नई दिल्ली: बीजेपी की सहयोगी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने सरकार से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की है. पार्टी का कहना है कि जाति आधारित जनगणना से देशभर में पिछड़े वर्ग के लोगों की संख्या का सही अंदाजा हो पाएगा और उन तक सरकार की विकास योजनाओं को पहुंचाना आसान होगा. जेडीयू ने जातिगत जनगणना की मांग ऐसे समय में की है जब सरकार अगले साल होने वाली जनगणना और एनपीआर की तैयारी कर रही है.


जेडीयू ने कहा है कि 2011 में भी सामाजिक आर्थिक जनगणना करवाई गई थी लेकिन आजतक इस जनगणना के जाति से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. जेडीयू ने कहा है कि जाति आधारित जनगणना से देश में रहने वाली सभी जातियों का आंकड़ा पता चल सकता है.


आरक्षण की सीमा भी बढ़नी चाहिए


लोकसभा में आज राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए जेडीयू नेता ललन सिंह ये भी दावा किया कि एक बार जाति आधारित जनगणना के आंकड़े सामने आ जाएं तो पिछड़े वर्ग के लोगों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी. ललन सिंह ने साथ ही आरक्षण की सीमा भी बढ़ाने की वकालत की. जेडीयू नेता ने कहा कि अगर आवश्यकता हो तो पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा संविधान संशोधन के ज़रिए बढ़ाई जानी चाहिए.


वर्तमान में पिछड़े वर्ग के लिए 27 फ़ीसदी की आरक्षण सीमा तय है. बता दें कि पहली बार 1931 में जाति आधारित जनगणना की गई थी और पिछड़ी जातियों को मण्डल कमीशन के तहत जो 27 फ़ीसदी का आरक्षण मिलता है वो 1931 की जनगणना के आधार पर ही तय की गई थी.


बिहार को मिले विशेष राज्य का दर्जा


जेडीयू ने एक बार फिर लोकसभा में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की है. ललन सिंह ने कहा कि अगर देश का चहुमुखी विकास करना है तो सभी राज्यों का विकास होना ज़रूरी है. हालांकि, ललन सिंह ने नागरिकता कानून पर मोदी सरकार का बचाव किया और विपक्ष पर भ्रम फ़ैलाने का आरोप लगाया.


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