अंतिम सांस ली. उनका 88 साल की उम्र में निधन हो गया है. वो काफी समय से बीमार चल रहे थे. दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में उनका निधन हुआ. यहां उनका काफी समय से इलाज चल रहा था. बताया जा रहा है कि वो कुछ दिनों से स्वाइन फ्लू से भी पीड़ित थे. आइए जानते हैं इमरजेंसी के दौर में उभरे इस नायक के बारे में उनकी सहयोगी जया जेटली ने क्या कुछ बताया.  जानते हैं जॉर्ज की जिंदगी से जुड़ी दिलचस्प बातों को


जया जेटली ने जॉर्ज के द्वारा किए गए रेलवे कर्मचारयों के आंदोलन को लेकर कहा,'' जॉर्ज साहब के का मानना था कि जो इस देश के रेल को बंद कर सकता है वो देश भी चला सकता है. बहुत अन्याय और अत्याचार होता था रेल मजदूरों के ऊपर. पहले वो स्ट्राइक का समर्थन नहीं करते थे. लेकिन उनके ऊपर ये जिम्मेदारी डाल दी गई जब उनको प्रेसिडेंट ऑफ रेलवे यूनियन बनाया गया. इसके बाद सबसे बड़ा रेलवे आंदोलन चला और कहते हैं यह वही आंदोलन था जिससे कि इंदिरा गांधी के अंदर एक तानाशाह का मन तैयार हो गया.''


इसके बाद जून 1975 में इंदिरा गांधी ने अपातकाल लगाया तो इसके विरोध के नायक बनकर जॉर्ज उभरे. उन्होंने नारा दिया, '' लाठी, गोली सेंट्रल जेल, जालिमों का अंतिम खेल''. उन्हें बहुचर्चित बड़ौदा डायनामाइट केस में आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया गया. जया इसके बारे में बताती हैं, '' वो मानते थे कि जनता अपनी आवाज विस्फोट से उठा सकती है, लेकिन वह विस्फोट किसी की जान लेने के लिए नहीं होना चाहिए. वो चाहते थे कि विस्फोट केवल छोटे-मोटे ब्रिज, सड़क जैसी जगहों पर हो जिससे सरकार को लगे कि लोग इमरजेंसी के विरोध में उठ खड़े हुए हैं. इसके बाद वो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वह तिहार जेल गए और जब उन्हें कोर्ट लाते थे तो जंजीर में उनके पैर और हाथ बंधे रहते थे. एक दिन उनसे पूछा गया कि आपको क्या कहना है तो उन्होंने अपना हाथ उठाया और कहा- ये है भारत की दशा, जंजीर में बंधी हुई.''


अपातकाल के बाद जब 1977 में आम चुनाव हुए तो जॉर्ज जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़े और 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीते भी. इस चुनाव की दिलचस्प कहानी बताते हुए जया ने कहा, '' जब वो जेल में थे जो जयप्रकाश नारायण ने कहा वो मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़े लेकिन वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. उनके हाथ में जंजीर वाली जो फोटो है उसको उनके समर्थक जीप पर बांधकर चुनाव प्रचार करते रहे और चुनाव लड़ा गया. वो बहुत बड़ी बहुमत से जीते लेकिन वो खुद जेल के अंदर थे.''


इसके बाद मोराजी सरकार में वो संचार और फिर उद्दयोग मंत्री बनाए गए.उद्दयोग मंत्री रहते हुए उन्होंने कोकाकोला कंपनी को भारत से बाहर करने का फैसला किया. ताकी भारतीय पेय को बाजार मिल सके. इसके बाद 1994 में जनता पार्टी के अंदर विवादों को लेकर उन्होंने समता पार्टी का गठन किया. बाद में समता पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाई. जया इस चुनाव के बारे में बताती हैं, '' बिहार में लालू जी ने इकॉनोमिक रिफॉर्म का मजाक उड़ाया. उन्होंने सोचा इकॉनोमिक रिफॉर्म की बात जॉर्ज साहब चला रहे हैं तो यह मंडल को दबाने के लिए है. कुछ अंतर्विरोध इसमें आ गया और लालू जी ने कुछ ज्यादा ही जातिवाद किया. जॉर्ज साहब वीपी सिंह से बोले कि हम लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हैं. बोफोर्स से लड़कर ही हमलोग यहां तक आए. हमलोग जातिवाद में विश्वास नहीं करते और यहां जातिवाद हो रहा है. हम एक ही पार्टी में कैसे रह सकते हैं. वीपी सिंह ने कुछ नहीं कहा.''


इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो जार्ज फर्नांडीस को रक्षा मंत्री बनाया गया. 24 दलों के NDA गठबंधन को चलाने में उन्होंने काफी सराहनीय काम भी किया. जया उनके बचपन की बात करते हुए बताती हैं, '' उनके पिता ने उन्हें चर्च का पादरी बनने के लिए उन्हें भेजा. जब वह 17 साल की उम्र में वहां गए तो उन्हें लगा कि वहां जो बोलते थे और करते थे उसमें अंतर है. उन्होंने चर्च को छोड़ दिया जिसके परिणाम स्वरूप उनके पिताजी ने उन्हें घर से निकाल दिया. वो मुंबई चले गए और सोशलिस्ट पार्टी के दफ्तर में मेज पर सोए. वो बताते थे कि सड़क पर सोने के लिए भी 25 पैसा देना पड़ता था. अगर उनके जेब में 1 रूपया होता ता तो 25 पैसा सोने के लिए और बाकी पैसा चना और रोटी खाने के लिए होता था.''


1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें कांग्रेस के कद्दावर नेता एस के पाटिल के खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतारा. सबने कहा जॉर्ज, पाटिल को हराने में कामयाब नहीं हो पाएंगे. जया ने इस चुनाव के बारे में बताया,'' पाटिल ने कहा था कोई भी मुझे नहीं हरा सकता. भगवान भी नहीं. जॉर्ज साहब ने हर जगह पोस्टर लगवाए कि भगवान न सही जनता हरा सकती है और जनता ने हराया. इसके जॉर्ज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.''


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