नई दिल्ली: आनेवाले समय में तमिलनाडु की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है . तीन दशक से वहां की राजनीति जयललिता और करुणानिधि के इर्द गिर्द घूमती रही . अब जयललिता हमारे बीच नहीं हैं, वहीं करुणानिधि अस्पताल में भर्ती हैं . ऐसे में मोदी लहर पर सवार बीजेपी वहां पर बड़ा दांव खेल सकती है .


जयललिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने नम आंखों से दिवगंत मुख्यमंत्री को श्रद्धांजलि देने के साथ देश को बताया कि जयललिता के जाने का सियासी मतलब क्या है ? पीएम ने कहा कि जयललिता के निधन से भारतीय राजनीति में गहरा शून्य उत्पन्न हो गया है.

प्रधानमंत्री के इस बयान को अगर तमिलनाडु की राजनीति से जोड़कर देखा जाए तो उनका कथन सौ फीसदी सही है. पिछले तीन दशक से वहां की राजनीति जयललिता और करुणानिधि के इर्द गिर्द घूमती रही है लेकिन आज जयललिता वहां जा चुकी हैं, जहां से लौटकर कोई नहीं आता. वहीं 92 वसंत देख चुके करूणानिधि अभी अस्पताल में स्वास्थय लाभ कर रहे हैं.

राजनीति के इसी नाजुक मोड़ पर सवाल उठता है कि क्या मौजूदा हालत में बीजेपी तमिलनाडु की राजनीति में पैर जमा सकती है? इस सवाल के पड़ताल से पहले आपको बता दें कि पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री पनीर सेल्वम और जयललिता की सबसे करीबी रही शशिकला को सांत्वना देने के साथ जयललिता के सम्मान में कुछ ऐसे फैसले किये जो अभूतपूर्व हैं.

जयललिता के निधन पर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय शोक का एलान किया है जो आमतौर पर किसी मुख्यमंत्री के निधन पर नहीं किया जाता है. इसके अलावा आज संसद के दोनों सदनों को स्थगित करके सरकार ने जयललिता के प्रति अपना सम्मान जाहिर किया. जब जयललिता अस्पताल में भर्ती थीं, तब भी बीजेपी के तमाम बड़े नेता उनका हालचाल जानने के लिए चेन्नई जाते थे.

जयललिता के साथ बीजेपी के रिश्ते उतार चढ़ाव भरे रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके व्यक्तिगत रिश्ते शुरू से अच्छे रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी जयललिता के निधन से उपजी सहानुभूति का फायदा उठाकर तमिलनाडु में अपनी जड़ जमा सकती है.

बीजेपी के लिए अच्छी बात ये है कि जयललिता की पार्टी के साथ उसका रिश्ता काफी अच्छा रहा है, वहीं करुणानिधि परिवार में जबरदस्त कलह मचा हुआ है.